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किसान आंदोलन को नियंत्रित करना चाहते हैं असामाजिक, वामपंथी और माओवादी तत्व : सरकार

By भाषा | Updated: December 12, 2020 00:15 IST

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नयी दिल्ली, 11 दिसंबर सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों से शुक्रवार को कहा कि वे अपने मंच का दुरुपयोग नहीं होने देने के लिए सतर्क रहें। साथ ही, कहा कि प्रदर्शनकारी अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं लेकिन कुछ ‘असामाजिक, वामपंथी और माओवादी’ तत्व आंदोलन का माहौल बिगाड़ने की साजिश कर रहे हैं।

दरअसल, विभिन्न मामलों में गिरफ्तार किए गए सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग करने वाली तख्तियां लिए टिकरी बॉर्डर पर कुछ प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें वायरल हुई थी। इसी पृष्ठभूमि में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि ये ‘असामाजिक तत्व’ किसानों का वेश धारण कर उनके आंदोलन का माहौल बिगाड़ने का षड्यंत्र कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए उनके और उनके प्रतिनिधियों के साथ बातचीत कर रही है।

तोमर ने ट्वीट किया, ‘‘किसानों की आपत्तियों का समाधान करने के लिए किसान संघों के पास एक प्रस्ताव भेजा गया है और सरकार इसपर आगे चर्चा के लिए तैयार है।’’

वहीं, खाद्य, रेलवे और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने कहीं अधिक मुखरता से आरोप लगाते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे कुछ माओवादी और वामपंथी तत्वों ने आंदोलन का नियंत्रण संभाल लिया है और किसानों के मुद्दे पर चर्चा करने की जगह कुछ और एजेंडा चला रहे हैं।

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘‘देश की जनता देख रही है, उसे पता है कि क्या चल रहा है, समझ रही है कि कैसे पूरे देश में वामपंथियों/माओवादियों को कोई समर्थन नहीं मिलने के बाद वे किसान आंदोलन को हाईजैक करके इस मंच का इस्तेमाल अपने एजेंडे के लिए करना चाहते हैं।’’

किसान नेताओं ने हालांकि बृहस्पतिवार को स्पष्ट रूप से कहा था कि केन्द्र के कृषि कानूनों के खिलाफ उनके प्रदर्शन का राजनीति से कोई वास्ता नहीं है।

इसबीच, भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने शुक्रवार को स्पष्ट रूप से कहा कि नये कृषि कानूनों को समाप्त किए जाने से कम पर कोई समझौता नहीं होगा और अगर सरकार बात करना चाहती है, तो पहले की तरह औपचारिक रूप से किसान नेताओं को सूचित करे।

सरकार ने किसान संगठनों ने कहा है कि उनकी चिंताओं के निवारण के लिए सौंपे गए प्रस्ताव पर वे गौर करें और जरुरत होने पर वह आगे भी चर्चा के लिए तैयार है।

टिकैत ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ उसे (सरकार को) पहले हमें यह बताना चाहिए कि वह कब और कहां हमारे साथ बैठक करना चाहती है, जैसा कि उसने पिछली वार्ताओं के लिए किया। यदि वह हमें वार्ता का निमंत्रण देती है तो हम अपनी समन्वय समिति में उसपर चर्चा करेंगे और फिर निर्णय लेंगे।’’

भाकियू नेता ने कहा कि जबतक सरकार तीनों नये कानूनों को निरस्त नहीं करती है तबतक घर लौटने का सवाल ही नहीं है।

जब उनसे पूछा गया कि क्या सरकार ने आगे की चर्चा के लिए न्यौता भेजा है, तो उन्होने कहा कि किसान संगठनों को ऐसा कुछ नहीं मिला है। उन्होंने कहा, ‘‘ एक बात बहुत स्पष्ट है कि किसान नये कृषि कानूनों के निरस्त किए जाने से कुछ भी कम स्वीकार नहीं करेंगे।’’

इसबीच, किसान आंदोलन को लेकर उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि रचनात्मक बातचीत के माध्यम से सभी समस्याओं का समाधान निकल सकता है।

उन्होंने राजनीति में ‘जाति, अपराधिकरण, सामुदायिकरण और नकदी’ के बढ़ते प्रभाव पर भी चिंता जतायी और जनता से कहा कि अपना प्रतिनिधि चुनते हुए वे ‘क्षमता, व्यवहार और चरित्र’ आदि पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि जनता प्रदर्शन के आधार पर अपने प्रतिनिधि और सरकारों का चुनाव करे।

आधिकारिक बयान के अनुसार, ‘‘किसानों के मुद्दे पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि सभी समस्याओं का समाधान रचनात्मक बातचीत के माध्यम से हो सकता है।’’

किसान नेताओं ने बृहस्पतिवार को घोषणा की थी कि यदि उनकी मांगें सरकार नहीं मानती है तो वे देशभर में रेलमार्गों को जाम कर देंगे और शीघ्र ही इस बारे में तारीख घोषित करेंगे।

केन्द्र और किसानों के प्रतिनिधियों, विशेष रूप से प्रदर्शन में शामिल हरियाणा पंजाब के किसानों के नेताओं, के बीच कम से कम पांच दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन गतिरोध अभी भी जारी है। राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर दो सप्ताह से प्रदर्शन कर रहे किसान केन्द्र के नये कृषि कानूनों को निरस्त करने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली बरकरार रखने की मांग कर रहे हैं।

सरकार और किसान नेताओं के बीच छठे दौर की वार्ता बुधवार को होनी थी, लेकिन वह रद्द हो गई।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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