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गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: महात्मा गांधी का आलोक ही देगा जीवन जीने की सही दृष्टि

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: January 30, 2021 13:49 IST

महात्मा गांधी यानी सत्य, अहिंसा, सादगी, सहिष्णुता, सौजन्य और सहभाव जैसे मानवीय मूल्यों की एक सुसंगत रचना जो इन मूल्यों को भौतिक आकार देती है.

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महात्मा गांधी ने अपने जीवन में इतना कुछ अर्जित किया कि वे भारत के पर्याय बन गए. आज वे संसार में भारत की पहचान के अभिन्न अंग बन चुके हैं और विदेशों में बहुत सारे लोग जब किसी भारतीय को देखते सुनते हैं तो उसे गांधी याद आते हैं और वह उस भारतीय में गांधी को खोजता-ढूंढ़ता है.

महात्मा गांधी यानी सत्य, अहिंसा, सादगी, सहिष्णुता, सौजन्य और सहभाव जैसे मानवीय मूल्यों की एक सुसंगत रचना जो इन मूल्यों को भौतिक आकार देती है. एक ऐसा आदमी जो इनके साथ जीवन जीता रहा. ये गुण आज दुर्लभ हो रहे हैं और सुख सुविधाएं बढ़ने के बावजूद इनके अभाव में जीना दूभर होता जा रहा है.

साथ ही हर कहीं व्यस्त, त्नस्त और बहुत हद तक भयग्रस्त मनुष्य राह ढूंढ़ने के लिए व्यग्र है. इस स्थिति के लिए अधिकतर मनुष्य ही स्वयं जिम्मेदार है. दुर्लभ होते जा रहे गांधी को ढूंढ़ने की जरूरत शिद्दत से महसूस होने लगी है.

महात्मा गांधी  सारी मानवता के लिए एक सार्वभौमिक सामाजिक सिद्धांत में विश्वास करते थे और सबके कल्याण के बारे सोचते थे. सभ्यता के बारे में उनकी सोच सांस्कृतिक भिन्नताओं के पार जाती है. इसलिए उनके विचारों में ‘पूर्व’  और ‘पश्चिम’ एक दूसरे के करीब और अक्सर मिलते हुए दिखाई पड़ते हैं.

उनका ख्याल था कि यदि ‘आधुनिकता’  को हटा दें तो दोनों एक से ही हैं. श्रीमद्भगवद्गीता,  ईशावास्योपनिषद, रामायण जैसे भारतीय ग्रंथों और नरसी मेहता की वाणी जैसे लोक समादृत स्रोत के साथ ही गांधीजी पश्चिम का आदर भी करते थे.

गांधीजी ने बाइबिल भी अच्छी तरह पढ़ी थी. सी. एफ. एंड्रयूज जैसे कई अंग्रेज उनके पक्के मित्न थे. रस्किन, थोरो और टॉलस्टॉय जैसे पश्चिम के अनेक विचारकों ने उनको प्रभावित किया था. पर यह भी सर्वविदित है कि गांधीजी ने आधुनिक पश्चिम की तीखी आलोचना की और शेष विश्व पर उसके अतिक्र मण की प्रवृत्ति की खूब खिंचाई भी की.

वे आशा करते थे कि कभी न कभी प्रामाणिक पश्चिम और प्रामाणिक पूर्व का उदय अवश्य होगा जिनमें स्वाभाविक निकटता होगी. उन्होंने ‘हिंद स्वराज’ में आधुनिक सभ्यता की कटु समीक्षा भी प्रस्तुत की.

गांधीजी विभिन्न विचारों को पचाने के बाद तथा जांच परख में ठीक पाने पर समाज के पास ले जाते थे और अपने अनुभव के आलोक में उनमें बदलाव लाने के लिए भी तत्पर रहते थे.

प्रौद्योगिकी गांधीजी की चिंता का एक बड़ा कारण है. यह सबका अनुभव है कि आधुनिक विज्ञान को आधुनिक प्रौद्योगिकी का समर्थन प्राप्त होने के कारण उसके साथ उपयोगिता और नियंत्नण की तीव्र प्रवृत्तियां भी जुड़ गईं. आधुनिकता तकनीकी को अवसर देती है.  

मुश्किल यह है कि प्रौद्योगिकी के चक्र व्यूह में प्रवेश करने पर छुटकारा  नहीं मिलता  है. तकनीकी से उत्पन्न समस्या का समाधान भी तकनीकी में ही ढूंढ़ा जाता है. ध्यान रहे गांधी तकनीकी की जगह तकनीकीवाद की आलोचना करते हैं.  इस अर्थ में ‘ चरखा’ मिल से अच्छा है. वह मनुष्यता की और मनुष्य की स्वायत्तता की रक्षा करता है .

गांधीजी ने जिन अपने लिए व्यावहारिक आदर्शो को अपनाया उन तक पहुंचना किसी भी तरह सरल न था. इनको पाने में गांधीजी को बार-बार लज्जा, भय, हानि, खतरा, असुरक्षा, और संशय सबका सामना करना पड़ा. फिर भी वे डटे रहे और इन सबको खोजा, जांचा-परखा, आजमाया और स्वयं संतुष्ट होने के बाद उन पर वे जीवनर्पयत चलते रहे.  

तरह-तरह के आकर्षणों और प्रलोभनों से भरी दुनिया में अपने को अलग कर इतना आत्म-परिष्कार निश्चय ही सहज नहीं था. इसके लिए जिस कठोर संयम और ईश्वर के प्रति निष्कपट समर्पण की जरूरत थी उसके लिए आत्मिक बल  गांधीजी ने स्वयं अपने अनुभव और मानसिक दृढ़ता से एकत्न किया था.

सीमित निजी और व्यापक सार्वजनिक जीवन के बीच की सीमा रेखा मिटाना किसी के लिए सरल नहीं होता है परंतु गांधीजी ने इसका  साहस किया और अपने निर्णयों पर चलने के लिए उन्होंने अपने भीतर आत्म-विश्वास जुटाया. उनके जीवन में अनेक अवसर आए जब कोई सामान्य व्यक्ति सरलता से विचलित हो जाता परंतु वे अटल बने रहे.  

अपने अनुगामियों को और अपने आश्रम के अंतेवासियों को भी गांधीजी अपने जीवन सिद्धांतों के अनुरूप आचरण के लिए सतत प्रेरित करते रहे. ‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’ कह कर गांधीजी ने पारदर्शिता, साहस और अभय का असाधारण  प्रतिमान स्थापित किया था.

अपने निजी संकल्प से जीवन में गांधीजी ने स्वयं अपना मार्ग निश्चित किया और उस पर अविचल भाव से चलते रहे.  हम  सब मूर्तिपूजक ठहरे, सो बापू के पुतले बना कर वर्षो से पूजा करते आ रहे हैं. जरूरत है कि उसकी प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए उनके विचारों पर अमल  किया जाए.

टॅग्स :महात्मा गाँधीभारत
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