Hartalika Teej 2025: हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं द्वारा तीज का व्रत किया जाना बहुत शुभ माना जाता है। यह भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। तीज के तीन प्रमुख प्रकार हैं, जिन्हें उनके समय और पूजा विधि के आधार पर पहचाना जाता है। ये तीनों तीज हैं: हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज। यह तीनों त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत की महिलाओं द्वारा मनाए जाते हैं जिनमें राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शामिल हैं।
आइए जानते हैं क्या है तीनों के बीच फर्क
1- हरतालिका तीज
समय: यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है, जो गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले आती है। इस साल तीज 26 अगस्त को मनाया जाएगा।
महत्व: इस तीज को सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें महिलाएं निर्जला (बिना पानी पिए) और निराहार (बिना कुछ खाए) व्रत रखती हैं। यह व्रत देवी पार्वती द्वारा भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए किए गए कठोर तप का प्रतीक है।
पूजा: इस दिन मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा की जाती है। महिलाएं रात भर जागरण कर भजन और कीर्तन करती हैं।
खासियत: यह व्रत कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं ताकि उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिले। यह व्रत समर्पण, तपस्या और कठोर भक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण है।
2- हरियाली तीज
समय: यह सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार सावन के महीने में आता है, जब चारों ओर हरियाली होती है, इसलिए इसे हरियाली तीज कहा जाता है।
महत्व: यह पर्व प्रकृति और प्रेम के मिलन का प्रतीक है। यह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन की खुशी में मनाया जाता है।
पूजा: इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। वे हरे रंग के कपड़े, हरी चूड़ियां और मेहंदी लगाती हैं, जो हरियाली और सौभाग्य का प्रतीक है।
खासियत: इस दिन झूले झूलने और लोकगीत गाने की परंपरा है। यह उत्सव प्रकृति की सुंदरता और नए जीवन के आगमन को दर्शाता है।
3- कजरी तीज
समय: यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह हरियाली तीज के लगभग 15 दिन बाद आती है।
महत्व: इस तीज को 'बड़ी तीज' भी कहा जाता है, जबकि हरियाली तीज को 'छोटी तीज'। यह सुहागिन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का व्रत है।
पूजा: कजरी तीज पर नीमड़ी माता (नीम के पेड़ की पूजा) और गाय की पूजा करने का विधान है। महिलाएं शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण करती हैं।
खासियत: इस दिन सत्तू से बने पकवानों का विशेष महत्व है। महिलाएं लोकगीत गाती हैं, जिनमें पति और मायके के प्रति प्रेम को दर्शाया जाता है। यह तीज मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में मनाई जाती है।
हरतालिका तीज पूजा का महत्व
पौराणिक कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए 107 जन्मों तक कठोर तपस्या की थी। 108वें जन्म में उनकी एक सखी उन्हें उनके पिता के घर से हरण करके घने जंगल में ले गई थी ताकि उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर दें। जंगल में पार्वती जी ने रेत से शिवलिंग बनाकर निर्जला व्रत रखा और रात भर भगवान शिव का जाप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। 'हरत' का अर्थ है 'हरण करना' और 'आलिका' का अर्थ है 'सखी', इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका तीज पड़ा।
फल: यह व्रत पूरी श्रद्धा और निष्ठा से रखने पर महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। माना जाता है कि अविवाहित कन्याएं यह व्रत रखकर मनचाहा वर प्राप्त कर सकती हैं।
व्रत के नियम: यह व्रत निर्जला रखा जाता है। इसमें दिन भर अन्न और जल का सेवन नहीं किया जाता है। व्रत का पारण अगले दिन चतुर्थी तिथि को किया जाता है। अगर कोई महिला एक बार यह व्रत शुरू कर दे, तो उसे जीवन भर रखना होता है।
(डिस्क्लेमर: प्रस्तुत आर्टिकल में मौजूद जानकारी सामान्य ज्ञान पर आधारित है। लोकमत हिंदी इसकी किसी भी तरह से पुष्टि नहीं करता है। सटीक जानकारी के लिए कृपया किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।)