25 साल से पत्रकारिता में सक्रिय। नियमित स्तंभकार। बाजारवाद के दौर में मीडिया पुस्तक प्रकाशित। मशहूर पत्रिका दिनमान का मोनोग्राफ लेखन। लिखना यानी जिंदगी, पढ़ना यानी डिप्रेशन लेकिन दोनों से अथाह प्यार।Read More
महिलाएं अब पहले की तरह अपने घर के पुरुषों की पसंद वाले दलों और प्रत्याशियों को वोट नहीं दे रहीं, बल्कि अपनी पसंद वाले प्रत्याशी और दल वोट दे रही हैं। ...
लोकतांत्रिक समाज में चुनावी मैदान को पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए ही सीमित करना संभव नहीं है लेकिन यह सवाल जरूर उठता रहा है कि सियासी मैदान में फिल्मी सितारों का उतरना कितना जायज है? ...
मायावती के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावी दलों का मोर्चा बनाने की कोशिशों में जुटी कथित सांप्रदायिकता विरोधी वैचारिकी और राजनीति को बड़ा झटका लगा है। ...
Social media: सोशल मीडिया पर भरोसा इतना बढ़ा कि इसके जरिये दुनिया में उन अंधेरे कोनों में लोकतंत्र की रोशनी नजर आने लगी, जहां अभी तक लोकतंत्र नहीं पहुंच पाया है. ...
अंग्रेजों ने जब चाय के बागानों को विकसित किया तो उसमें काम करने के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और उड़ीसा (ओडिशा) से भारी संख्या में मजदूर लाए गए। ...
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बार कहा था, “सभी को समय से न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, समान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में निर्णय लेने की व्यवस्था हो और खासकर महिलाओं और कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय मिले, यह हम सबकी जिम्मेदारी है।” ...
इन दिनों तीन क्षेत्रीय दल ऐसे हैं, जिनकी महत्वाकांक्षा छुपाए नहीं छुप रही है. अपने क्षेत्र या राज्य की सीमाओं के बाहर सफल राजनीतिक कुलांचे भरने के लिए वे लगातार कोशिश कर रहे हैं. ...