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कश्मीर मसले पर फिर किरकिरी हुई पाकिस्तान की

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 25, 2024 11:22 AM

शाहबाज शरीफ ने कश्मीर को भी वार्ता का एक मुद्दा बनाने की कोशिश की और ईरानी राष्ट्रपति का समर्थन हासिल करने का भरपूर प्रयास किया लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी. 

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ठळक मुद्देकश्मीर मसले पर दोस्ती की आड़ में ईरान का समर्थन हासिल करने की पाकिस्तान की कोशिशें बुरी तरह नाकाम हुई हैं.ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी तीन दिन की पाकिस्तान यात्रा पर आए थे.शाहबाज शरीफ को उम्मीद थी कि ईरानी राष्ट्रपति इस मुद्दे पर उनका समर्थन करेंगे मगर रईसी कुछ बोले ही नहीं.

कश्मीर मसले पर दोस्ती की आड़ में ईरान का समर्थन हासिल करने की पाकिस्तान की कोशिशें बुरी तरह नाकाम हुई हैं. ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी तीन दिन की पाकिस्तान यात्रा पर आए थे. शाहबाज शरीफ ने कश्मीर को भी वार्ता का एक मुद्दा बनाने की कोशिश की और ईरानी राष्ट्रपति का समर्थन हासिल करने का भरपूर प्रयास किया लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी. 

दोनों नेताओं की बातचीत के बाद जब संयुक्त संवाददाता सम्मेलन हुआ तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने बिना किसी औचित्य के कश्मीर के मसले का जिक्र कर दिया. शाहबाज शरीफ को उम्मीद थी कि ईरानी राष्ट्रपति इस मुद्दे पर उनका समर्थन करेंगे मगर रईसी कुछ बोले ही नहीं. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की बहुत बेइज्जती हुई. 

चेहरे पर लगी कालिख हटाने के लिए शरीफ ने जैसे-तैसे संयुक्त बयान में कश्मीर मसले का समावेश तो करवा लिया लेकिन ईरानी राष्ट्रपति से वह संयुक्त बयान में जो कहलवाना चाहते थे, वह कहलवा नहीं सके. पाकिस्तान चाहता था कि ईरान कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलकर साथ दे और भारत के रवैये की कड़े शब्दों में निंदा करे. संयुक्त बयान में ईरान ने कश्मीर मामले पर बेहद संतुलित रुख अपनाया है. 

उसने इसे दोनों देशों के बीच विवाद मानने से साफ इनकार कर दिया और महज इतना कहा कि कश्मीर को लेकर अगर कुछ मतभेद हैं, तो उसे शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से हल कर लिया जाना चाहिए. शरीफ ने रईसी से वार्ता के दौरान कश्मीर की तुलना गाजा की स्थिति से करने का प्रयास किया था.

वह चाहते थे कि संवाददाता सम्मेलन और संयुक्त बयान में कश्मीर की तुलना गाजा से करते हुए ईरानी राष्ट्रपति पाकिस्तान की इच्छा के मुताबिक भारत को कठघरे में खड़ा करें. रईसी ने शरीफ की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. 

भारत और ईरान के व्यापारिक, राजनयिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक संबंध बहुत पुराने हैं. इस वक्त ईरान और इजराइल के बीच भले ही टकराव चल रहा हो, मगर भारत के साथ उसके संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है. ईरान और इजराइल दोनों से भारत के प्रगाढ़ संबंध हैं. पाकिस्तान शायद इस मुगालते में था कि इजराइल पर दबाव बनाने के लिए ईरानी राष्ट्रपति उसकी धरती पर आकर कश्मीर के मसले पर कोई बयान दे देंगे लेकिन शरीफ को नीचा देखना पड़ा. न केवल एशिया बल्कि विश्व मंच पर भारत की बढ़ती ताकत से ईरान वाकिफ है. 

दूसरी ओर वह अंतरराष्ट्रीय जगत में पाकिस्तान की नकारात्मक छवि तथा बेअसर मौजूदगी को भी जानता है. भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि ईरान हमसे कच्चे तेल का व्यापार डॉलर में नहीं भारतीय रुपए में करता है. इससे कच्चा तेल भारत को सस्ते में पड़ता है. ईरान का यह कदम भारत के प्रति उसके सौहार्द्र को दर्शाता है. 

दोनों देशों के बीच जितने अरब डॉलर का व्यापार होता है, वह पाकिस्तान के कुल बजट के 20 फीसदी के बराबर है. भारत के साथ व्यापारिक संबंधों से ईरान की अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिलती है. इसके विपरीत पाकिस्तान के साथ ईरान के व्यापारिक संबंधों का दायरा सीमित है. ईरान जानता है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का साथ उसके लिए बहुत असरदार साबित होगा. 

यही नहीं ईरान के राष्ट्रपति यह भी जानते हैं कि इजराइल के साथ उसके मौजूदा टकराव को खत्म करने में भारत की भूमिका बेहद निर्णायक रह सकती है. कश्मीर मसला पाकिस्तान के तमाम राजनेताओं तथा उनकी पार्टियों के लिए संजीवनी के समान है. इस मसले की आड़ में पाकिस्तानी सेना तथा सत्ताधीश जनता का ध्यान भटकाते रहते हैं. 

ईरान का समर्थन हासिल करने की पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की कोशिश की विफलता ने एक बार फिर पाक का सिर शर्म से झुका दिया है. कश्मीर को लेकर पाकिस्तान को अपनी हास्यास्पद हरकतें बंद कर देनी चाहिए.

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