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गोरखपुर का डॉन, जिसने 23 मर्डर किए लेकिन इसकी कहानी सुन गुस्सा और तरस दोनों आएगा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 28, 2018 5:14 PM

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90 का दशक था, देश की राजनीति अपने उफान पर थी, मौसम से ज़्यादा सरकारें बदल रही थी और फिर इसी राजनीति से निकला एक शख्स गोरखपुर का श्रीप्रकाश शुक्ला,  जिसने  मात्र 25 साल की ऊम्र में 23 मर्डर किएआपने बहुत से क्रिमिनलस कि कहानी सुनी होगी लेकिन आज हम आपको इंडिया के एक ऐसे क्रिमिनल की कहानी बताएंगे, जिसे सुन के आपको गुस्सा भी आएगा और तरस भी।श्रीप्रकाश शुक्‍ला यूपी में 90 के दशक का डॉन था। अखबारों के पन्ने हर रोज उसी की सुर्खियों से रंगे होते। यूपी पुलिस हैरान-परेशान थी। नाम पता था लेकिन उसकी श्रीप्रकाश की कोई तस्‍वीर पुलिस के पास नहीं थी। बिजनेसमैन से उगाही, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती, पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के ठेके पर एकछत्र राज। बस यही पेशा था शुक्ला का।यूपी के गोरखपुर के ममखोर गांव में जन्मे श्रीप्रकाश शुक्ल को पहलवानी का शौक था। लेकिन 20 साल की उम्र में ही उसका नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। जब साल 1993 में उसने राकेश तिवारी नाम के लफंगे की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी।।।वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि राकेश ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजाई थी। फिर पुलिस से बचने के लिए गोरखपुर के एक नामी नेता की मदद से वह बैंकाक भाग गया और जब लौटा तो लगा अब सही हो चुका है लेकिन शिव प्रकाश शुक्ला के मूंह में खून लग चुका था।बिहार के मोकामा के डॉन सूरजभान कर रूप में उसे अपना गॉडफादर मिल चुका था फिर उसकी मदद से श्रीप्रकाश शुक्ल ने सुपारी लेकर मंत्रियों और बिजनेसमैन को मारना शुरू किया। एक अंदाजे के मुताबिक, अपने हाथों से उसने करीब 23 लोगों की जानें लीं। धीरे-धीरे उसने अपना एंपायर बिल्ड किया और यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल में सारे गैरकानूनी धंधे करने लगा1997 में विधायक वीरेंद्र शाही को गोलियों से भुनने बाद श्रीप्रकाश ने अपनी हिट लिस्ट में दूसरा नाम रखा कल्याण सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का। जो चिल्लूपार विधानसभा सीट से 15 सालों से विधायक थे। श्रीप्रकाश ने अचानक तय किया कि गोरखपुर की चिल्लूपार की सीट उसे चाहिए। उसने बहुत कम समय में बहुत दुश्मन बना लिए।श्रीप्रकाश शुक्ल के रिश्ते यूपी कैबिनेट के कई मंत्रियीं से थे, लेकिन शुक्ला के जुर्म से उन्हें खुद पे खतरा मंडराता दिख रहा था तो उन्होंने सरकार पर दबाव बना कर STF का गठन कराया जिसका एक ही मकसद था शुक्ला को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ने का।1998 के सितंबर महीने में STF ने शुक्ल की कॉल ट्रेस कर के उसकी लोकेशन का पता लगाया और ग़ाज़ियाबाद के मोहन नगर में हुई मुठभेड़ में अपने 4 साथियों के साथ शुक्ला को मार गया। शुक्ला यहां गाजियाबाद अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने आया था। लेकिन शुक्ला का ऐसा अंत नहीं होता अगर वह बदमाशी और रंगबाजी के नशे में चूर न होता। वह राजनीति में उतरना चाहता था और मुमकिन है कि जल्दी ही कानून से पटरी बैठा लेता। उसकी मौत से कुछ महीनों पहले लोग मजाक में कहने लगे थे कि कहीं वह यूपी का मुख्यमंत्री न बन जाए। वैसे श्रीप्रकाश शुक्ला की जिंदगी पर पिक्चर और एक वेब सीरीज भी बन चुकी है।
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