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बनारस से 100 साल पहले चुराई गई थी देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति, अब वापस करेगा कनाडा

By धीरज पाल | Published: November 25, 2020 7:02 PM

मैकेंजी साल 1913 में भारत घूमने के लिए आया था। तब इसने वाराणसी में गंगा नदी के किनारे इस देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति को उठा ले गया था।

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ठळक मुद्देये मूर्ति मैकेंजी आर्ट गैलरी में रेजिना विश्वविद्यालय के लाइब्रेरी का हिस्सा है। दिव्या मेहरा ने इस मूर्ति को एक प्रदर्शनीय के दौरान देखा था।

इतिहास गवाह है कि जब भारत से अंग्रेज जा रहे थे तो वो अपने साथ कई बेशकीमती कलाकृतियां भी ले गये। इनमें से कुछ कलाकृतियों को वापस किया जा चुका है और कुछ अभी भी बाकी है। इसी बीच कनाडा ने फैसला किया है कि वो भारत को उसकी एक मूर्ति को वापस करेगा। जो करीब 100 साल से अधिक समय पहले बनारस से चुराई गयी थी। ये अनोखी मूर्ति हिंदू देवी अन्नापूर्णा की है।  क्या है इस मूर्ति का इतिहास और अभी कनाडा क्यों वापस कर रहा है? इस खबर के जरिए हम आपको बताएंगे।

तो सबसे पहले आपको बता दें कि ये मूर्ति मैकेंजी आर्ट गैलरी में रेजिना विश्वविद्यालय के लाइब्रेरी का हिस्सा है। ये मूर्ति नोर्मान मैकेंजी ने 1936 को विश्वविद्यालय को दी थी। नोर्मान मैकेंजी एक आर्ट केलेक्टर और वकील था। कहा जाता है कि मैकेंजी साल 1913 में भारत घूमने के लिए आया था। तब इसने वाराणसी में गंगा नदी के किनारे इस देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति को उठा ले गया था।

अब आपको बताते हैं कि इतने समय बाद कनाडा इस मूर्ति को क्यों वापस कर रहा है? तो इस मूर्ति की ओर ध्यान खींचने वाली कलाकार दिव्या मेहरा हैं। दरअसल, दिव्या मेहरा इस मूर्ति को एक प्रदर्शनीय के दौरान देखा था। तब उन्होंने पाया कि ये मूर्ति गलत तरीके ली गई है। एक बयान के मुताबिक 19 नवंबर को इस मूर्ति का डिजिटल तरीके से लौटाने का कार्यक्रम हुआ और अब उसे शीघ्र ही वापस भेजा जाएगा। विश्वविद्यालय के अंतरिम अध्यक्ष और कुलपति डॉ थॉमस चेज ने इस मूर्ति को आधिकारिक रूप से भारत भेजने के लिए कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया से डिजिटल तरीके से मुलाकात की।

दरअसल, कनाडा का एक विश्वविद्यालय ‘ऐतिहासिक गलतियों को सही करने’ और ‘उपनिवेशवाद की अप्रिय विरासत’ से उबरने की कोशिश कर रहा है। इसी के तहत अब कनाडा भारत कि ऐतिहासिक मूर्ति को वापस करेगा।

देवी अन्नपूर्णा कौन थीं

अन्नापूर्णा धार्मिक नगरी काशी की देवी मानी जाती हैं। ये माता पार्वती की स्वरूप भी मानीं जाती हैं। पौराणिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि सिद्ध धार्मिक नगरी काशी में अन्न की कमी के कारण बनी भयावह स्थिति से विचलित भगवान शिव ने अन्नपूर्णा देवी से भिक्षा ग्रहण कर वरदान प्राप्त किया था। इस पर भगवती अन्नपूर्णा ने उनकी शरण में आने वाले को कभी धन-धान्य से वंचित नहीं होने का आशीष दिया था।

विदेशों से अब तक आईं कई कृलाकृतियां

जाते-जाते आपको बता दें पहले भी कई देशों ने भारत को बेशकीमती कलाकृतियाँ वापस लौटाई हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका से चोल काल का नटराज मूर्ति,  यूके से टेराकोटा यक्षी की मूर्ति, अमेरिका से एक और चोल काल का नटराज वापस लाया गया | अमेरिका से बुद्ध की छवि, कृष्णजन्म की मूर्तिकला, लकुलिसा की दो पेंटिंग और छवि लाई गई थी। कुछ कलाकृतियां हॉलैंड ने भी वापस की है। 

टॅग्स :कनाडावाराणसीकला एवं संस्कृति
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