पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक देख सियासी दलों में अधिक सीट को लेकर राजनीति तेज हो गई है। सभी दल अधिक सीट की कोशिश में लगे हैं। महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर अभी भी सिर फुटव्वल की स्थिति देखी जा रही है। हालांकि चर्चा है कि महागठबंधन की अगली बैठक 15 सितंबर तक आयोजित की जाएगी, जिसमें सीट शेयरिंग का फॉर्मूला फाइनल किया जाएगा। इसमें कांग्रेस की दिग्गज नेता सोनिया गांधी और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की भूमिका अहम होगी। इस बैठक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजद नेता तेजस्वी यादव, भाकपा(माले) के दीपंकर भट्टाचार्य, वीआईपी के मुकेश सहनी, भाकपा के डी.राजा के अलावे माकपा के नेता शामिल होंगे। उल्लेखनीय है कि महागठबंधन के नेताओं की लगातार बैठकें पिछले 2-3 महीनों से होती रही हैं।
Bihar Assembly Elections: तेजस्वी को किसी भी कीमत पर इस बार मुख्यमंत्री बनाना
बावजूद इसके अभी तक इस बात पर सहमति नहीं बन पाई है। इसके अलावे पेंच इसपर भी फंसा हुआ है कि महागठबंधन का मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? हालांकि लालू यादव लगातार यह बात कहते रहे हैं कि तेजस्वी को किसी भी कीमत पर इस बार मुख्यमंत्री बनाना है। वहीं तेजस्वी यादव भी अपने को भावी मुख्यमंत्री घोषित करते रहे हैं।
पर, कांग्रेस ने इस बारे में यह कह कर पेंच फंसा दिया है कि जिसकी ज्यादा सीटें होंगी, उसका मुख्यमंत्री होगा। हालांकि महागठबंधन की बैठकों के लिए कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को संयोजक की भूमिका सौंप दी है। कांग्रेस ने दूसरा पेंच सीटों को लेकर फंसाया है। जानकारों की मानें तो महागठबंधन में सीट शेयरिंग सबसे बड़ी चुनौती के दो कारण हैं।
Bihar Assembly Elections: 2020 के चुनाव में राजद ने 144 पर सीटों पर चुनाव लड़ा था
पहला यह कि दो नए पार्टनर मुकेश सहनी की वीआईपी और पशुपति कुमार पारस की रालोजपा इस बार महागठबंधन के साथ हैं। जबकि पहले से ही 5 पार्टियां राजद, कांग्रेस, भाकपा-माले, भाकपा और महागठबंधन महागठबंधन में हैं। 2020 के चुनाव में राजद ने 144 पर सीटों पर चुनाव लड़ा था, उसमें 75 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
इस बार भी राजद इसी संख्या को बरकरार रखने या उससे ज्यादा सीटों पर दावा ठोकने की तैयारी में है। जबकि कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी और सिर्फ 19 सीटें ही जीती थी। वहीं, भाकपा-माले ने 19 सीटों पर भाग्य आजमाया था और उसके खाते में 12 सीटें आई थीं। जबकि भाकपा और माकपा ने 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनको दो-दो सीटें मिल पाई थी।
Bihar Assembly Elections: भाकपा-माले का रहा, जिसने 19 में 12 सीटें जीत लीं
इनमें सबसे बढ़िया रिजल्ट भाकपा-माले का रहा, जिसने 19 में 12 सीटें जीत लीं। सबसे खराब प्रदर्शन कांग्रेस का था। ऐसे में नए पार्टनर को एडस्ट करने में अब राजद के पसीने छूट रहे हैं। पहले राजद की योजना थी कि कांग्रेस को 20-30 सीटों पर निपटा कर वह नए पार्टनर के लिए सीटों का बंदोबस्त कर लेगा। पर, कांग्रेस के अड़ जाने के कारण अब राजद की हिम्मत नहीं हो रही।
भाकपा ने 24 सीटों की सूची तेजस्वी यादव को सौंपी है, जबकि भाकपा (माले) इस बार 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। वहीं, वीआईपी पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए के सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ी थी। लेकिन इस बार वह महागठबंधन के साथ है। ऐसे में मुकेश सहनी 60 सीटों के साथ उपमुख्यमंत्री पद की रट लगाए हुए हैं।
Bihar Assembly Elections: बंटवारे का फॉर्मूला तय करना तेजस्वी यादव के लिए अग्निपरीक्षा
ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सहनी की यह मांग न केवल महागठबंधन के भीतर असंतुलन पैदा कर सकती है, बल्कि अन्य छोटे दलों को भी अतिरिक्त सीटों की मांग के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। सियासत के जानकारों का मानना है कि अगर सीट बंटवारे पर वक्त रहते सहमति नहीं बनी तो इससे महागठबंधन के भीतर टकराव और स्थानीय स्तर पर भीतरघात की स्थिति पैदा हो सकती है।
