पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ आजकल प्रधानमंत्री कम, प्रधानभिक्षु ज्यादा बनकर देश-विदेश के चक्कर लगा रहे हैं। कुछ दिन पहले उन्हें सऊदी अरब जाकर अपना भिक्षा-पात्र फैलाना पड़ा। तीन-चार दिन पहले वे अबुधाबी और दुबई आए हुए थे। संयोग की बात है कि दो-तीन दिन के लिए मैं भी दुबई और अबुधाबी में हूं। यहां के कई अरबी नेताओं से मेरी बात हुई।
पाकिस्तान की दुर्दशा से वे बहुत दुखी हैं लेकिन वे पाकिस्तान पर कर्ज लादने के अलावा क्या कर सकते हैं? उन्होंने 2 बिलियन डॉलर जो पहले दे रखे थे, उनके भुगतान की तिथि आगे बढ़ा दी है और संकट से लड़ने के लिए 1 बिलियन डॉलर और दे दिए हैं। शाहबाज की झोली को पिछले हफ्ते भरने में सऊदी अरब ने भी काफी उदारता दिखाई थी लेकिन पाकिस्तान की झोली में इतने बड़े-बड़े छेद हैं कि ये पश्चिम एशियाई राष्ट्र तो क्या, उसे चीन और अमेरिका भी नहीं भर सकते। इन छेदों का कारण क्या है? इनका असली कारण है-भारत।
भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की फौज और सरकार ने इतनी नफरत कूट-कूटकर भर दी है कि उस राष्ट्र का ध्यान खुद को संभालने पर बहुत कम लग पाता है। इसी नफरत के दम पर पाकिस्तानी नेता चुनावों में अपनी गोटी गरम करते हैं। वे कश्मीर का राग अलापते रहते हैं और फौज को अपने सिर पर चढ़ाए रखते हैं। आम जनता रोटियों को तरसती रहती है। पिछले हफ्ते शाहबाज शरीफ कजाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात गए। वहां भी उन्होंने कश्मीर का राग अलापा।
उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री से बात करने की पहल की, जो कि अच्छी बात है लेकिन साथ में ही यह धमकी भी दे डाली कि अगर दोनों देशों के बीच युद्ध हो गया तो कोई नहीं बचेगा। दोनों के पास परमाणु बम हैं। शाहबाज ने अबुधाबी के शासक से कहा कि भारत से आपके रिश्ते बहुत अच्छे हैं। आप मध्यस्थता क्यों नहीं करते? यह शाहबाज शरीफ की ही नहीं, सभी पाकिस्तानी नेताओं की मजबूरी है कि जो लोग उनकी झोली में कुछ जूठन डाल देते हैं, उन्हें कुछ न कुछ महत्व तो देना ही पड़ता है।