हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते है. यह तिथि मास में दो बार आती है. पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद. पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं. यह मार्गशीर्ष का महीना है और इसकी पहली एकादशी 11 दिसंबर को थी, जिसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है. साल 2020 की आखिरी एकादशी 25 दिसंबर को है. इसे मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. मोक्षदा एकादशी का महत्व जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात हो जाता है कि मोक्षदा एकादशी मोक्ष दिलाने वाली एकादशी है. कहते हैं इस एकादशी के व्रत से न केवल मोक्ष मिलता है बल्कि जन्मों जन्मों के पाप भी धुल जाते हैं. इसीलिए बाकी सभी एकादशियों में इसे श्रेष्ठ माना गया है. कुरुक्षेत्र के युद्ध में जब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया, उस दिन मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) ही थी. इसीलिए इस दिन गीता जयंती मनाई जाती है. मोक्षदा एकादशी शुभ मुहुर्तएकादशी तिथि 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 17 मिनट से शुरू हो जाएगी और अगले दिन 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 54 मिनट तक रहेगी. मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि सुबह स्नान के बाद आसन बिछाकर व्रत का संकल्प लें घर के मंदिर में गंगाजल छिड़ककर उसे पवित्र करें. भगवान विष्णु को स्नान करवाने के बाद उनके समक्ष घी का दीपक जलाएंफिर कथा श्रवण करें और दिन भर व्रत रखें. इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है. अगले दिन नहा धोकर, पूजा के बाद ही व्रत का पारण करें.