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ब्लॉगः भारत का अफगानिस्तान से रिश्ते सामान्य होना जरूरी, पाकिस्तान से नजदीकी सामरिक और सुरक्षा हितों के लिए बड़ा जोखिम

By शोभना जैन | Updated: June 11, 2022 16:42 IST

। तालिबान सरकार वाले अफगानिस्तान के साथ धीरे-धीरे दोबारा रिश्ते बहाल करना जरूरी तो है, लेकिन ऐसा करते वक्त हमें यह ध्यान रखना होगा कि तालिबान से जुड़े रहे आतंकी तत्व भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों से दूर रहें, साथ ही अपने देश के लोगों के साथ, विशेष तौर पर महिलाओं के साथ मानवाधिकारों को लेकर उनका क्या रवैया रहता है।

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अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के लगभग नौ माह बाद पहली बार पिछले हफ्ते भारत के विदेश मंत्रालय की एक उच्चस्तरीय टीम अफगानिस्तान पहुंची। टीम ने वहां भारत द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं और मानवीय सहायता कार्यक्रमों का जायजा लिया, साथ ही तालिबान सरकार के प्रतिनिधियों के साथ सरकार बनने के बाद सीधी बातचीत की। जाहिर है भारत के तालिबान सरकार के साथ इस सीधे संपर्क से अपने निहित स्वार्थों  को लेकर पाकिस्तान और चीन  चौकन्ने हो गए हैं। अफगानिस्तान के साथ पुराने प्रगाढ़ सांस्कृतिक, सामाजिक रिश्तों के साथ ही सामरिक रिश्ते हमारे राष्ट्रीय हितों से जुड़े हैं। निश्चित तौर पर अफगानिस्तान के साथ भारत के खास रिश्ते रहे हैं। तालिबान सरकार वाले अफगानिस्तान के साथ धीरे-धीरे दोबारा रिश्ते बहाल करना जरूरी तो है, लेकिन ऐसा करते वक्त हमें यह ध्यान रखना होगा कि तालिबान से जुड़े रहे आतंकी तत्व भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों से दूर रहें, साथ ही अपने देश के लोगों के साथ, विशेष तौर पर महिलाओं के साथ मानवाधिकारों को लेकर उनका क्या रवैया रहता है। इसीलिए लगता है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने का उसी भावना से जबाव देते हुए भी भारत तालिबान सरकार से सीधे संपर्क साधने के साथ ही अभी वहां की सरकार को मान्यता देने के बारे में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता है।

इसी क्रम में यह बात भी अहम है कि भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी तथा पाकिस्तान अफगानिस्तान मामलों के प्रभाग में संयुक्त सचिव जे. पी. सिंह की अध्यक्षता में शामिल इस शिष्टमंडल में भारतीय विदेश सेवा की महिला अधिकारी दीप्ति झरवाल भी शामिल थीं, जिन्होंने तालिबान की उपस्थिति वाली सभी शिष्टमंडल बैठकों में भारत की तरफ से हिस्सा लिया और अपने देश में महिलाओं के साथ अब भी तालिबानी बर्ताव करने वाली तालिबान सरकार ने इस पर कोई रुकावट नहीं डाली। जाहिर है कि तालिबान ने शायद यह समझना शुरू कर दिया है कि वह इस बर्ताव से दुनिया में अलग-थलग रह कर काम नहीं कर सकता है। इसी के तहत वह देश की आधारभूत सुविधाओं के विकास और विस्तार तथा शासन चलाने के लिए प्रशिक्षित प्रोफेशनल चाह रहा है क्योंकि गत अगस्त में तालिबानी कब्जे के बाद वहां मची अफरा तफरी और हिंसा के मद्देनजर बड़ी तादाद में प्रशिक्षित अफगान नागरिकों ने देश छोड़ दिया। एक पूर्व भारतीय वरिष्ठ राजनयिक के अनुसार इसीलिए इस दौरे में उसकी  भारत से बातचीत के लिए उत्सुकता से तो यही लगता है और ऐसे संकेत भी हैं कि तालिबान भारत से बेहतर संबंध चाहता है। दरअसल तालिबान ने काबुल में सत्ता ग्रहण करने के बाद जब कहा कि वह अपनी धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं करेगा, तो तालिबान का यह कहना पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका था, लेकिन भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा सकता है।

भारतीय टीम का अफगानिस्तान दौरा अगस्त 2021 में तालिबान शासन आने के बाद काबुल से पहला उच्चस्तरीय सीधा संपर्क है. हाल में तालिबान और भारत के बीच पर्दे के पीछे कई स्तर पर बातचीत हुई है। सिंह दोहा, कतर में भी तालिबान प्रतिनिधियों से मिल चुके हैं। भारत ने 15 अगस्त को अफगनिस्तान में मची सियासी अफरा-तफरी के बाद दूतावास सेवाएं 17 अगस्त 2021 से अस्थाई तौर पर बंद कर दी थीं। सभी भारतीय राजनयिकों और नागरिकों को भी वहां से निकाल लिया गया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार तालिबान के साथ भारत का संपर्क अफगानिस्तान के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंधों पर आधारित है।

यहां अगर भारत अफगानिस्तान संबंधों के सामरिक पहलू की चर्चा करें तो पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे और पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ विवेक काटजू मानते हैं कि सामरिक पहलुओं के मद्देनजर भारत की अफगानिस्तान में स्थायी मौजूदगी जरूरी है। इस यात्रा को इन्हीं प्रयास बतौर देखा जा सकता है। अमेरिका के अफगानिस्तान से जाने के बाद अब चीन और पाकिस्तान तालिबान के नजदीक रहते हैं तो इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत को ही होगा। तालिबान के जरिये पाकिस्तान भारत में आतंकवाद बढ़ा सकता है, तो वहीं चीन आर्थिक मोर्चे पर भारत को नुकसान पहुंचा सकता है। पुराने तालिबान के साथ भारत का अनुभव तल्ख रहा है, और भारत ने उससे दूरी बना ली थी लेकिन इस बार का तालिबान लगातार यह बात कहता रहा है कि वह अपनी जमीन को आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा।  अफगानिस्तान की पाकिस्तान से नजदीकी भारत के सामरिक हितों और सुरक्षा हितों के लिए बड़ा जोखिम है और फिर भारत ने वहां पिछले बीस वर्षों में अरबों रु. का निवेश कर उसके विकास में योगदान दिया है, इस सबके मद्देनजर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ संपर्क रखना समय की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार आपसी समझदारी से रिश्तों की अहमियत समझेगी जिससे न केवल द्विपक्षीय संबंध प्रगाढ़ होंगे बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा भी मजबूत होगी।

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