वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भावी दक्षिण एशिया का खाका
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 18, 2019 11:30 AM2019-03-18T11:30:37+5:302019-03-18T11:30:37+5:30
यदि इन सोलह देशों का महासंघ बन जाए तो अगले कुछ ही वर्षो में ये देश शक्ति और संपन्नता में यूरोप से टक्कर लेने लगेंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संयोजक इंद्रेश कुमार के भाषण पर देश में हो-हल्ला जरूर मचेगा, क्योंकि उन्होंने मुंबई के एक समारोह में कह दिया कि 1947 में पाकिस्तान नहीं था और 2025 के बाद वह नहीं रहेगा। वह भारत का हिस्सा होगा।
उनके इन शब्दों को लेकर कई भाजपा-विरोधी उन पर टूट पड़ेंगे और पाकिस्तान में तो बवाल ही खड़ा हो सकता है, लेकिन आप उनका पूरा भाषण ध्यान से सुनें या पढ़ें तो आपको लगेगा कि वे भावी दक्षिण एशिया का एक शानदार नक्शा पेश कर रहे हैं। उसे महर्षि दयानंद ने अब से डेढ़ सौ साल पहले ‘आर्यावर्त कहा था, संघ ने उसे ‘अखंड भारत’ कहा और डॉ। राममनोहर लोहिया उसे ‘भारत-पाक महासंघ’ कहा करते थे। यह इलाका अराकान से खुरासान तक फैला हुआ है। बर्मा से ईरान तक और त्रिविष्टुप यानी तिब्बत से मालदीव तक। इसमें मध्य एशिया के पांच राष्ट्रों और मॉरिशस को भी जोड़ा जा सकता है।
यदि इन सोलह देशों का महासंघ बन जाए तो अगले कुछ ही वर्षो में ये देश शक्ति और संपन्नता में यूरोप से टक्कर लेने लगेंगे। यूरोपीय संघ का उदाहरण देकर ही इंद्रेशजी ने अपनी बात को आगे बढ़ाया है। यह महादक्षेस होगा। जब ‘सार्क’ की स्थापना हुई तो इसका नाम ‘दक्षेस’ रखा गया यानी दक्षिण एशियाई सहयोग संघ। दक्षेस की सबसे बड़ी बाधा भारत-पाक संबंध हैं। यदि वे सुधर जाएं तो इन सारे देशों में कौन किसका हिस्सा होगा, यह सवाल ही बेमानी हो जाएगा।
क्या ऐसे में कश्मीर जैसी समस्याएं टिक पाएंगी? वे तो अपने आप रसातल में चली जाएंगी। पिछले 50 वर्षो में इन सभी 16 देशों में मुङो कई बार जाने और महीनों रहने का अवसर मिला है। वहां के जन-साधारण और राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों से भी मुङो बात करने का मौका मिला है। सभी चाहते हैं कि यह सपना साकार हो लेकिन कोई इतना बड़ा नेता हमारे बीच नहीं है, जो इसे अमली जामा पहना सके। आशा करें कि 2025 तक वह आ जाए।