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Haryana Elections 2024: राजनीतिक हाशिये पर पहुंचते हरियाणा के लाल परिवार

By राजकुमार सिंह | Updated: September 9, 2024 05:32 IST

Haryana Elections 2024: तीनों लालों ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी, लेकिन  तीनों ने ही कांग्रेस छोड़ी भी. 

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ठळक मुद्देसत्ता-राजनीति की मुख्य धारा से दूर हाशिये पर नजर आ रहे हैं. राजनीति अपने लिए टिकट की जोड़तोड़ तक सिमट कर रह गई है.किरण चौधरी को आखिरकार भाजपा की शरण में जाना पड़ा.

Haryana Elections 2024: राजनीति भी अजब खेल है. दशकों तक हरियाणा में सत्ता-राजनीति के केंद्र रहे तीनों चर्चित लालों यानी बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के परिवार इस विधानसभा चुनाव में हाशिये पर हैं. एक नवंबर, 1966 को पृथक राज्य बने हरियाणा की राजनीति में दशकों तक इन तीन लालों की तूती बोलती रही. तब उन लालों के बिना कोई भी दल हरियाणा में राजनीति करने की सोच भी नहीं सकता था, पर अब जबकि हरियाणा के मतदाता अपनी नई विधानसभा और सरकार चुनने के लिए पांच अक्तूबर, 2024 को वोट डालने जा रहे हैं तो उन लाल परिवारों के परिजन सत्ता-राजनीति की मुख्य धारा से दूर हाशिये पर नजर आ रहे हैं. बेशक तीनों लालों ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी, लेकिन  तीनों ने ही कांग्रेस छोड़ी भी.

तथ्य यह भी है कि पिछले दस साल से हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा देवीलाल और बंसीलाल के दल के साथ गठबंधन कर राजनीति करती रही, लेकिन पिछले एक दशक में तीनों ही लाल परिवार उसका कमल थामे नजर आए. जो परिवार हरियाणा में लोगों को नेता बनाते थे, आज उनकी राजनीति अपने लिए टिकट की जोड़तोड़ तक सिमट कर रह गई है.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लंबी तनातनी के बाद किरण चौधरी को आखिरकार भाजपा की शरण में जाना पड़ा, जिसने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाने के बाद अब बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम से विधानसभा का टिकट भी दे दिया है. इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने श्रुति को भिवानी-महेंद्रगढ़ से टिकट नहीं दिया था, जबकि वे वहां से सांसद रह चुकी हैं.

भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन की राजनीति पंचकुला और कालका विधानसभा सीट तक सिमट कर रह गई है. छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई का पूरा ध्यान बेटे भव्य को राजनीतिक रूप से स्थापित करने पर है. कोशिशों के बावजूद वह न भव्य को मंत्री बनवा पाए और न ही खुद राज्यसभा सांसद बन पाए.

बेशक आदमपुर से भव्य के अलावा भी इस बार भाजपा ने कुलदीप के कहने पर फतेहाबाद से डूडाराम और नलवा से रणधीर पनिहार को भी टिकट दे दी है, लेकिन कभी ‘दाता’ की हैसियत में रहा भजनलाल परिवार भी अब ‘याचक’ की मुद्रा में आ गया है. देवीलाल परिवार की कहानी कुछ अलग है. उसके सदस्य दो अलग-अलग दल चला रहे हैं.

ओमप्रकाश चौटाला अपने छोटे बेटे अभय के साथ मिल कर इनेलो चला रहे हैं तो बड़े बेटे अजय अपने दोनों बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के साथ मिल कर जजपा. इन दलों की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इनेलो को मायावती की बसपा से गठबंधन करना पड़ा है तो जजपा को उनके धुर विरोधी चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी से. समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि इनेलो और जजपा, दोनों ही खुद को हरियाणा की राजनीति में प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश कर रही हैं.

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