गुरचरण दास का ब्लॉग: सरकार अब प्रशासनिक सुधार का कदम उठाए
By गिरीश्वर मिश्र | Published: June 4, 2019 09:19 AM2019-06-04T09:19:03+5:302019-06-04T09:19:03+5:30
भारत में कानून बहुत हैं लेकिन चीन में व्यवस्था है. आपको कानून और व्यवस्था दोनों की जरूरत है. आर्थिक सुधारों की तुलना में प्रशासनिक सुधार करना बहुत कठिन होगा.
नरेंद्र मोदी के दुबारा चुने जाने के बाद, भारत में तानाशाही का डर फिर से व्यक्त किया जाने लगा है. लेकिन मैं विपक्ष को लेकर चिंतित हूं. मुङो मजबूत सरकार से नहीं बल्कि कमजोर और अप्रभावी सरकार से डर लगता है. सरकार कमजोर होने से संस्थान कमजोर हो जाते हैं, विशेष रूप से कानून-व्यवस्था कमजोर हो जाती है, और न्याय मिलने में कई-कई साल लग जाते हैं. वर्तमान में 3.3 करोड़ मामले अदालतों में लंबित हैं. एक कमजोर सरकार शक्तिशाली लोगों से कमजोरों की रक्षा नहीं कर पाती. कमजोर सरकार लोगों को आश्वस्त करने के बजाय उनके मन में अनिश्चितता पैदा करती है.
एक सबक जो पिछले पांच वर्षो से मोदी को सीखना चाहिए, वह भारतीय प्रधानमंत्री की शक्ति की सीमा के बारे में है. एक उदारवादी लोकतांत्रिक सरकार तीन स्तंभों पर टिकी होती है : एक प्रभावी कार्यपालिका, कानून का शासन और जवाबदेही. हम तीसरे स्तंभ पर ज्यादा जोर देते हैं, जबकि वास्तविक मुद्दा पहला है. चूंकि देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है, इसलिए भारत की प्रमुख समस्या जवाबदेही नहीं है. यह सरकार की काम कर पाने की क्षमता के बारे में है.
भारतीय प्रधानमंत्री इसलिए भी कमजोर होते हैं क्योंकि वास्तविक शक्ति राज्यों के मुख्यमंत्रियों में निहित होती है, जो भारत के वास्तविक शासक हैं. यह दिलचस्प है कि मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के प्रदर्शन को देखते हुए ही उन्हें 2014 में प्रधानमंत्री चुना गया था, यह सोचकर कि प्रधानमंत्री के रूप में भी वे वैसा ही चमत्कार दिखाएंगे. ऐसा नहीं हुआ.
2014 में, नरेंद्र मोदी ने भारत का कायाकल्प करने के लिए देश की जनता से दस साल का समय मांगा था. अब उनके पास मौका है. इस बदलाव की शुरुआत आर्थिक नहीं बल्कि प्रशासनिक सुधार से होनी चाहिए. हालांकि भारत में प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाना आसान नहीं होगा, क्योंकि भारत ऐतिहासिक रूप से चीन के विपरीत एक बंटा हुआ राज्य रहा है. हमारा इतिहास स्वतंत्र राज्यों का है जबकि चीन में एकीकृत साम्राज्यों का इतिहास रहा है.
क्या नरेंद्र मोदी ऐसे मजबूत नेता साबित होंगे जो निहित स्वार्थो से परे हटकर भारतीय राज्य की प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाने का साहस दिखा पाएंगे? निश्चित रूप से उनके पास काफी अनुभव है, गुजरात का भी और केंद्र का भी. हर कोई जानता है कि क्या किया जाना चाहिए; असली सवाल यह है कि वह कब किया जाएगा.
भारत में कानून बहुत हैं लेकिन चीन में व्यवस्था है. आपको कानून और व्यवस्था दोनों की जरूरत है. आर्थिक सुधारों की तुलना में प्रशासनिक सुधार करना बहुत कठिन होगा. लेकिन उनमें सुधार करने के फायदे भी बहुत बड़े हैं. यदि मोदी ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो वे एक ऐसे महान नेता के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ के अपने वादे को पूरा किया.