कई छोटे दल सिर्फ अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए ऐसी सीटों की मांग कर रहे हैं जहां उनका जनाधार नगण्य है। ऐसे में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय करना तेजस्वी यादव के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा। उन्हें एक और राजद की बड़ी भूमिका को बनाए रखना है, तो दूसरी ओर सहयोगी दलों को संतुलित भी करना है।
Bihar Assembly Elections: लोकसभा चुनाव के वक्त से ही राहुल गांधी काफी मेहनत कर रहे
ताकि गठबंधन की एकजुटता और चुनावी रणनीति दोनों मजबूत बनी रहे। वहीं, मतदाता अधिकार यात्रा के दौरान मिले जन समर्थन के बदौलत कांग्रेस अब 90-100 की ख्वाब भी देखने लगी है। कोई भी पार्टी अपनी पिछली संख्या घटाने को तैयार नहीं है। बता दें कि लोकसभा चुनाव के वक्त से ही राहुल गांधी काफी मेहनत कर रहे हैं।
अब तो उन्हें एसआईआर का बड़ा मुद्दा भी मिल गया है। इसी मुद्दे पर उन्होंने पिछले दिनों बिहार में मतदाता अधिकार यात्रा निकाली थी। इसके साथ ही कांग्रेस ने बिहार में अपनी छवि दुरुस्त करने के लिए साल भर में काफी काम किए हैं। पहले प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी बदले। फिर नई कमेटियां बनीं।
Bihar Assembly Elections: कांग्रेस को मनाना तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती होगी
एनएसयूआई के राष्ट्रीय प्रमुख कन्हैया कुमार ने पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा निकाली। राहुल गांधी खुद बिहार की लगातार यात्राएं कर रहे हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी बिहार में कुछ महीने पहले सभा की थी। कांग्रेस की इन कोशिशों को देख कर यही लगता है कि उसकी अपेक्षाएं अब बढ़ गई हैं। ऐसे में कांग्रेस को मनाना तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती होगी।
ऐसे में नतीजे चाहे जैसे आएं पर एक बात अभी से स्पष्ट हो गई है कि एनडीए में शामिल पार्टियों के अलावा जन सुराज और ओवैसी की एआईएमआईएम भी चुनाव के दौरान राजद नेता तेजस्वी यादव को ही निशाने पर रखेंगी। एनडीए में शामिल भाजपा, जदयू, लोजपा(रा), हम और आरएलएम के नेता अभी से तेजस्वी पर हमलावर हैं।
Bihar Assembly Elections: असदुद्दीन ओवैसी का उभार तेजस्वी के खिलाफ
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर की नजर में नीतीश कुमार जितना चुभते हैं, उससे अधिक तेजस्वी यादव उनके निशाने पर रहते हैं। असदुद्दीन ओवैसी का उभार तेजस्वी के खिलाफ ही जाता है। जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर अक्सर तेजस्वी को नौंवी फेल बता कर उनका उपहास करते हैं। वे तेजस्वी की योग्यता सिर्फ लालू यादव की संतान होना मानते हैं।
वे नीतीश पर जितने हमलावर होते हैं, उससे तनिक भी कम तेजस्वी पर हमला नहीं करते। राजद ने शायद इसी वजह से अपने कार्यकर्ताओं-नेताओं को प्रशांत किशोर से सचेत भी किया था। जन सुराज को राजद ने भाजपा की ‘बी’ टीम भी बताया था। प्रशांत किशोर के भाषण में तेजस्वी का जिक्र नीतीश कुमार के साथ आता ही है।
Bihar Assembly Elections: पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी
दोनों को समान रूप से बिहार के लिए प्रशांत किशोर नुकसानदेह बताते हैं। वहीं, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी महागठबंधन की तरह ही भाजपा के विरोधी हैं, लेकिन उनके हमले की जद में तेजस्वी भी रहते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी।
हालांकि बाद में तेजस्वी ने उनमें चार को तोड़ लिया था। मुसलमानो के हितैषी के रूप में सीमांचल में ओवैसी की खासा पकड़ है। विधानसभा उप चुनावों में ओवैसी अपनी उपस्थिति से राजद का खेल गोपालगंज सीट पर बिगाड़ चुके हैं। इस बार भी वे महागठबंधन के खिलाफ मैदान में उतरेंगे ही। इस तरह बिहार में सियासी खेल का दौर और भी तेज होने वाला है।