ब्लॉग: महिला वोट बैंक को लुभाने की दौड़
By उमेश चतुर्वेदी | Published: April 19, 2024 09:46 AM2024-04-19T09:46:14+5:302024-04-19T09:46:19+5:30
महिलाएं अब पहले की तरह अपने घर के पुरुषों की पसंद वाले दलों और प्रत्याशियों को वोट नहीं दे रहीं, बल्कि अपनी पसंद वाले प्रत्याशी और दल वोट दे रही हैं।
मौजूदा दौर में भारत की पहचान ऐसे समाज की है, जहां सामाजिक और आर्थिक फैसलों में पुरुषों की ही बात मानी जाती रही है। लैंगिक असंतुलन भी इसी सोच का नतीजा माना जाता रहा है। लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं। चुनाव की तारीखों की घोषणा करते वक्त चुनाव आयोग ने एक ऐसा आंकड़ा दिया था, जो बदलते भारतीय समाज की कहानी कह रहा है।
आयोग के मुताबिक देश के बारह राज्य ऐसे हैं, जहां महिला वोटरों की संख्या पुरुष मतदाताओं की तुलना में ज्यादा है. आयोग ने यह तो नहीं बताया कि महिलाओं की बड़ी संख्या में उन राज्यों के लोकतांत्रिक व्यवहार में कैसा बदलाव आ रहा है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और स्वायत्त फैसले लेने की प्रवृत्ति का नतीजा नजर आने लगा है।
उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि के पिछले विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की आशातीत सफलता की वजह महिलाएं मानी गईं। चुनावी जानकार कल्याण योजनाओं के जरिये उपजे नए वर्ग में महिलाओं की भारी संख्या को सम्मिलित मानते हैं। बेशक महिलाएं अब मतदान में अपनी स्वायत्त सोच का परिचय दे रही हैं। महिलाएं अब पहले की तरह अपने घर के पुरुषों की पसंद वाले दलों और प्रत्याशियों को वोट नहीं दे रहीं, बल्कि अपनी पसंद वाले प्रत्याशी और दल वोट दे रही हैं। यहां ध्यान देने की बात यह है कि महिला प्रधान ये ज्यादातर सीटें उत्तर पूर्व, पूर्व और दक्षिण भारत के राज्यों में हैं।
इन राज्यों में ज्यादातर चुनाव पहले से तीसरे दौर में ही खत्म हो जाना है इसलिए सभी दलों ने महिला वोटरों को लुभाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. पूर्वी भारत के राज्य बंगाल में संदेशखाली का मुद्दा उठाना हो, या दक्षिण भारत की महिलाओं का उनकी सोच के मुताबिक सांस्कृतिक सम्मान बढ़ाने की बात हो या फिर उत्तर पूर्वी राज्यों में बेहतर शासन व्यवस्था देने की बात हो, भाजपा बाकी राजनीतिक दलों से आगे आने की कोशिश कर रही है।
यह सच है कि महिला प्रधान सीटों पर भी चुनाव नतीजों को सिर्फ महिलाओं का मतदान ही प्रभावित नहीं कर रहा। हर सीट पर दूसरे भी कारक किसी खास प्रत्याशी के पक्ष या विपक्ष में मतदान को प्रभावित करते हैं, जिसकी वजह से नतीजों पर असर पड़ता है। लेकिन यह भी सच है कि महिलाएं अब उसी तरह नया वोट बैंक बन रही हैं जैसे उत्तर भारत में जातीय और धार्मिक समूह वोट बैंक बनते रहे हैं। इसीलिए अब महिलाओं को साधने की कोशिश में राजनीतिक दल भी जुट रहे हैं।
फिलहाल इस दौड़ में भाजपा और उसके अगुआ ज्यादा आगे दिख रहे हैं। यह बात और है कि सीमित ही सही, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में आम आदमी पार्टी इस दौड़ में शामिल दिख रही है।