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क्या प्लाज़्मा थेरेपी कोरोनावायरस के इलाज में रामबाण साबित होगी ?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 13, 2020 9:11 PM

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दुनिया कोरोना वायरस का इलाज खोजने में लगी हैं. भारत में कोविड 19 के इलाज के लिए 40 से अधिक संभावित दवाओं पर काम चल रहा है लेकिन किसी भी मामले में अभी तक ठोस कामयाबी नहीं मिली है. दुनिया की तरह भारत में भी कोविड 19 से निपटने के लिए अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों को आजमाया जा रहा है. इस बीच कोरोनावायरस से पीड़ित मरीजों के लिए  मलेरिया में काम आने दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को गेम चेंजर कहा जा रहा है. इस वक्त पूरी दुनिया इस दवा की भूखी है. ये फिलहाल उन लोगों को ही रिकमेंड की जा रही है जो कोविड 19 के मरीजों के देखभाल और इलाज में लगे हैं. ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी की चर्चा चारों ओर है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, आईसीएमआर के अनुसार इस प्लाज्मा थेरेपी के क्लिनिकल ट्रायल की बात चल रही है.केरल टेस्ट लेवल पर इस प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल गंभीर रूप से बीमार लोगों पर शुरू करने वाला पहला राज्य बनने जा रहा है. बताया जा रहा है कि आईसीएमआर ने इस प्लाज्मा थेरेपी के लिए हामी भर दी है.  इस टेस्ट के नतीजे कारगर रहे तो ये आगे भी कोविड 19 के ज्यादा मरीजों पर इस्तेमाल किये जा सकते हैं. प्लाज्मा थेरेपी क्या होती है, कैसे काम करती है आइए इस पूरी प्रक्रिया को समझते हैं.पहले बात प्लाज्मा थेरेपी की- प्लाज्मा थेरेपी के दौरान बीमारी से ठीक हो चुके मरीजों के खून में से एटीबॉडी लेकर उनका इस्तेमाल गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 के मरीजों के इलाज में किया जाता है. जिन लोगों से ये खून लिया जाएगा पहले उस डोनर की जांच की जाएगी फिर बीमार व्यक्ति को दिया जाएगा. सबसे पहले डोनर का स्वाब परीक्षण नकारात्मक होना चाहिए और संभावित डोनर के ठीक होने की पुष्टि होनी चाहिए. इसके बाद भी डोनर को दो सप्ताह तक इंतजार करना पड़ता है या फिर संभावित दाता को कम से कम 28 दिनों के लिए लक्षण मुक्त होना चाहिए.किसे दी जायेगी ये प्लाज्मा थेरेपी- शुरू में कम संख्या में रोगियों पर ये थेरेपी आजमाई जायेगी. फिलहाल इसकी केवल गंभीर रूप से बीमार रोगियों पर प्रतिबंधित उपयोग के लिए एक प्रायोगिक चिकित्सा के रूप में परमिशन है. शुरू में जिन लोगों को भी ये थेरेपी दी जायेगी उन्हें पहले ही इसकी जानकारी दी जाएगी. ये एक क्लिनिकल ट्रायल होगा. इस प्रयोग में पांच मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के COVID क्लीनिक साझेदारी करेंगे.प्लाज्मा थेरेपी बाकी इलाज से कैसे अलग हैं- प्लाज्मा थेरेपी को पैसिव वैक्सीनेशन कहा जाता है. जब ये थेरेपी दी जाती है तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी का उत्पादन करती है.  इस प्रकार, जब थेरेपी प्राप्त करने वाला व्यक्ति संक्रमित होता है, तो प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी को छोड़ देती है और संक्रमण को बेअसर कर देती है. सामान्य टीकाकरण आजीवन प्रतिरक्षा प्रदान करता है.   