वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राहत की राजनीति काफी नहीं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: June 3, 2019 07:23 AM2019-06-03T07:23:26+5:302019-06-03T07:23:26+5:30
चुनाव के दौरान सरकारी नेताओं ने काफी लंबी-चौड़ी बातें कहीं लेकिन आर्थिक मोर्चे पर वे मौन साधे रहे. उनका जोर देश के आर्थिक विकास पर उतना नहीं रहा, जितना राहत देने की राजनीति पर या बालाकोट आदि पर रहा.
नए मंत्रिमंडल का स्वागत करने में देश के लोग खुशी मना रहे थे, उसी समय खबर आई कि इस समय देश में बेरोजगारी की दर 45 साल में सबसे ज्यादा यानी 6.1 प्रतिशत है. शहरों में 7.8 प्रतिशत और गांवों में 5.3 प्रतिशत युवक बेरोजगार हैं. सरकार के सांख्यिकी विभाग ने अब से पांच माह पहले यह रपट तैयार की थी और इसे एक अखबार ने छाप दिया था. लेकिन सरकार ने सारे मामले को दरी के नीचे सरका दिया था. इससे नाराज होकर सांख्यिकी आयोग के दो सदस्यों ने इस्तीफा भी दे दिया था. इसी प्रकार देश के आर्थिक विकास की दर जितनी इस बार पिछले तीन महीने में घटी है, पिछले पांच साल में नहीं घटी. वह 5.8 प्रतिशत तक गिर गई. यह चिंताजनक स्थिति है.
चुनाव के दौरान सरकारी नेताओं ने काफी लंबी-चौड़ी बातें कहीं लेकिन आर्थिक मोर्चे पर वे मौन साधे रहे. उनका जोर देश के आर्थिक विकास पर उतना नहीं रहा, जितना राहत देने की राजनीति पर या बालाकोट आदि पर रहा. मंत्न यह है कि लोगों को तरह-तरह की मीठी गोलियां आप देते रहें ताकि उन्हें चूसते-चूसते वे उनकी आर्थिक कड़वाहट भूल जाएं. सरकार द्वारा पहले भी किसानों को राहत दी गई थी. कांग्रेस ने भी नहले पर दहला मारने की कोशिश की थी. दोनों दलों के पास देश में खेती, व्यापार और रोजगार को बढ़ाने की कोई ठोस योजना नहीं है.
दोनों वोटरों को राहत देने में विश्वास करते हैं. आम आदमी को कुछ राहत मिले, यह अच्छी बात है लेकिन आप जब तक अर्थव्यवस्था में बुनियादी सुधार नहीं करेंगे, यह राहत की राजनीति भारत को आलसियों का देश बना देगी. देश के सरकारी कर्मचारी यदि अर्थव्यवस्था को मुस्तैद बनाने में जुटें और भ्रष्टाचारमुक्त हों तो भारत के स्वाभिमानी नागरिक गौरव महसूस करेंगे. नीति आयोग के मुखिया राजीव कुमार की इस घोषणा से कुछ आशा बंधती है कि अगले 100 दिन में अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सरकार कई नई पहल करनेवाली है.