देश की प्राचीन पांडुलिपियां हमारी संस्कृति, इतिहास और बौद्धिक विरासत का अनमोल हिस्सा हैं. ये दस्तावेज साहित्य, विज्ञान, दर्शन और धर्म से जुड़े हैं. ये हमें हमारी ऐतिहासिक जड़ों से जोड़ते हैं और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करते हैं. संस्कृत, तमिल, फारसी जैसी भाषाओं में लिखी ये पांडुलिपियां गणित, खगोलशास्त्र और आयुर्वेद जैसे क्षेत्रों में भारत के योगदान को दिखाती हैं. इन्हें बचाना जरूरी है. डिजिटाइजेशन और संरक्षण के जरिये इन्हें भविष्य के लिए सुरक्षित किया जा सकता है. शोध की दुनिया में एक छोटे से ख्याल को पक्की, छपने लायक पांडुलिपि में बदलना किसी बड़े रोमांच जैसा है.
नए शोधकर्ता, पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स और यहां तक कि अनुभवी शिक्षाविद भी इस प्रक्रिया की मुश्किलों से जूझते हैं. डॉ. आर.सी. गौड़ ने अपनी किताब फ्रॉम मैन्युस्क्रिप्ट टू मेमोरी (स्मृति से पांडुलिपि तक) में मयंक शेखर के साथ मिलकर इन मुश्किलों को हल करने की हरचंद कोशिश की है.
भारत की पांडुलिपियां कई भाषाओं, लिपियों और ज्ञान प्रणालियों को समेटे हुए हैं, जो हमारी सभ्यता के दर्शन, चिकित्सा, विज्ञान, संगीत, कला और शासन के विकास को दर्शाती हैं. किताब फ्रॉम मैन्युस्क्रिप्ट टू मेमोरी बताती है कि शोध की समस्या कैसे ढूंढ़ें, एक मजबूत परिकल्पना कैसे बनाएं और सही तरीके से मेथडोलॉजी कैसे तैयार करें.
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण केवल भौतिक स्मारकों तक सीमित नहीं है; यह हमारी भाषाओं, परंपराओं, और जीवन शैली को भी शामिल करता है. यदि हम इसे संरक्षित नहीं करेंगे तो हम अपनी सांस्कृतिक पहचान और इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्सों को खो देंगे. यह न केवल हमारी राष्ट्रीय अस्मिता को कमजोर करेगा, बल्कि वैश्वीकरण के दौर में हमारी अनूठी सांस्कृतिक विशेषताएं भी लुप्त हो सकती हैं.
इसलिए, इसे सहेजना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि यह भविष्य के लिए एक निवेश भी है. संस्कृति मंत्रालय के तहत विभिन्न योजनाएं जैसे कला प्रदर्शन अनुदान योजना, युवा कलाकारों के लिए छात्रवृत्ति, और टैगोर राष्ट्रीय सांस्कृतिक अनुसंधान अध्येतावृत्ति योजना, अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों का रखरखाव और संरक्षण किया जा रहा है. इसके अतिरिक्त ‘अमृत भारत’ और ‘स्वदेश दर्शन’ जैसी योजनाएं सांस्कृतिक स्थलों को पर्यटन के लिए विकसित कर रही हैं.