सूचना का अधिकार अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित एक कानून है, जो 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ। यह कानून भारत के सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉडर्स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है। जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है। सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है। यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ खरीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है। इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है। यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है। Read More
मध्यप्रदेश के सूचना का आधिकार लगाने वाले कार्यकर्ता चंद्र शेखर गौड़ को सरकार की ओर से दिए गए जवाब में कहा गया है कि नौ सितंबर, 2020 तक पीएमजेडीवाई के तहत कुल 40.63 करोड़ खाते थे। ...
अनुच्छेद 21-ए और आरटीई अधिनियम के अनुसार, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करना 6 से 14 वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है. अधिनियम में उन तरीकों और साधनों के बारे में बताया गया है कि कैसे इस अधिकार को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचा ...
सूचना का अधिकार पर मध्य प्रदेश सरकार ने नई पहल की है। एमपी के सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि हमने मोबाइल पर सुनवाई शुरू कर दी है। आपके प्रश्न का जवाब दो घंटे के अंदर व्हाट्सऐप पर मिल जाएगा। आरटीआई कार्यकर्ता खुश हैं। ...
भारत में रेल पटरी पर मौत के आंकड़े काफी अधिक है। सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मिली है कि देश भर में आदमी ही नहीं जानवर भी मरे हैं। हालांकि आरटीआई में इसका खुलासा नहीं है। ...
मुख्यमंत्री सचिवालय शाखा के पास सीएम मनोहर लाल और उनकी सरकार के कैबिनेट मंत्रियों और राज्यपाल की नागरिकता से जुड़े कोई सुबूत नहीं है। इसका खुलासा एक आरटीआई में हुआ है। ...