वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: आखिर, आ ही गया लोकपाल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 20, 2019 10:25 AM2019-03-20T10:25:45+5:302019-03-20T10:25:45+5:30
इस आंदोलन को चलाने वाले लोग कभी सत्तारूढ़ नेता नहीं रहे। वे मूलत: समाज सुधारक रहे हैं। सत्ता की राजनीति में उलङो हुए नेता भला लोकपाल की स्थापना क्यों होने देते।
आखिर लोकपाल की नियुक्ति हो ही गई। इस आंदोलन की शुरुआत अब से लगभग पचास साल पहले सांसद डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी और डॉ सुभाष कश्यप ने की थी और फिर यही आंदोलन दस साल पहले अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे ने चलाया था।
जरा गौर करें कि इस आंदोलन को चलाने वाले लोग कभी सत्तारूढ़ नेता नहीं रहे। वे मूलत: समाज सुधारक रहे हैं। सत्ता की राजनीति में उलझे हुए नेता भला लोकपाल की स्थापना क्यों होने देते। आज के जमाने में भ्रष्टाचार किए बिना कोई प्रधानमंत्नी तो क्या, पार्षद भी नहीं बन सकता।
नरेंद्र मोदी ने भी पांच साल तक लोकपाल की नियुक्ति पर कोई कदम नहीं उठाया जैसे अन्य दलों की सरकारें करती रहीं। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया तो उसे लोकपाल नियुक्त करना पड़ा। इस नियुक्ति में भी कांग्रेस ने असहयोग किया। उसके नेता इसलिए चयन समिति की बैठक में नहीं गए कि उन्हें ‘विशेष आमंत्रित’ के तौर पर बुलाया गया था, क्योंकि कांग्रेस को लोकसभा में ‘विपक्ष’ के नेता पद की मान्यता नहीं है।
इसका अर्थ यह भी हुआ कि देश के इस प्रथम लोकपाल को भी राजनीति में घसीटा जाएगा। कहा जाएगा कि यह भाजपा का लोकपाल है। जो भी हो, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज पीसी घोष से देश आशा करेगा कि वे अपना काम पूरी निष्पक्षता और निडरता से करेंगे।
आठ सदस्यीय लोकपाल मंडल नियुक्त हो जाने पर उसे अपने काम से यह सिद्ध करना होगा कि प्रधानमंत्नी से लेकर निचले सरकारी अधिकारी तक के भ्रष्टाचार की वह कलई खोलने में कोई संकोच नहीं करेगा। वह सीबीआई की तरह पिंजरे का तोता सिद्ध नहीं होगा।
मोदी सरकार को बधाई कि उसके हाथों यह संस्था कायम हुई। स्वीडन में ‘ओम्बड्समैन’ के नाम से यह संस्था पिछले 300 साल से काम कर रही है। इसने स्वीडन और नार्वे के अलावा कई यूरोपीय राष्ट्रों में सार्थक काम करके दिखाया है। आशा की जाए कि भारत का लोकपाल हमारे पड़ोसी देशों के लिए भी आदर्श और प्रेरणा का काम करेगा।