रहीस सिंह का ब्लॉग: जीएसपी से भारत की बेदखली के मायने
By रहीस सिंह | Published: June 3, 2019 07:34 AM2019-06-03T07:34:57+5:302019-06-03T07:34:57+5:30
अंतत: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस निष्कर्ष पर पहुंच ही गए कि ‘मैंने यह तय किया है कि भारत ने अमेरिका को अपने बाजार तक समान और तर्कपूर्ण पहुंच देने का आश्वासन नहीं दिया है इसलिए 5 जून 2019 से भारत को प्राप्त लाभार्थी विकासशील देश का दर्जा समाप्त करना बिल्कुल सही है.’
अब विषय यह है कि वर्ष 2018 के आते-आते भारत-अमेरिका संबंध उस ऊंचाई पर पहुंच गए थे कि अमेरिका ने भारत को अपना ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ घोषित किया था और यह घोषणा की थी कि अब 99 प्रतिशत अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकियों तक भारत की पहुंच होगी. अमेरिका का औपचारिक सहयोगी हुए बिना ही भारत यह दर्जा पाने वाला दुनिया का अकेला देश बना था. लेकिन दूसरी तरफ ट्रम्प प्रशासन भारत को व्यापार पर मिलने वाली सामान्य छूटों से वंचित कर रहा है.
सवाल यह कि ऐसा क्यों? तो क्या भारत-अमेरिका ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ हैं, जैसी शब्दावली यथार्थ से अधिक कलात्मकता का प्रतिनिधित्व कर रही थी? या फिर अमेरिका रणनीति के मामले में तो भारत को अपना सहयोगी बनाना चाहता है लेकिन आर्थिक लाभांशों में नहीं? भारत और अमेरिकी रिश्तों के संबंध में कहा जा रहा था कि ये नए युग में प्रवेश कर चुके हैं. तो क्या यह नया युग प्रतिबंधों और संघर्षो का युग होगा या सहयोगात्मक रणनीति का?
प्रश्न यह है कि इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अध्ययन बताते हैं कि सीधे तौर पर तो इसके असर से भारत के ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, केमिकल्स और इंजीनियरिंग क्षेत्रों के लगभग 2000 उत्पाद चपेट में आ जाएंगे. दूसरा यह कि अमेरिकी प्रशासन का जीएसपी संबंधी निर्णय तनावग्रस्त भारतीय निर्यातकों के लिए परेशान करने वाला साबित हो सकता है. हालांकि ट्रम्प की घोषणा के समय केंद्रीय वाणिज्य सचिव अनूप वधावन का एक बयान था जिसमें कहा गया था कि भारत का जीएसपी दर्जा खत्म होने से भारतीय निर्यात पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा.
उनके अनुसार भारत ने वर्ष 2017-18 में अमेरिका को 48 अरब डॉलर मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया था जिसमें से सिर्फ 5.7 करोड़ डॉलर का निर्यात जीएसपी रूट के जरिए हुआ है और 1.90 करोड़ डॉलर कीमत की वस्तुएं ही बिना किसी शुल्क वाली श्रेणी में शामिल रहीं. इससे साफ जाहिर है कि अमेरिका के इस फैसले का भारत पर बेहद मामूली असर होगा.
वाणिज्य सचिव की बात अपनी जगह सही हो सकती है लेकिन अगर इसका आर्थिक लाभ अमेरिका को नहीं मिल रहा है तो उसे ऐसा कदम उठाने की जरूरत नहीं थी और यदि उसे लाभ मिल रहा है तो संगत अनुपात में भारत को हानि होगी.