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कारवां रिव्यु: अंधे मोड़ और ख़राब सड़क से भरी इस यात्रा पर सोच समझ कर ही निकलें

By असीम | Published: August 03, 2018 2:42 PM

Kaarwan Movie Review Update in Hindi:कारवां की कमज़ोर स्क्रिप्ट ही उसकी सबसे बड़ी खामी है। इरफ़ान खान, दुलकर सलमान जैसे मंझे हुए कलाकार के होते हुए फिल्म बहुत धीमी और बोझिल लगती है।

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बॉलीवुड में इस हफ्ते तीन फिल्में रिलीज़ हुई हैं और कारवां बाकी दो फिल्मों की अपेक्षा एक छोटी फ़िल्म है। कारवां से हिंदी सिनेमा में कदम रखा है मलयालम सिनेमा के हिट एक्टर दुलकर सलमान ने। फ़िल्म में दुलकर के साथ इरफान खान खान और मिथिला पारकर भी हैं।

कहानी है दुलकर सलमान की और उनके पिता की अचानक मौत और उसके बाद उनकी बॉडी की गलत डिलीवरी। दुलकर इरफान खान के साथ मिलकर कोयम्बटूर जाने के लिये निकले हैं और इस दौरान उनकी मुलाक़ात होती है मिथिला पारकर से जिनकी नानी की बॉडी दुलकर के पास है। फिल्म के तीनो किरदार के अपने पिता से किसी न किसी बात पर नहीं बनती और इस यात्रा के दौरान ये तीनो कैसे इस उलझन को समझते हैं, यही है कारवां की कहानी ।

किसी साउथ के एक्टर की फिल्मी शुरुआत अक्सर थोड़ी धमाकेदार होती है। लेकिन दुलकर ने हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत एक रोड फिल्म से करी है। वैसे भी दुलकर सलमान ज़्यादातर लाइट फिल्में करते हैं तो इस लिहाज़ से उनका कारवां फ़िल्म को चुनना ज़्यादा चौकाने वाला फैसला नहीं है।दुलकर अलग अलग दक्षिण भारतीय भाषाओं में लगभग पच्चीस फिल्में कर चुके हैं इस वजह से अपनी पहली हिंदी फिल्म में भी वो एक मंझे हुए कलाकार की तरह ही सहज लगते हैं। चूँकि दुलकर इसी तरह की फिल्में पहली भी कर चुके हैं तो ये क़िरदार उनके लिये खास मुश्किल नहीं था। कमज़ोर स्क्रिप्ट के चलते उनका किरदार ज्यादा उभरकर नहीं आता। कुल मिलाकर दुलकर की ये एक अच्छी शुरुआत है।

कारवां में मिथिला पारकर हैं जो नये ज़माने की लड़की हैं और काफी स्वतंत्र विचार वाली हैं। उनका और दुलकर कोई रोमांटिक एंगल तो फ़िल्म में नही हैं लेकिन दोनों एक अच्छे दोस्त ज़रूर बनते हैं। उनके लिए फ़िल्म में करने के लिये कुछ खास करने को नहीं हैं। फ़िल्म में कोई ऐसा गाना भी नहीं है जिसमे मिथिला पारकर को अपनी डांस स्किल दिखाने का मौका मिले।

फ़िल्म में सबसे ज़्यादा वाह वाही बटोर ले जाते हैं इरफ़ान खान। उनका शफ़क़त नाम का क़िरदार दुलकर का दोस्त है जिसकी गाड़ी रिपेयरिंग की दुकान है। पूरी फ़िल्म में इऱफान ही सीन को बोझिल होने से बचाते हैं। लेकिन कुछ समय के बाद इरफ़ान भी फिल्म को ज्यादा कुछ दे नहीं पाते हैं। फिल्म का संगीत भी कुछ ख़ास नहीं है। दो गाने हैं जो सुनने में ठीक ठाक लगते हैं।

कारवां एक साफ़ सुथरी, पारिवारिक फिल्म जो कभी कभी बहुत धीमी लगती है। अगर आप एक हलकी फुल्की फिल्म देखना पसंद करते हैं तो कारवां देखें।

रेटिंग: ***

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