प्लाज्मा थेरेपी के मामले में, असर केवल उस वक्त तक रहता है जब एंटीबॉडी,  रिसीवर आदमी के रक्तप्रवाह में रहते हैं. बीमारी से मिली ये सुरक्षा अस्थायी है.  इसे समझने के मां और बच्चे का उदाहरण देखते हैं. मां अपने बच्चे को खुद की एंडीबाॉडिज तैयार करने से पहले स्तन के दूध के माध्यम से एंटीबॉडी ट्रांसफर करती है.क्या है इस थेरेपी का इतिहास- 1890 में एक जर्मन फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेह्रिंग ने पाया कि डिप्थीरिया से संक्रमित खरगोश से प्राप्त सीरम डिप्थीरिया के संक्रमण को रोकने में कारगर था. बेह्रिंग को 1901 में चिकित्सा के लिए पहले नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. हालांकि एंटीबॉडीज के बारे में उस समय जानकारी नहीं थी. उस वक्त कॉन्वेंलेसेंट सीरम थेरेपी कम प्रभावी थी और इसके पर्याप्त साइड इफेक्ट्स थे.क्या ये कारगर है- हमारे पास जीवाणु संक्रमण के खिलाफ प्रभावी एंटीबायोटिक्स हैं. हालांकि, हमारे पास प्रभावी एंटीवायरल नहीं हैं. जब भी कोई नये वायरल का प्रकोप होता है, तो उसके इलाज के लिए कोई दवा नहीं होती है. इसलिए, पिछले वायरल महामारियों के दौरान कांन्वेलेसेंट सीरम का इस्तेमाल किया गया है.  2009-2010 H1N1 इन्फ्लूएंजा वायरस महामारी संक्रमण वाले रोगियों का पर इसका उपयोग किया गया था. प्लाज्मा थेरेपी से उपचार के बाद, सीरम से इलाज किये व्यक्तियों में सुधार देखने को मिले. प्लाज्मा थेरेपी 2018 में इबोला माहामारी के दौरान भी कारगर रही थी.क्या ये सेफ है- डोनर का हेपेटाइटिस, एचआईवी, मलेरिया के टेस्ट होंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इससे रिसीवर के लिए कोई नया खतरा ना हो.शरीर में कब तक रहते है ये एंडीबॉडीज़-मरीज़ को प्लाज्मा थेरेपी या एंटीबॉडी सीरम दिए जाने के बाद, ये शरीर में  कम से कम तीन से चार दिनों तक रहते हैं. इस वक्त में ही बीमार व्यक्ति ठीक हो जाते हैं. अमेरिका और चीन में हुए रिसर्च से संकेत मिले हैं कि प्लाज्मा थेरेपी का लाभकारी प्रभाव पहले तीन से चार दिनों में प्राप्त होता है इसके बाद नहीं.क्या मुश्किल है इस थेरेपी में- कोविडा 19 के प्रकोप से जीवित बचे लोगों से महत्वपूर्ण मात्रा में प्लाज्मा प्राप्त करने में कठिनाई के कारण ये थेरेपी मुश्किल मानी जाती है.  COVID-19 जैसी बीमारियों में अधिकर पीड़ित बुजुर्ग होते हैं जो पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी परेशानियों से जूझ रहे होते हैं. यही कारण है कि कोविड 19 जैसी बीमारी के सभी सर्वाइवर स्वेच्छा से रक्तदान करने के लिए तैयार नहीं होते हैं या उनका ब्लड लिया नहीं जाता.भारत में इसकी शुरूआत प्रतिष्ठित श्री चित्र तिरुनल आयुर्विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान ने की है. आईसीएमआर के अधिकारी कहते हैं कि थेरेपी का इस्तेमाल करते हुए कोई भी क्लीनिकल टेस्ट करने से पहले उन्हें भारतीय दवा महानियंत्रक डीसीजीआईसे इसकी मंजूरी लेनी पड़ेगी. आसीएमआर के अनुसार यह थेरेपी फिलहाल भारत में इस्तेमाल नहीं की जाती है.  कुछ देशो में चुनिंदा क्लीनिकल ट्रायल्स में प्लाज्मा थेरेपी उन मरीजों पर असरदार रही है जिनकी हालत बहुत खराब थी या वे वेंटिलर सपोर्ट पर थे. 
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