मनोहर पर्रिकर (1955-2019): सुखद बयार से तूफानी राजनीति तक...
By राजू नायक | Published: March 17, 2019 11:16 PM2019-03-17T23:16:57+5:302019-03-18T14:59:57+5:30
मुख्यमंत्री के पद पर रहते या अन्य वक्त में भी उन्हें अनेक बार पणजी के रास्तों पर लोगों से बातचीत करते देखा जा सकता था। कई बार तो वह टी शर्ट, जींस में दिख जाते थे। पर्रिकर ने कभी भी नेता होने का दिखावा नहीं किया। मुंबई जाने पर विले पार्ले के ‘गजाली’ रेस्टॉरेंट में मछली खाने जाना उनका प्रिय शौक था।
राजू नायक
मनोहर पर्रिकरगोवा की अस्थिर राजनीति में उम्मीद की किरण बनकर आए। पर्रिकर ने जब राजनीति में कदम रखा था तो कांग्रेस में भीतरी संघर्ष, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हालातों से गोवा के लोग हताश हो चुके थे। अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण से कांग्रेस को लेकर नाराजगी तो थी ही। ऐसे में एक नये चेहरे का उदय सुखद खुशनुमा बयार लाया। इस बयार ने अगले 25 वर्ष में तूफान का रूप धारण कर लिया।
उन्होंने न केवल गोवा बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी बेहद कम अवधि में अपनी छाप छोड़ी। इतने सादगीभरे व्यक्तित्व के राजनीतिज्ञ बनने पर हैरानी भी थी। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने की हिम्मत उनके विरोधियों में भी नहीं होती थी। आईआईटी मुंबई से इंजीनियर होने के बाद नौकरी, व्यवसाय के जरिये पैसा उन्हें मिल सकता था, लेकिन संघ के अनुशासन में तैयार पर्रिकर ने कभी भी बड़े होने का दिखावा नहीं किया।
उनके रक्षामंत्री बनने पर गोवा की जनता बेहद खुश हुई। साथ ही यह दुख भी था कि एक बेहद होशियार, लोकप्रिय, जनता से जुड़ा और राज्य के विकास को लेकर बेहद समर्पित व्यक्ति दिल्ली जा रहा है। उनके रक्षामंत्री के कार्यकाल में ही उड़ी हमला हुआ। उसका उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिये पाकिस्तान को करारा जवाब भी दिया। भाजपा के सारे नेता जबकि सर्जिकल स्ट्राइक को राजनीतिक तौर पर भुनाने की कोशिश कर रहे थे पर्रिकर इन सब बातों से दूर ही रहे।
मुख्यमंत्री के पद पर रहते या अन्य वक्त में भी उन्हें अनेक बार पणजी के रास्तों पर लोगों से बातचीत करते देखा जा सकता था। कई बार तो वह टी शर्ट, जींस में दिख जाते थे। पर्रिकर ने कभी भी नेता होने का दिखावा नहीं किया। मुंबई जाने पर विले पार्ले के ‘गजाली’ रेस्टॉरेंट में मछली खाने जाना उनका प्रिय शौक था।
आधुनिक गोवा के नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले पर्रिकर ने भाजपा नेता होकर भी कभी राज्य में हिंदू बनाम ईसाई विवाद नहीं होने दिया। शायद धर्म की राजनीति उनके स्वभाव से ही मेल नहीं खाती थी। यही वजह थी कि सभी दलों के नेता उन्हें अपना मानते थे। विरोधियों के साथ दोस्ताना ताल्लुकात वाले इस नेता का अपना अलग ही दबदबा था।
पर्रिकर से मेरी नियमित मुलाकातें होती थी। इस दौरान बातचीत में गोवा की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के प्रति उनकी आस्था साफ देखने को मिलती थी। गोवा की राजनीति को सकारात्मक मोड़ देने की ललक और हिम्मत, महत्वाकांक्षा उनमें हमेशा दिखाई देती थी। गोवा के विभिन्न आंदोलनों, जनभावनाओं से उनका जुड़ाव रहा। युवा पत्रकार भी उनके काफी करीब थे। खबर खोज रहे पत्रकारों को विश्वसनीय और सनसनीखेज खबरें उनसे मिल जाया करती थी। बेहद सादगीपूर्ण पर्रिकर कई बार मंत्रिमंडल के सदस्यों को परे रखकर पत्रकारों से बातचीत कर लिया करते थे। इसे लेकर कई बार मैंने भाजपा विधायकों की उनसे नाराजगी भी देखी है।
राजनीति की दिशा को जानकर किसी जादूगर की तरह उसे मोड़ देने में उन्हें महारत हासिल थी। उन्होंने सरकारें गिराई, बनाई और कई विवादित विधायकों का भी समर्थन हासिल किया। उनके खिलाफ कार्रवाई भी की, लेकिन राजनीति के स्तर को गिरने नहीं दिया। वह साफ-सुथरी राजनीति का संदेश देना चाहते थे। गोवा के विकास के लिए उन्होंने आक्रामक राजनीति की। गोवा की राजनीति में भाजपा की ओर से उनका उत्तराधिकारी कौन, यह एक बड़ा सवाल है। हर कामयाब नेता के बाद यह सवाल उठता ही है। एक बात तो तय है कि उनके द्वारा किया गया कार्य हमेशा उनकी याद को जिंदा रखेगा।
- राजू नायक, संपादक
लोकमत, गोवा