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दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाओं के खतना मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की संविधान पीठ करेगी फैसला

By भाषा | Published: September 24, 2018 8:30 PM

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों की संविधान पीठ ने एकमत से धारा 377 के तहत समलैंगिकता को गैर-आपराधिक करार दिया।

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नयी दिल्ली, 24 सितंबर: उच्चतम न्यायालय ने दाऊदी बोहरा मुस्लिमों में प्रचलित महिलाओं के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को पांच न्यायाधीशों वाली एक संविधान पीठ को भेज दी।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने दाऊदी बोहरा वीमन्स एसोसिएशन फॉर रिलीजियस फ्रीडम (डीबीडब्ल्यूआरएफ) की दलीलों पर विचार किया कि महिलाओं के खतना की प्रथा दाऊदी बोहरा समुदाय में सदियों से है और इसकी वैधता का परीक्षण एक बड़ी पीठ को करना चाहिये कि क्या यह अनिवार्य धार्मिक प्रथा है जो संविधान के तहत संरक्षित है।

केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सरकार के पुराने रुख को दोहराया था कि वह इस प्रथा के खिलाफ है क्योंकि इससे मौलिक अधिकारों का हनन होता है। उन्होंने कहा था कि यह अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और करीब 27 अफ्रीकी देशों में प्रतिबंधित है। 

उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 25 का भी उल्लेख किया था जिसमें कहा गया है कि अगर कोई धार्मिक प्रथा ‘लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ के खिलाफ जाती है तो इसे रोका जा सकता है।

वेणुगोपाल ने एफजीएम की प्रथा के खिलाफ दिल्ली की वकील सुनीता तिवारी की जनहित याचिका को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने की डीबीडब्यूआरएफ की दलीलों का आज समर्थन किया। डीबीडब्ल्यूआरफ का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी कर रहे थे। 

संविधान पीठ के पास जाएगा मामला

न्यायालय ने केंद्र समेत पक्षकारों के लिखित कथन पर विचार किया और कहा कि वह याचिका को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने के लिये आदेश देगी।

मामले को संविधान पीठ के पास भेजने पर निराशा जाहिर करते हुए अधिवक्ता और एनजीओ ‘वी स्पीक आउट’ की संस्थापक मासूमा रानालवी ने कहा कि एफजीएम के संवैधानिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले मुद्दे से धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में इस भेदभावपूर्ण प्रथा को जारी रखने के अधिकार की ओर ले जाने का प्रयास है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह साफ तौर पर मामले में फैसला में विलंब करने के इरादे से किया गया है जिसमें तीन न्यायाधीशों की पीठ पहले ही विस्तार से दलीलें सुन चुकी है, जिसके समक्ष यह लंबित है।’’ 

इससे पहले डीबीडब्ल्यूआरएफ ने कहा था कि अदालतों को जनहित याचिका के माध्यम से महिलाओं के खतना की सदियों पुरानी धार्मिक प्रथा की संवैधानिकता पर फैसला नहीं करना चाहिये। 

टॅग्स :सुप्रीम कोर्टजस्टिस दीपक मिश्रामहिला
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