सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि क्या विजेता पार्टी भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में जाति-धर्म का सहारा नहीं लिया? अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी शोध केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक भाजपा ने अपने 45 फीसदी से ज्यादा टिकट ऊंची जाति के उम्मीदवारों को दिए, क्यो
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भारत में कानून बहुत हैं लेकिन चीन में व्यवस्था है. आपको कानून और व्यवस्था दोनों की जरूरत है. आर्थिक सुधारों की तुलना में प्रशासनिक सुधार करना बहुत कठिन होगा.
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मालिक और संपादक के रिश्ते भी बदले हैं. सरकारी तंत्न की दखलंदाजी तथा प्रलोभन की वृत्ति ने भी मीडिया को प्रभावित किया है. तकनीकी प्रगति ने मीडिया को यथार्थ के बड़े ही करीब खड़ा कर दिया है और दर्शक के लिए उसे झुठलाना संभव ही नहीं होता.
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पहले जनसंघ और फिर भाजपा पर हिंदी थोपने का आरोप तो लगता ही रहा है. अब से लगभग 30 साल पहले जब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्नी मुलायम सिंह और मैं, मद्रास में तत्कालीन मुख्यमंत्नी करुणानिधि से मिलने गए तो उनका पहला सवाल यही था कि क्या आप हम पर हिंदी थोपने यहा
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दरअसल इस बार की चक्रवर्ती विजय में भारतीय जनता पार्टी की कोई सामूहिक समग्र और संपूर्ण भागीदारी नहीं दिखाई देती. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मतदाताओं ने अपना निर्णय सुनाया है.
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दुनिया भर की सरकारें और पर्यावरण की चिंता करने वाले लोग शहरी पर्यावरण की सुरक्षा के लिए साइकिल सवारी को बढ़ावा देने में जुटे हैं. फ्रांस की राजधानी पेरिस को 2020 तक दुनियाभर की साइकिलिंग राजधानी बनाने के लिए 1.5 करोड़ यूरो की योजना बनाई गई है.
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अंतत: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस निष्कर्ष पर पहुंच ही गए कि ‘मैंने यह तय किया है कि भारत ने अमेरिका को अपने बाजार तक समान और तर्कपूर्ण पहुंच देने का आश्वासन नहीं दिया है इसलिए 5 जून 2019 से भारत को प्राप्त लाभार्थी विकासशील देश का दर्जा समा
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चुनाव के दौरान सरकारी नेताओं ने काफी लंबी-चौड़ी बातें कहीं लेकिन आर्थिक मोर्चे पर वे मौन साधे रहे. उनका जोर देश के आर्थिक विकास पर उतना नहीं रहा, जितना राहत देने की राजनीति पर या बालाकोट आदि पर रहा.
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