फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा ही सबसे उपयोगी कुंजी है
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 9, 2020 02:10 PM2020-06-09T14:10:23+5:302020-06-09T14:10:23+5:30
अनुच्छेद 21-ए और आरटीई अधिनियम के अनुसार, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करना 6 से 14 वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है. अधिनियम में उन तरीकों और साधनों के बारे में बताया गया है कि कैसे इस अधिकार को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया जाना चाहिए. कक्षा-एक से पांच तक के लिए एक किलोमीटर के दायरे में और कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए तीन किमी के दायरे में स्कूल स्थापित करना संबंधित सरकारों और स्थानीय अधिकारियों का कर्तव्य है.
फिरदौस मिर्जा
पिछले तीन महीनों ने हमारे देश का परिदृश्य बदल डाला है. हमने लाखों मजदूरों को पलायन कर अपने गांवों की ओर लौटते देखा है. अपने कोरोना योद्धाओं की वीरता और नागरिक संगठनों के विशाल मानवीय कार्यों को देखा और आत्मनिर्भर बनने के प्रधानमंत्री के आह्वान को सुना है. देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने लोगों को कैसे शिक्षित करते हैं. डॉ. बी. आर. आंबेडकर का मत था कि ‘‘बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए.’’
हमारे संविधान निर्माताओं ने मूल अनुच्छेद-45 के माध्यम से अपेक्षा की थी कि संविधान लागू होने के दस वर्ष के भीतर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए. यद्यपि हम समय सीमा का पालन नहीं कर सके लेकिन आखिरकार वर्ष 2002 में अनुच्छेद 21-ए जोड़ कर प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया. हालांकि ‘मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ लागू करने में आठ साल और लग गए. अब यह एक अप्रैल 2010 से लागू है.
अनुच्छेद 21-ए और आरटीई अधिनियम के अनुसार, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करना 6 से 14 वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है. अधिनियम में उन तरीकों और साधनों के बारे में बताया गया है कि कैसे इस अधिकार को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया जाना चाहिए. कक्षा-एक से पांच तक के लिए एक किलोमीटर के दायरे में और कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए तीन किमी के दायरे में स्कूल स्थापित करना संबंधित सरकारों और स्थानीय अधिकारियों का कर्तव्य है.
वंचित समूहों जैसे एससी, एसटी या सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, भाषाई, लिंग या ऐसे अन्य कारकों से संबंधित बच्चों के लिए इस अधिनियम में विशेष प्रावधान किए गए हैैं. अधिनियम में शिक्षा के अधिकार को लागू करने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय प्राधिकरण की जिम्मेदारियों व कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है.
अपने परिवारों के साथ लाखों श्रमिकों के स्थलांतरण ने अब उनके बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किए जाने के बारे में एक नया सवाल पैदा किया है. इस सवाल का जवाब अधिनियम की धारा-5 में है जो किसी भी कारण से किसी भी अन्य स्कूल में स्थानांतरण का अधिकार बच्चों को प्रदान करती है और पहले स्कूल द्वारा दस्तावेज नहीं देना दूसरे स्कूल में प्रवेश से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है.
पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा के निजीकरण के प्रभाव से हमने देखा है कि सरकारी या स्थानीय प्रशासन द्वारा चलाए जाने वाले स्कूलों में प्रवेश में कमी आई है और निजी स्कूलों में प्रवेश में वृद्धि हुई है. लॉकडाउन की अवधि के दौरान निजी स्कूलों के खिलाफ लॉकडाउन की अवधि के लिए फीस की मांग करने की शिकायतें लगातार सामने आती रही हैं. अनेक अभिभावकों के लिए आवक नहीं होने और भविष्य की अनिश्चितता के चलते फीस का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है. हालांकि, पहली नजर में यह एक समस्या लगती है, लेकिन अगर विश्लेषणात्मक रूप से देखा जाए तो यह सरकारी स्कूलों के लिए एक मौका है कि वे अधिक से अधिक छात्रों को प्रवेश दें और खुद को पुनर्जीवित करें.
अतीत में हमारे देश के दूरदर्शी लोगों और हमारे महान नेताओं ने पाया था कि हमारे राष्ट्र को जाति विभाजन के कारण बहुत नुकसान हुआ है और अब यह वर्ग विभाजन के कारण पीड़ित है. प्राथमिक शिक्षा के निजीकरण ने इस वर्ग विभाजन को और बढ़ा दिया है. महामारी के बाद हमें शिक्षा के अधिकार के प्रावधानों को सही ढंग से और सावधानीपूर्वक लागू करके वर्ग विभाजन को कम करने तथा राष्ट्र को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने का अवसर मिला है.
यदि, हम अपने देश के आत्मनिर्भर होने की उम्मीद रखते हैं तो देश की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्राथमिक स्तर से उपयुक्त पाठ्यक्र म तैयार करना होगा. सरकारों और स्थानीय प्राधिकरण को तुरंत कानून के अनुसार उचित सर्वेक्षण करके बच्चों की सूची को अद्यतन करना चाहिए, शिक्षकों और समुचित सुविधाओं से लैस करके स्कूलों का आधुनिकीकरण करना चाहिए. संविधान के अनुच्छेद 350-ए को न भूलें जो अपेक्षा रखता है कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इन शब्दों में समुचित प्राथमिक शिक्षा की जरू रत पर जोर दिया है, ‘‘रचनात्मकता भविष्य में सफलता की कुंजी है और प्राथमिक शिक्षा ही वह साधन है जिसके जरिए शिक्षक बच्चों में रचनात्मकता ला सकते हैं.