संसद ने किसी कानून को स्पष्ट बहुमत से पारित किया हो और उसके खिलाफ इतना जबर्दस्त आंदोलन चल पड़ा हो, ऐसा स्वतंत्न भारत के इतिहास में कम ही हुआ है. इस नए नागरिकता कानून को पिछले हफ्ते तक सिर्फ मुस्लिम-विरोधी बताया जा रहा था लेकिन अब मालूम पड़ रहा है कि बंगाल और पूर्वोत्तर के सभी प्रांतों के अन्य वर्गो के लोग भी इसका विरोध कर रहे हैं. देश के गैर-भाजपाई राज्यों के कई मुख्यमंत्रियों ने कह दिया है कि इस कानून को वे अपने प्रदेशों में लागू नहीं करेंगे. देश के 16 प्रांतों में गैर-भाजपाई मुख्यमंत्नी हैं.तो क्या केंद्र सरकार इन मुख्यमंत्रियों को बर्खास्त करेगी? बिहार के नीतीश कुमार की सरकार, जो भाजपा के समर्थन से चल रही है, उसने भी हाथ ऊंचे कर दिए हैं. इस समय देश जिस भयंकर आर्थिक खाई की तरफ बढ़ता जा रहा है, उसका इलाज करने के बजाय केंद्र सरकार ने यह नया शोशा छोड़ दिया है. देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) गिरता जा रहा है, महंगाई बढ़ती जा रही है, बेरोजगारी बेलगाम हो रही है और सभी पार्टियों के नेता इस फर्जी मुद्दे पर आपस में भिड़ रहे हैं.
सरकार ने नागरिकता के मुद्दे को तूल देकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश को तो एक मंच पर ला ही दिया है, वह भारत के सभी विरोधी दलों को भी एकजुट होने का बहाना दे रही है. सर्वोच्च न्यायालय में इस नागरिकता कानून को रद्द करवाने के लिए दर्जनों याचिकाएं रोज लग रही हैं.यह तो स्पष्ट है कि सरकार धर्मसंकट में पड़ गई है. अब यह सिर्फ न्यायपालिका के जिम्मे है कि चक्रव्यूह में फंसी भाजपा सरकार को वह किसी तरह से बाहर निकाले. यह कानून ऐसा है, जो भाजपा के माथे पर सांप्रदायिकता का काला टीका तो जड़ ही देता है, देश की छवि भी धूमिल करता है.
यह कानून सिर्फ मुस्लिम-विरोधी होता तो पूर्वोत्तर भारत के अन्य धर्मावलंबी इसका विरोध क्यों करते? यह वास्तव में इंसानियत-विरोधी है. कोई भी इंसान किसी भी जाति, धर्म, वंश या रंग का हो, यदि वह पीड़ित है तो उसे शरण देना किसी भी सभ्य देश का कर्तव्य होता है.