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मध्य प्रदेश चुनाव: भाजपा हर विधानसभा सीट पर टटोल रही है जमीन की हकीकत, रतलाम में फीलगुड के साथ नाराजगी भी है

By राजेश मूणत | Published: August 28, 2023 2:36 PM

प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने एक-एक विधानसभा सीट की धरातल की स्थिति को पिछले एक सप्ताह से टटोल रही है।

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ठळक मुद्देभाजपा मध्य प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर धरातल की स्थिति को तौल रही हैपार्टी ने मौजूदा विधायकों के रिपोर्ट कार्ड टटोलने के लिए गुजरात के विधायकों को काम पर लगाया हैरतलाम विधानसभा क्षेत्र में गुजरात के भाजपा विधायक इंद्रजीत परमार ने डेरा डाला था

भोपाल: प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने एक-एक विधानसभा सीट की धरातल की स्थिति को पिछले एक सप्ताह से टटोल रही है। पार्टी ने मौजूदा विधायकों के रिपोर्ट कार्ड टटोलने के लिए गुजरात के विधायकों को काम पर लगाया है। रतलाम विधानसभा क्षेत्र में गुजरात के विधायक इंद्रजीत परमार ने डेरा डाला था। परमार गुजरात सूरत की बारडोली सीट से विधायक है।

पार्टी पर्यवेक्षक के रूप में आए विधायक परमार की स्थानीय संगठन ने तगड़ी घेराबंदी की थी। उनके साथ विश्वासपात्र लोगो का जमावड़ा लगाया गया था। स्थानीय पार्टी संगठन ने पुरजोर प्रयास किया था की परमार पर स्थानीय स्तर पर नाराज लोगों की छाया भी नहीं पड़े। सूत्र बताते है की इसके बावजूद भाजपा के कई आम कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं ने विधायक परमार को पार्टी की मौजूदा हालत से बेबाकी से रूबरू कराया।

बताया जा रहा है की पार्टी के एक कद्दावर नेता ने परमार को पार्टी संगठन की कमजोरियों के साथ आम लोगों और कार्यकर्ताओं में व्याप्त नाराजगी के बारे में पूरी जानकारी दी है। बताया जा रहा है की एक तरफ परमार के सामने आम कार्यकर्ताओं की नाराजगी खुलकर सामने आ रही थी, वहीं दूसरी तरफ पार्टी संगठन फील गुड  की स्थिति बता रहा था।

क्या रहा रिपोर्ट कार्ड

पार्टी संगठन के फीलगुड के विपरित स्थानीय कार्यकर्ताओं में निराशा और हताशा हैं। भाजपा से जुडे लोग कहते है की लंबे समय तक रतलाम के कार्यकर्ताओं का वास्ता आम जनता से सीधे जुड़े रहने वाले जनप्रतिनिधियों  से रहा। लेकिन वर्तमान विधायक का तौर तरीका कारपोरेट कल्चर का है।

पार्टी की व्यवस्थाओं में इससे बड़ा बदलाव आ गया। कार्यकर्ताओं की जगह कारपोरेट सेक्टर के पेड वर्करों ने हथिया ली। रतलाम शहर विधानसभा सीट पर चैतन्य काश्यप विधायक है। वे पिछले दो चुनावों में मतों के बड़े अंतर से विजेता रहे हैं। वे मिलेनियर उद्योगपति है और और प्रबंधन के बाजीगर माने जाते है।

पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ आम लोगो ने भी उनसे बड़ी उम्मीदें जोड़ रखी थी। सबसे बड़ी उम्मीद रतलाम के औद्योगिक विकास को लेकर थी। लेकिन उनके पूरे कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय उद्योग नहीं लग पाया। उद्योग जगत से जुड़े लोगों का कहना है की  शहर के उद्योगों के लिए समीपस्थ ग्राम कनेरी में बने बांध से रतलाम के औद्योगिक क्षेत्र तक पानी पहुंचाने की योजना थी। लेकिन डैम बने वर्षों बीत गए और चंद किलोमीटर दूर पानी नहीं आ सका।

पानी के अभाव में बीते 10 वर्षों में रतलाम में एक भी उद्योग नहीं लग पाया। लोग यह भी कहते है की कनेरी डैम की योजना का श्रेय पुराने जनप्रतिनिधि के खाते में जाता। इसलिए इस योजना पर आगे काम नहीं हुआ और शहर के विकास को दांव पर लगा दिया गया। शहर के सर्वांगीण विकास के मुद्दे पर लोग निकटवर्ती अन्य शहरों से रतलाम की तुलना कर नाराजगी जाहिर करते मिल जाते हैं।

