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ब्लॉग: केंद्रीय जांच एजेंसियों पर पश्चिम बंगाल में क्यों हो रहे हमले ?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 08, 2024 10:06 AM

पश्चिम बंगाल का केंद्र की एजेंसियों के साथ पुराना छत्तीस का आंकड़ा है। जब-जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और केंद्रीय कार्यालयों ने कार्रवाई की है, तब-तब उसका विरोध हुआ है।

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ठळक मुद्देपश्चिम बंगाल का केंद्र की एजेंसियों के साथ पुराना छत्तीस का आंकड़ा हैताजा मामले में पूर्वी मिदनापुर में एनआईए की टीम पर हमला हुआ हैभीड़ ने टीम की गाड़ी को घेरकर उस पर पत्थरबाजी की

पश्चिम बंगाल का केंद्र की एजेंसियों के साथ पुराना छत्तीस का आंकड़ा है। जब-जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और केंद्रीय कार्यालयों ने कार्रवाई की है, तब-तब उसका विरोध हुआ है। ताजा मामले में पूर्वी मिदनापुर में एनआईए की टीम पर हमला हुआ है। भीड़ ने टीम की गाड़ी को घेरकर उस पर पत्थरबाजी की। एनआईए की टीम कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश पर शनिवार को जांच के लिए वहां पहुंची थी। 

दिसंबर 2022 में एक टीएमसी नेता के घर पर हुए विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में कुछ लोगों को तलब किया गया था, जिसके बाद जांच एजेंसी ने शनिवार को पूर्वी मिदनापुर में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया, उन्हें ले जाते समय हमला हुआ। इससे पहले संदेशखाली में ईडी की टीम को निशाना बनाया गया था, जहां अधिकारी राशन वितरण घोटाला मामले में जांच के लिए टीएमसी नेता शाहजहां शेख के घर संदेशखाली पहुंचे थे। 

ताजा प्रकरण पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि हमला एनआईए पर नहीं, बल्कि महिलाओं पर हुआ है, क्योंकि उन्होंने रात में छापेमारी की, इसलिए महिलाओं ने वैसे ही बर्ताव किया, जैसा रात में किसी भी अनजान व्यक्ति के आने पर किया जाता है। वर्ष 2019 में जब शारदा घोटाले के मामले में सीबीआई टीम कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करने पहुंची थी, तो मुख्यमंत्री कुमार के आवास के बाहर धरने पर बैठ गई थीं। इसके पहले तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता और मंत्री अरूप विश्वास के घर पर भी जब आयकर विभाग का छापा पड़ा था तो उनके कार्यकर्ताओं ने हमला बोल दिया था।

इसी प्रकार फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी और मदन मित्रा की गिरफ्तारी के समय भी सीबीआई कार्यालय पर हमले की घटना हुई थी। साफ है कि पश्चिम बंगाल प्रशासन अनेक विवादास्पद मामलों पर केंद्र के साथ दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हो जाता है। सवाल यह है कि पश्चिम बंगाल सरकार को केंद्र की कार्रवाई को स्वीकार करने में क्या समस्या है? यदि कोई बेगुनाह है तो उसे अदालत छोड़ सकती है। 

किंतु उसके पहले वह जांच प्रक्रिया में क्यों बाधा बनना चाहती है? यह बात कहीं न कहीं यह भी इशारा करती है कि दाल में कुछ काला तो अवश्य है वर्ना इतना शोर भी नहीं होता। दरअसल केंद्र और राज्य की जांच एजेंसियां घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए काम करने के लिए बनाई गई हैं। यदि मामलों को सिरे से खारिज किया जाता रहेगा तो अपराधियों को अप्रत्यक्ष तौर पर सरकारी आश्रय मिलता रहेगा। इसका असर सरकार पर तो होगा ही, आपराधिक मानसिकता के लोगों का हौसला भी बढ़ेगा। इसलिए राज्य सरकार को चाहिए कि वह जांच एजेंसियों को अपना काम करने दे, जिससे केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय का सिलसिला न टूटे। जहां न्याय की जरूरत है वहां अवश्य ही न्याय मिले।

टॅग्स :पश्चिम बंगालएनआईएसीबीआईCentral GovernmentMamta Banerjee
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