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गोरखपुर लोकसभा चुनाव: योगी की प्रतिष्ठा दांव पर, निषाद वोटर्स के हाथों में जीत की चाभी, जानें राजनीतिक समीकरण

By निखिल वर्मा | Published: May 17, 2019 8:44 AM

पूर्वांचल में बीजेपी की परंपरागत सीटों की बात की जाए तो उनमें से गोरखपुर एक है। इस सीट पर अब तक 18 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें से 9 बार गोरक्षपीठ का ही कब्जा रहा है।

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ठळक मुद्देराजमती निषाद और उनके बेटे अमरेंद्र बीजेपी छोड़कर अब सपा के साथ हैं।गोरखपुर में करीब 20 लाख मतदाता हैं जिसमें करीब 4 लाख निषाद वोटर्स हैं।

लोकसभा चुनाव 2019 के आखिरी और सातवें चरण में गोरखपुर संसदीय सीट पर 19 मई को मतदान होगा। बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले सीट पर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां से लगातार 5 बार सांसद रहे हैं। लोकसभा उप चुनाव 2018 में इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी के हार के बाद सीएम योगी की प्रतिष्ठा फिर दांव पर है।

इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी और भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार रवि किशन, समाजवादी पार्टी के रामभुआल निषाद व कांग्रेस के मधुसूधन तिवारी के बीच मुकाबला है।

बीजेपी के गढ़ में सपा ने लगाई सेंध

पूर्वांचल में बीजेपी की परंपरागत सीटों की बात की जाए तो उनमें से गोरखपुर एक है। इस सीट पर अब तक 18 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें से 9 बार गोरक्षपीठ का ही कब्जा रहा है। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद इस सीट पर पिछले साल उप चुनाव हुए थे। उप चुनाव में निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद ने सपा के टिकट पर बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र दत्त शुक्ला को करीब 22 हजार वोटों से हराया था। इस हार को योगी के लिए बड़ा झटका माना गया।

एनडीए से जुड़े प्रवीण निषाद

प्रवीण के पिता संजय निषाद ने 'निषाद पार्टी' की स्थापना 2016 में की थी। लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही प्रवीण निषाद ने एनडीए से नाता जोड़ लिया। हालांकि वह इस बार गोरखपुर की जगह संतकबीर नगर से चुनाव लड़ रहे हैं। 

दिवंगत जमुना प्रसाद के परिवार की सपा में वापसी

निषादों के दिग्गज नेता रहे जमुना प्रसाद की पत्नी राजमती निषाद और उनके बेटे अमरेंद्र बीजेपी छोड़कर अब सपा के साथ हैं। लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर में भी राजमती निषाद ने सपा के टिकट पर 2.25 लाख वोट पाने में सफल रही थीं। राजमती एक बार विधायक भी रह चुकी हैं।

रवि किशन की राह मुश्किल

गोरखपुर में करीब 20 लाख मतदाता हैं जिसमें करीब 4 लाख निषाद वोटर्स हैं। इस सीट पर यादवों और मुसलमानों की आबादी अच्छी खासी है। गोरखपुर की तीन विधानसभा सीटों पिपराइच, कैंपीयरगंज और सहजनवा में निषाद समुदाय की अच्छी संख्या है। ये समीकरण महागठबंधन के पक्ष में जाता दिख रहा है।

1998 लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ 26 हजार और 1999 में सात हजार वोटों से जीत पाने में सफल हुए थे। दोनों बार उन्होंने सपा के जमुना प्रसाद निषाद को हराया था। उस समय बीएसपी ने दोनों चुनावों में यादव उम्मीदवार दिया था जिसका नुकसान सपा को झेलना पड़ा था। लेकिन इस बार बीएसपी-एसपी साथ हैं।

गोरखपुर सदर विधानसभा के रहने वाले प्रतीक श्रीवास्तव कहते हैं, इस सीट पर हार जीत का फैसला निषाद वोटर्स ही करेंगे। बीजेपी ने रवि किशन को टिकट दिया है, जिन्हें यहां बाहरी उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है।

प्रतीक बताते हैं, योगी आदित्यनाथ को सभी जातियों के वोट मिलते रहे हैं। दरअसल योगी आदित्यनाथ की पहचान हिंदूवादी नेता की है। उनके खड़े होने पर जातियों का वोट बैंक हिंदू वोटबैंक बन जाता है। लेकिन रवि किशन को ये लाभ नहीं मिलने वाला। इसके अलावा कांग्रेस ने भी बाह्णण उम्मीदवार दिया है। भले ही इस सीट पर कांग्रेस का आधार नहीं बचा है लेकिन मधुसूधन तिवारी की छवि अलग है। तिवारी वरिष्ठ वकील हैं और गोरखपुर बार काउंसिल के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। स्थानीय चेहरे होने के कारण वह बीजेपी के सवर्ण वोट को ही काटेंगे।

पहले भी हार चुका है मठ

गोरखपुर में बीजेपी के लिए मुश्किल हिंदू युवा वाहिनी के बागी नेता भी कर रहे हैं। हिंदू युवा वाहिनी के बागी प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह प्रवीण तोगड़िया की पार्टी हिंदुस्तान निर्माण दल के प्रत्याशी हैं।  इस सीट पर योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ और उनके गुरु दिग्विजय नाथ भी हार चुके हैं। 1962 में कांग्रेस नेता ठाकुर सिंहासन सिंह ने महंत दिग्विजय नाथ को हराया था। इसके अलावा दूसरी बार 1971 में कांग्रेस के ही नरसिंह नारायण पांडेय ने महंत अवैद्यनाथ को शिकस्त दी थी। 

बीजेपी को शहरी वोटर्स से आस

लोकसभा उप चुनाव 2018 में बीजेपी के शहरी वोटर्स वोट देने के लिए नहीं निकले थे। गोरखपुर के बसारतपुर के रहने वाले शैलेंद्र द्विवेदी कहते हैं, पिछले चुनाव में यह चर्चा उड़ गई थी मठ के पसंद के उम्मीदवार को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया। इस वजह से भी कुछ लोग वोट देने नहीं निकले थे। अगर इस चुनाव में भी शहरी क्षेत्रों के वोटर्स नहीं निकले तो बीजेपी की राह बेहद कठिन होगी।

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