ठाणे जिले में राजमार्ग पर पुलिस ने जब दो आलीशान कारों को रोका और उनकी जांच की तो किसी को शायद ही अंदाजा रहा होगा कि उन दो कारों से 32 करोड़ रुपए मूल्य का 15 किलो मेफेड्रोन मिलेगा. चूंकि पुलिस के पास पक्की सूचना थी, इसलिए उन दोनों कारों को रोका गया अन्यथा कोई उम्मीद भी कैसे कर सकता है कि करोड़ों रुपए मूल्य की इन कारों से ड्रग्स की तस्करी की जा रही थी. पिछले साल पुणे में 1700 किलो मेफेड्रोन की जब्ती हुई थी.
पुणे के ग्रामीण इलाके की एक फैक्ट्री और शहरी इलाकों के दो गोदामों में छापे के बाद इस जब्ती ने पुलिस महकमे को चिंता में डाल दिया था कि उसकी नाक के नीचे इतना बड़ा ड्रग्स कारोबार चल रहा था और उसे भनक तक नहीं लगी. मुंबई में भी मेफेड्रोन की जब्ती कई मौके पर हो चुकी है.
पिछले साल और इस साल जो भी जब्ती हुई है, उसके पीछे निश्चित रूप से ड्रग्स तस्करों के बीच किसी तरह का झगड़ा रहा होगा अन्यथा जानकारी उभर कर कैसे सामने आती? जाहिर सी बात है कि जितना ड्रग्स पकड़ा गया है, वह एक छोटा सा हिस्सा ही होगा क्योंकि आम तौर पर यह माना जाता है कि ड्रग्स कारोबार का दो-चार प्रतिशत ही पकड़ में आता है. सबसे पहले यह समझिए कि यह मेफेड्रोन है क्या और यह आता कहां से है?
इसे म्याऊ-म्याऊ ड्रग्स या व्हाइट ड्रग्स भी कहा जाता है. इसे पार्टी ड्रग्स के नाम से भी जाना जाता है. इस सिंथेटिक ड्रग्स की छोटी सी मात्रा भी खाने वाले को मदहोशी में डाल देती है और उसे ऐसा लगता है कि जमाने भर का आत्मविश्वास उसके पास आ गया है.
यही कारण है कि शहरी युवा बड़ी आसानी से इसके शिकार हो जाते हैं. पिछले डेढ़ दशक में भारत में इसका उपयोग तेजी से बढ़ा है. 2015 में महाराष्ट्र सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने इसे प्रतिबंधित पदार्थों की सूची में डाला था लेकिन इससे इसकी तस्करी पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. हाल के वर्षों में पंजाब, राजस्थान और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के साथ महाराष्ट्र में भी इसकी तस्करी बढ़ती चली गई है.
पुलिस अपनी तरफ से भरसक कोशिश कर रही है कि मेफेड्रोन की तस्करी को रोका जाए लेकिन पाकिस्तान से लेकर चीन तक से इसकी खेप लगातार आ रही है. पाकिस्तान तो भारतीय तस्करों के माध्यम से सीधे तौर पर यह ड्रग्स भेजता है लेकिन चीन इसके लिए पूर्वोत्तर के चरमपंथियों का इस्तेमाल करता है. इस बात की चर्चा भी होती रही है कि ड्रग्स तस्करी में कश्मीरी आतंकवादियों का भी बड़ा हाथ रहता है. ड्रग्स तस्करी के माध्यम से ही वे आतंकवाद के लिए पैसे जुटाते हैं. ड्रग्स तस्करों का जाल इतना भयानक फैला हुआ है कि उस पर काबू पाने के लिए सरकार को लंबी और प्रभावी लड़ाई लड़नी होगी. ऐसा माना जाता है कि मुंबई में नशा करने वाले करीब 80 प्रतिशत युवा मेफेड्रोन का इस्तेमाल करते हैं.
इसका एक कारण यह भी है कि यह करीब डेढ़ से दो हजार रूपए प्रतिग्राम की दर से मिल जाता है जबकि इसके समतुल्य नशा वाले दूसरे ड्रग्स पांच से छह गुना ज्यादा महंगे होते हैं. निश्चित रूप से हमारे लिए मेफेड्रोन बड़ा दुश्मन बन कर उभरा है.
हमारे युवाओं को वह कमजोर कर रहा है, बर्बादी की राह पर ले जा रहा है. इसके खिलाफ सरकार के साथ ही सामाजिक स्तर पर भी जंग छेड़नी होगी. जिस किसी को भी हल्की सी भी जानकारी मिलती है, वह पुलिस तक सूचना पहुंचा दे और पुलिस तेजी से कार्रवाई करके नशे के सौदागरों का जाल काट सके तभी हमें सफलता मिलेगी. कोशिश हमें आज से ही शुरु करनी होगी.