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Vijay Diwas, 1971 War: 13 दिन की जंग, 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का सरेंडर और दुनिया के नक्शे पर आया नया देश

By विनीत कुमार | Published: December 16, 2020 9:24 AM

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भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में 1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई हमेशा याद रखी जाएगी। इस लड़ाई में दुनिया ने न केवल भारत और भारतीय सैनिकों की सूझबूझ और ताकत देखी बल्कि एक नए देश बांग्लादेश का भी निर्माण हुआ। 3 दिसंबर, 1971 को शुरू हुई भारत-पाकिस्तान की ये लड़ाई 13 दिन चली और पाक सैनिकों के आत्मसमर्ण के साथ खत्म हुआ।
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विजय दिवस हर साल 16 दिसंबर को मनाया जाता है। यही वो दिन था जब पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारत के साथ आत्मसमर्पण किए। इसी जात को याद करते हुए भारत और बांग्लादेश में जश्न मनाया जाता है। आईए आज हम आपको 1971 की भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ी 10 रोचक बाते बताते हैं।
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1970 में पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की बड़ी पार्टी आवामी लीग सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति याहया खान नहीं चाहते थे कि पूर्वी पाकिस्तान से किसी पार्टी की सरकार बने। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान से दोयम दर्जे के व्यवहार की बात से गृह युद्ध के हालात शुरू हो गये।
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इसके बाद 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने बांग्लादेश की आजादी की घोषणा की। हालात को देखते हुए और बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तानी सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस बीच भारत ने भी बांग्लादेश की आजादी के संघर्ष को समर्थन देने के ऐलान किया।
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पाकिस्तानी सैनिक इस दौरान आंदोलन को दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में कत्लेआम मचाने में जुटे थे। ऐसे में बांग्लादेश से कई परिवार जान बचाने के लिए भाग कर भारत की ओर आने लगे।
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इससे भारत की भी मुश्किलें बढ़ने लगी थी और भारत को इस समस्या से निपटने के लिए भी कुछ ठोस कार्रवाई करनी थी। बहरहाल, तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की ओर से भारतीय ठिकानों पर हवाई हमले के बाद भारतीय सैनिक खुल कर इस अभियान में कूद पड़े।
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उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी साल के मध्य में ही पाकिस्तान पर भारत की चढ़ाई के पक्ष में थी। हालांकि, तब भारतीय सेना क अध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मॉनेकशॉ ने कहा कि भारतीय सेना अभी हमले के लिए तैयार नहीं है।
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कुछ महीनों की सघन तैयारी के बाद भारत इस युद्ध में पाकिस्तान की ओर से हुए हमले के बाद कूदा और ये लड़ाई करीब 13 दिन चली।
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पाकिस्तानी सेना तब पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना और मुक्तिवाहिनी लड़ाकों से घिर गई थी। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी बॉर्डर पर भी भारत ने पूरी शक्ति से धावा बोला। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान के 8000 सैनिक मारे गए और 25 हजार से अधिक घायल हुए।
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भारत के 3000 सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए और 12 हजार के करीब घायल हुए।
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उस समय के पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति बाहिनी ने कई जगहों पर पाकिस्तानी सैनिकों पर घात लगा कर हमला किया। भारतीय सेना भी उनका साथ देती रही। कुल मिलाकर पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूटता चला गया और आखिरकार 16 दिसंबर को उन्हें समर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा।
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युद्ध के अंतिम में 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी के नेतृत्व में भारत के सामने अपने हथियार डाल दिए। बाद में 1972 में शिमला एग्रीमेंट के तहत इन सैनिकों को भारत ने छोड़ दिया।
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