पटनाः बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में मतदाता अधिकार यात्रा के समापन के मौके पर राजद के झंडे और बैनरों का नदारद होना चर्चा का विषय बन गया है। गांधी मैदान से आंबेडकर मूर्ति तक के रास्ते में कांग्रेस और वीआईपी के बैनर छाए रहे, लेकिन राजद के झंडे-बैनरों का नहीं होने से सियासी गलियारे में अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है। दरअसल, मतदाता अधिकार यात्रा में राहुल गांधी के साथ तेजस्वी यादव ने भी हिस्सा तो लिया, लेकिन समापन के मौके पर राजद के नेताओं-कार्यकर्ताओं, झंडे और बैनरों की कम उपस्थिति ने सियासी हलचल भी मचा दी है।
सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि अधिकतर पोस्टरों में लालू यादव और तेजस्वी यादव की तस्वीरें भी नहीं थी। ऐसे में अब लोग सवाल यह पूछ रहे हैं कि क्या यह इंडिया गठबंधन में कांग्रेस ने अपनी बढ़ती ताकत का अहसास राजद को करा दिया है? क्या बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह महागठबंधन की आंतरिक खींचतान तो नहीं है?
उल्लेखनीय है कि मतदाता अधिकार यात्रा के दौरान कांग्रेस ने राजद नेता तेजस्वी यादव को बिहार का भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने से परहेज किया। यही नही इस संबंध में पत्रकारों के द्वारा पूछे गए सवाल पर राहुल गांधी ने गोलमटोल जवाब देकर सियासत में नई बहस का मौका दे दी है।
वहीं पटना में यात्रा के समापन को कांग्रेस ने ‘गांधी से आंबेडकर’ मार्च का नाम देकर दलित और पिछड़े वर्गों को साधने की रणनीति अपनाई। जबकि इसके लिए राजद से कोई सहमति नहीं ली गई। रैली के समापन के मौके पर न तो लालू यादव ने ही भाग लेना उचित समझा और ना ही राबड़ी देवी वहां तक आईं। यही नहीं राजद के तेज तर्रार सांसद माने जाने वाले राज्यसभा सांसद मनोज झा भी कहीं नहीं दिखे।
इस दौरान राजद के विधायकों और सांसदों ने भी दूरी बनाए रखी। वहीं, गांधी मैदान में राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू हुए इस मार्च में कांग्रेस के बैनर और झंडे तो प्रमुखता से दिखे, लेकिन राजद के झंडे-बैनर गायब रहे। सियासत के जानकारों की मानें तो राजद के झंडों का नहीं रहना कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति हो सकती है।
दरअसल, कांग्रेस बिहार में अपनी स्थिति मजबूत दिखाना चाह रही है। उल्लेखनीय है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ शुरू हुई इस यात्रा ने कांग्रेस को बिहार में फिर से सक्रिय और मुखर बना दिया है। ऐसे में संभव है कि तेजस्वी यादव और राजद को यह संदेश देने की भी एक कवायद हो कि कांग्रेस अब बिहार में सिर्फ सहयोगी नहीं, बल्कि नेतृत्वकारी भूमिका चाहती है।
बता दें कि बिहार में इंडिया गठबंधन का राजद प्रमुख चेहरा मानी जाती है। 17 अगस्त से शुरू हुई मतदाता अधिकार यात्रा में राजद का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। अमूमन अधिकांश समय तेजस्वी यादव, राहुल गांधी के साथ यात्रा में नजर भी आते रहे। लेकिन, मतदाता अधिकार यात्रा के समापन के मौके पर राजद के द्वारा अपना दम नहीं दिखाया जाना, कहीं कुछ अन्य सियासी समीकरणों की ओर इशारा तो नही कर रही है? ऐसा सियासत के जानकारों का मानना है। राजद के बैनरों का गायब होना गठबंधन की आंतरिक खींचतान को बता रहा है।
सूत्रों की मानें तो राजद कार्यकर्ताओं को बैनर लगाने के लिए पर्याप्त निर्देश नहीं मिले थे, जबकि कांग्रेस और वीआईपी ने संगठनात्मक स्तर पर बेहतर तैयारी की थी। ऐसे में जानकारों का मानना है कि यह स्थिति राजद के लिए चिंताजनक है, क्योंकि बिहार में उसका एमवाय (मुस्लिम-यादव) समीकरण गड़बड़ा सकता है। अगर कांग्रेस इस तरह फ्रंटफुट पर आती है तो राजद के लिए यह नुकसानदेह साबित हो सकता है।
वहीं, वीआईपी का निषाद और ईबीसी समुदायों में खासा प्रभाव कहा जाता है और इस आयोजन में उनकी मजबूत उपस्थिति ने गठबंधन में उनकी बढ़ती भूमिका को को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। जानकारों के अनुसार कांग्रेस कही राजद को गच्चा देकर वीआईपी के संग कोई नया समीकरण ना बना ले।
इसतरह कांग्रेस न केवल राजद को चुनौती दे रही है, बल्कि छोटे दलों को साथ लेकर गठबंधन में नया संतुलन बनाने की कवायद में जुटी बताई जा रही है। ऐसे में यह सियासी सुगबुगाहट बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की रणनीति में बदलाव का इशारा माना जा सकता है।