अगर अमेरिका और यूरोप शांति और सद्भावशील समाज व्यवस्था के लिए सक्रिय रहते हैं तो उन्हें फिर बंदूक यानी अति हिंसक हथियारों से इतना उग्र और प्रहारक प्रेम क्यों है?
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इस आंदोलन को चलाने वाले लोग कभी सत्तारूढ़ नेता नहीं रहे। वे मूलत: समाज सुधारक रहे हैं। सत्ता की राजनीति में उलङो हुए नेता भला लोकपाल की स्थापना क्यों होने देते।
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आज आतंकवाद केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। इसी के चलते हम हर रोज किसी न किसी देश में आतंकवादी हमलों की खबर सुनते रहते हैं।
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अगर पटाखे शहरों में वायु प्रदूषण की मुख्य वजह नहीं हैं, तो क्या कार आदि वाहनों से निकलने वाला धुआं ही प्रदूषण का असली कारण है। सुप्रीम कोर्ट का ऐसा सोचना बेवजह नहीं है। ऐसे कई अध्ययन हुए हैं, जो साबित करते हैं कि पटाखों के अलावा खेतों में जलाई जाने व
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चाबहार बंदरगाह से व्यापार शुरू हो जाने से चीन और पाकिस्तान परेशान हैं। चीनी गुड्स को पाकिस्तान में निर्माणाधीन आर्थिक कॉरिडोर से ग्वादर पोर्ट पहुंचने के लिए पूरा पाकिस्तान पार करना पड़ेगा जबकि कांडला (गुजरात) और मुंबई से चाबहार पोर्ट पहुंचने में समुद
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एक छोटे से व्यापारी के लड़के ने मुंबई से आईआईटी की डिग्री ली और गोवा आकर जूट के थैले बनाने शुरू किए। अपनी कार्यकुशलता, मेहनत और प्रामाणिकता के दम पर शीघ्र ही उन्होंने एक फैक्ट्री कायम कर ली। गोवा के संघ-प्रमुख सुभाष वेलिंगकर के आशीर्वाद से उन्होंने र
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पुराने दिनों को याद करें तो पाते हैं कि साठ और सत्तर के दशक में अनेक छोटी पार्टियों से नेताओं का यह निर्बाध आवागमन तत्कालीन राजनीति में चिंता का सबब बन गया था। स्वतंत्न पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी, प्रजातांत्रिक समाजवादी पार्टी, हिंदू महासभा, जनस
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मुख्यमंत्री के पद पर रहते या अन्य वक्त में भी उन्हें अनेक बार पणजी के रास्तों पर लोगों से बातचीत करते देखा जा सकता था। कई बार तो वह टी शर्ट, जींस में दिख जाते थे। पर्रिकर ने कभी भी नेता होने का दिखावा नहीं किया। मुंबई जाने पर विले पार्ले के ‘गजाली’ र
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