विष्णुगुप्त का ब्लॉग: बंदूक की हिंसक संस्कृति से मुक्त हो दुनिया

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 20, 2019 11:24 AM2019-03-20T11:24:55+5:302019-03-20T11:24:55+5:30

अगर अमेरिका और यूरोप शांति और सद्भावशील समाज व्यवस्था के लिए सक्रिय रहते हैं तो उन्हें फिर बंदूक यानी अति हिंसक हथियारों से इतना उग्र और प्रहारक प्रेम क्यों है?

Vishnugupta's blog: Free from violent culture of the world | विष्णुगुप्त का ब्लॉग: बंदूक की हिंसक संस्कृति से मुक्त हो दुनिया

विष्णुगुप्त का ब्लॉग: बंदूक की हिंसक संस्कृति से मुक्त हो दुनिया

हथियारों को सिर्फ सुरक्षा का प्रतीक नहीं माना जाना चाहिए, हथियार हिंसा और अपराध का प्रतीक भी होते हैं। वैध और अवैध सभी प्रकार के हथियारों के प्रति अब नजरिया बदलना चाहिए ताकि न्यूजीलैंड और नीदरलैंड जैसी हिंसक घटनाओं से बचा जा सके।

प्रश्न यह है कि अगर अमेरिका और यूरोप शांति और सद्भावशील समाज व्यवस्था के लिए सक्रिय रहते हैं तो उन्हें फिर बंदूक यानी अति हिंसक हथियारों से इतना उग्र और प्रहारक प्रेम क्यों है? शांति और सद्भाव की कसौटी पर हिंसा की कोई जगह नहीं होती है, बंदूक सहित अन्य प्रकार के सभी हथियार हिंसा के प्रतीक होते हैं। अमेरिका और यूरोप की स्थिति यह है कि वहां पर साधारण ही नहीं बल्कि असाधारण और अति हिंसक हथियार आसानी से उपलब्ध हैं। खासकर अमेरिका में बंदूक अपसंस्कृति और बंदूक हिंसा हर समय अस्तित्व में होती है। सिर्फ युवाओं तक यह बंदूक हिंसा सवार नहीं होती है बल्कि बुजुर्ग और बच्चे भी इसकी चपेट में हैं। अमेरिका में  अनेक ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें बच्चों ने घर से घातक हथियार लाकर अपने स्कूली साथियों और स्कूल टीचरों को मौत के घाट उतार डाला है। युवाओं द्वारा किसी न किसी वाद या फिर किसी न किस समस्या से आक्रोशित होकर सार्वजनिक जगहों पर गोलीबारी करने की घटनाएं आम हैं।  

अमेरिका और यूरोप में इस बात पर कम ही विचार होता है कि किसे हथियार की जरूरत है और किसे  जरूरत नहीं है। अगर इस जरूरत को समझा जाता तो यह तय किया जाता कि जिसे जान का खतरा है, जिसे अपने परिवार का खतरा है, जिसे अपनी संपत्ति का खतरा है उसे ही हथियार उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह जांच होनी चाहिए कि हथियार मांगने वाला व्यक्ति कहीं विक्षिप्त या फिर विकृत मानसिकता का तो नहीं है, उसका संबंध किसी प्रकार से आतंकवादी संगठन से तो नहीं है, किसी न किसी प्रकार से घृणा फैलाने वालों से तो नहीं है, ऐसे समूह से तो नहीं है जो विखंडनकारी, घृणा फैलाने वाला और भेदभाव से उत्पन्न मानसिकता का पोषक हो। अगर इनकी जांच होगी तो लोगों को  हथियार उपलब्ध नहीं हो पाएंगे और ऐसी हिंसा से बचा जा सकेगा। 

ब्रैंडन टैरेंट के उदाहरण को अति गंभीरता से लिया जाना चाहिए। न्यूजीलैंड के राष्ट्रपति ने इस घटना को न केवल अपनी विफलता माना है, बल्कि कहा भी है कि उनके लिए बंदूक की अपसंस्कृति आत्मघाती साबित हो रही है। न्यूजीलैंड के राष्ट्रपति ने अब बंदूक संस्कृति से पीछा छुड़ाने की बात भी कही है। नीदरलैंड के प्रधानमंत्री ने कहा है कि असहिष्णुता के आगे घुटने नहीं टेकेंगे। न केवल न्यूजीलैंड को बल्कि अमेरिका और पूरे यूरोप को अब बंदूक की अपसंस्कृति से मुक्त होना ही होगा, हथियार देने वाले कानूनों में संशोधन करना ही होगा, अगर ऐसा नहीं हुआ तो न्यूजीलैंड और नीदरलैंड जैसी अनेकानेक घटनाएं अमेरिका और यूरोप को आक्रांत एवं पीड़ित करती रहेंगी।

Web Title: Vishnugupta's blog: Free from violent culture of the world

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