रतलाम के निकटवर्ती उज्जैन और इंदौर ने विगत वर्षों में रफ्तार से प्रगति की, लेकिन रतलाम की प्रगति का पहिया थम गया। इसका एक और बड़ा कारण रतलाम शहर के विकास प्राधिकरण जैसे महत्वपूर्ण संस्थान पर चुनावी साल के अंत में की गई नियुक्ति है। पार्टी कार्यकर्ता 8 वर्षों तक प्राधिकरण में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने के पीछे नाम विशेष के लिए हुई हठधर्मिता को जिम्मेदार मानते है।

अब जब नियुक्ति हुई तब चुनाव आ गए। नियुक्त अध्यक्ष के लिए कुछ करने  को बाकी नहीं रह गया। बात प्रशासनिक व्यवस्थाओं की निकलने पर लोग स्थानीय निकाय नगर पालिक निगम में कमिश्नर जैसा महत्वपूर्ण पद भी चहेते अफसरों के हवाले करने की बात का हवाला देते हैं।

इस संबंध में एक पूर्व पार्षद कहते हैं की  मुख्यमंत्री ने गंभीर शिकायतों के चलते जिस अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निगम के दायित्वों से हटाया था। उसे पुनः रतलाम में पदस्थ करवाया गया। इस कारण नगर निगम जैसी संस्था जिससे आम लोगो का सीधा वास्ता पड़ता है। वह भ्रष्टाचार का केंद्र बन गया, निगम के अफसरों ने भवन निर्माण की अनुज्ञा के लिए सिर्फ रतलाम में ऐसे नियमों के अड़ंगे लगाए जो प्रदेश में अन्यत्र लागू नहीं थे।

इसमें विभाजित प्लाट पर भवन निर्माण की अनुज्ञा नहीं देने का मामला सबसे महत्वपूर्ण रहा। इसके बारे में आम धारणा यह बन गई की सांठ गांठ के चलते इससे कथित कालोनाइजरों को बड़ा फायदा पहुंचा। आम लोगों के छोटे छोटे काम अटकते रहे और वरदहस्त प्राप्त कुछ कालोनाइजरों की ग्रीन बेल्ट की जमीन  आवासीय में तब्दील होने जैसे कार्य बगैर किसी बाधा के हो गए।

इसके विपरित प्रशासन के राजस्व से लगाकर पुलिस तक सब जगह कार्यकर्ता तो ठीक पार्टी के बड़े बड़े पदाधिकारीयों तक की सुनवाई नहीं हुई। संघ परिवार के संगठन एबीवीपी के निरपराध कार्यकर्ताओं पर झूठे मुकदमे बने। कपड़े उतारकर थाने में पीटा गया, हवालात में भेज दिया गया। लेकिन उनके पक्ष में कोई आवाज नहीं उठाई गई।

बड़ी नाराजगी का कारण उपेक्षा

रतलाम का आम भाजपाई संगठन और सत्ता पक्ष दोनों और से मिली उपेक्षा को नाराजगी का बड़ा कारण बताता है। हर कोई यह बोलता है की रतलाम में कार्यकर्ताओं की बात किसी भी स्तर पर सुनने वाला कोई नहीं रह गया। पिछले 10 वर्षों में उपलब्धि के नाम पर भी रतलाम में मेडिकल कालेज का एकमात्र नाम बताया जाता है। लेकिन कालेज में व्याप्त ढेरों अव्यवथाओं के कारण उस महत्वपूर्ण संस्थान से भी लोगो का मोह भंग हो गया।

इसलिए यह उपलब्धि भी अब लोगों को प्रभावित नहीं कर सकती हैं। आम भाजपा कार्यकर्ताओं का फीडबैक क्या रहा? इस सवाल का जवाब तो कोई नही दे रहा लेकिन सूत्र का कहना था की गुजरात से आए विधायक परमार को कार्यकर्ताओं ने रतलाम विधायक की कारपोरेट शैली और मिलने की लंबी प्रक्रिया के किस्से चटखारे ले लेकर सुनाए।

किस तरह कार्यकर्ता या आम आदमी विधायक के बहुचर्चित कारपोरेट कार्यालय में समय ले पाता है। उसके बाद वहां किस तरह मैनेजमेंट के धुरंधरों से उसका वास्ता पड़ता है। तब कहीं मुलाकात हो पाती है। कारपोरेट सिस्टम की इन प्रक्रियाओं और समय लेने में चकरघिन्नी बनने की कार्यकर्ताओं की बात सुनने के बाद गुजरात विधायक परमार अपनी रिपोर्ट में हाईकमान को क्या जानकारी देते है?

क्या उनकी रिपोर्ट प्रत्याशी चयन का आधार बनेगी। यह सब भविष्य के गर्भ में है। फिलहाल तो रतलाम में भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी के साथ-साथ टिकट दावेदारों से भी मुकाबला करना है क्योंकि कार्यकर्ताओं की नाराजगी के कारण भाजपा महापौर प्रत्याशी की जीत हजारों मतों से घटकर कुछ हजार तक आ गई थी। कार्यकर्ताओं को हताश और निराश स्थिति से  बाहर लाना वर्तमान में रतलाम में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

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