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11 सितंबर तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी, राष्ट्रपति बाइडन ने की घोषणा, जानें भारत पर क्या होगा असर

By भाषा | Updated: April 15, 2021 20:01 IST

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने देश में 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमलों की 20वीं बरसी से पहले अफगानिस्तान से अपने अंतिम 2,500 सैनिकों को वापस बुलाने की योजना बनाई है.

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ठळक मुद्देऑस्ट्रेलिया के 39,000 से अधिक सैनिकों ने 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अपनी सेवा दी है.आतंकवादियों द्वारा पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल किया जाना भारत के लिए चिंता का विषय होगा.2001 में ही अफगानिस्तान में अल कायदा के आतंकवादियों के खिलाफ जंग शुरू हुई थी.

वाशिंगटनः अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की है कि इस साल 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया जाएगा.

व्हाइट हाउस से बुधवार को टेलीविजन के माध्यम से संबोधित कर रहे बाइडन ने कहा कि 11 सितंबर (2001) की घटना के 20 साल पूरे होने से पहले अमेरिकी सैनिकों के साथ नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) के देशों और अन्य सहयोगी देशों के सैनिक भी अफगानिस्तान से वापस आएंगे.

इसके बाद बाइडेन ने आर्लिंगटन नेशनल सिमेट्री (सैन्य स्मारक) जाकर, अफगानिस्तान युद्ध में जान गंवाने वाले अमेरिकी सैनिकों को श्रद्धांजलि दी. न्यूयॉर्क में 11 सितंबर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले के बाद 2001 में ही अफगानिस्तान में अल कायदा के आतंकवादियों के खिलाफ जंग शुरू हुई थी.

सैन्य स्मारक पर एक सवाल के जवाब में बाइडन ने कहा कि सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला कोई कड़ा निर्णय नहीं है.राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बाइडेन ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ उनका प्रशासन हमेशा सतर्क और सचेत रहेगा. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में शांति और भविष्य में स्थिरता के लिए भारत, पाकिस्तान, रूस, चीन और तुर्की की अहम भूमिका है.

युद्धग्रस्त देश में शांति बनाए रखने में इन देशों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. अपने संबोधन में बाइडन ने कहा कि हम लोग क्षेत्र में अन्य देशों से अफगानिस्तान के समर्थन में और अधिक सहयोग के लिए कहेंगे. विशेषकर पाकिस्तान, रूस, चीन, भारत और तुर्की से क्योंकि इन सभी देशों की अफगानिस्तान के स्थिर भविष्य में अहम भूमिका है.

फैसले पर विशेषज्ञों ने जताई चिंताः हालांकि, विशेषज्ञों ने अमेरिका और नाटो के सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाए जाने के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा है कि क्षेत्र में तालिबान का फिर से पांव पसारना और अफगानिस्तान की जमीन को आतंकवादियों द्वारा पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल किया जाना भारत के लिए चिंता का विषय होगा.

पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन में राष्ट्रपति की उपसलाहकार और 2017-2021 के लिए दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों में एनएससी की वरिष्ठ निदेशक रहीं लीजा कर्टिस ने कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाए जाने से क्षेत्र के देश, खासकर भारत देश में तालिबान के फिर से उभरने को लेकर चिंता होगी.

कर्टिस वर्तमान में सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) थिंक-टैंक में हिंद-प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की सीनियर फेलो और निदेशक हैं. अमेरिका के लिए पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और वर्तमान में हडसन इंस्टीट्यूट थिंक-टैंक में निदेशक हुसैन हक्कानी ने कहा कि तालिबान के कब्जे वाले क्षेत्र के फिर से आतंकवादियों के लिए पनाहगाह बनने से भारत चिंतित होगा.

उन्होंने कहा कि वास्तविक सवाल यह है कि क्या सैनिकों को वापस बुलाए जाने के बाद भी अमेरिका अफगानिस्तान सरकार को मदद जारी रखेगा, ताकि वहां के लोग तालिबान का मुकाबला करने में सक्षम हों. तालिबान ने अब तक शांति प्रक्रिया में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और दोहा में हुई वार्ताओं में उसने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की बात को ही दोहराया है. वाशिंगटन पोस्ट ने अपने संपादकीय में कहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की बाइडेन की योजना क्षेत्र के लिए घातक हो सकती है.

अफगानिस्तान में बचे अंतिम 80 सैनिकों को वापस बुलाएगा ऑस्ट्रेलियाः ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने गुरुवार को कहा कि देश, अमेरिका और अन्य सहयोगियों की तरह ही अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का काम सितंबर तक पूरा कर लेगा. नाटो नीत मिशन में ऑस्ट्रेलिया का योगदान एक वक्त में 15,000 सैनिकों के पार चला गया था, लेकिन अब वहां 80 ही कर्मी बचे हैं.

चीन तेजी से निकट प्रतिद्वंद्वी बन रहा, कई चुनौतियां पैदा कर रहा: अमेरिका के एक शीर्ष खुफिया अधिकारी ने सांसदों से कहा कि चीन तेजी से अमेरिका का निकट प्रतिद्वंद्वी बन रहा है, जिससे कई क्षेत्रों में चुनौतियां खड़ी हो गईं और साथ ही वह वैश्विक नियमों में भी इस तरह से बदलाव कर रहा है, जिससे चीन की तानाशाही व्यवस्था को फायदा मिले.

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