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पानी कम पीते हैं तो अलर्ट हो जाएये?, जो लोग प्रतिदिन 1.5 लीटर से कम पीते हैं तो, देखिए शरीर में क्या बदलाव

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 24, 2025 17:42 IST

गहरे रंग के, अधिक गाढ़े पेशाब ने उनके निर्जलीकरण का संकेत दिया, जिससे यह साबित हुआ कि प्यास हमेशा तरल पदार्थ की जरूरत का विश्वसनीय संकेतक नहीं होती।

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ठळक मुद्दे‘कोर्टिसोल’ शरीर का प्राथमिक तनाव हार्मोन होता है।शरीर ने कुछ और ही कहानी बयां की।मुश्किल समय में कोर्टिसोल का स्राव बढ़ सकता है।

लिवरपूलः अधिकांश लोग जानते हैं कि उन्हें अधिक पानी पीना चाहिए, लेकिन हमारे नए अध्ययन से पता चलता है कि कम पानी पीने का एक अप्रत्याशित परिणाम यह हो सकता है: इससे रोजमर्रा के तनाव को संभालना काफी कठिन हो सकता है। ‘जर्नल ऑफ एप्लाइड फिजियोलॉजी’ में प्रकाशित हमारे अध्ययन में पाया गया कि जो लोग प्रतिदिन 1.5 लीटर से कम पानी पीते हैं, उनमें तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने पर ‘कोर्टिसोल’ का स्तर नाटकीय रूप से बढ़ जाता है। ‘कोर्टिसोल’ शरीर का प्राथमिक तनाव हार्मोन होता है।

इस निष्कर्ष से पता चलता है कि लम्बे समय तक पानी की कमी तनाव की प्रतिक्रिया को उस तरह बढ़ा सकती है, जिसे हम अभी समझना शुरू ही कर रहे हैं। हमने स्वस्थ युवा वयस्कों को उनके सामान्य तरल सेवन के आधार पर दो समूहों में विभाजित करके उनका परीक्षण किया। एक समूह प्रतिदिन 1.5 लीटर से भी कम पानी पीता था।

जबकि दूसरे समूह ने महिलाओं के लिए लगभग दो लीटर और पुरुषों के लिए 2.5 लीटर की मानक अनुशंसाओं को पार कर लिया। एक सप्ताह तक इन पैटर्न को बनाए रखने के बाद, प्रतिभागियों को सार्वजनिक भाषण और मानसिक अंकगणित से संबंधित एक ‘प्रयोगशाला तनाव परीक्षण’ का सामना करना पड़ा। दोनों समूहों में घबराहट समान रूप से देखी गई और हृदय गति में भी समान वृद्धि देखी गई।

लेकिन कम द्रव वाले समूह में कोर्टिसोल का स्तर कहीं अधिक स्पष्ट रूप से बढ़ा – एक ऐसी प्रतिक्रिया जो महीनों या वर्षों तक रोजाना दोहराई जाए तो समस्याजनक साबित हो सकती है। कोर्टिसोल के लगातार बढ़ने से हृदय रोग, गुर्दे की समस्या और मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। हैरानी की बात यह है कि कम पानी पीने वाले प्रतिभागियों ने अपने ज़्यादा पानी पीने वाले समकक्षों की तुलना में ज़्यादा प्यास महसूस करने की बात नहीं कही। हालांकि, उनके शरीर ने कुछ और ही कहानी बयां की।

गहरे रंग के, अधिक गाढ़े पेशाब ने उनके निर्जलीकरण का संकेत दिया, जिससे यह साबित हुआ कि प्यास हमेशा तरल पदार्थ की जरूरत का विश्वसनीय संकेतक नहीं होती। इस तनाव वृद्धि के पीछे शरीर की परिष्कृत जल प्रबंधन प्रणाली का तंत्र काम करता है। जब निर्जलीकरण का पता चलता है, तो मस्तिष्क वैसोप्रेसिन नामक एक हार्मोन छोड़ता है, जो गुर्दों को पानी बचाने और रक्त की मात्रा बनाए रखने का निर्देश देता है, लेकिन वैसोप्रेसिन अकेले काम नहीं करता; यह मस्तिष्क की तनाव-प्रतिक्रिया प्रणाली को भी प्रभावित करता है, जिससे मुश्किल समय में कोर्टिसोल का स्राव बढ़ सकता है।

इससे शारीरिक रूप से दोहरा बोझ पड़ता है। हालाँकि वैसोप्रेसिन कीमती पानी को संरक्षित करने में मदद करता है, लेकिन साथ ही यह शरीर को तनाव के प्रति ज़्यादा प्रतिक्रियाशील बनाता है। रोजमर्रा के दबावों- काम की समय-सीमा, पारिवारिक ज़िम्मेदारियों, आर्थिक चिंताओं- से जूझ रहे व्यक्ति के लिए यह बढ़ी हुई प्रतिक्रियाशीलता समय के साथ गंभीर स्वास्थ्य नुकसान का कारण बन सकती है।

हालांकि, हमारा अध्ययन यह नहीं बताता कि पानी पीना तनाव का एकमात्र उपाय है। इस अध्ययन में स्वस्थ युवा वयस्कों को नियंत्रित प्रयोगशाला परिस्थितियों में शामिल किया गया था, जो लोगों द्वारा रोजमर्रा की जिदगी में झेले जाने वाले जटिल मनोवैज्ञानिक और सामाजिक तनावों को पूरी तरह से दोहरा नहीं सकतीं।

केवल अधिक पानी पीने से वास्तविक दुनिया के तनाव के सभी पहलुओं का समाधान नहीं हो सकता। हमें यह पुष्टि करने के लिए दीर्घकालिक अध्ययन की आवश्यकता है कि क्या लंबे समय तक उचित जल का सेवन वास्तव में तनाव से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को कम करता है। 

टॅग्स :Water Resources DepartmentHealth and Family Welfare Department
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