आपको बता दें कि आम चुनाव अभी कुछ दूर हैं, पर नौ राज्यों में चुनाव बहुत दूर नहीं हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों का मुकाबला भाजपा कैसे करेगी।
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एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष का लोकतंत्र के एक स्तंभ पर खुल्लमखुल्ला आरोप लगाना कितना शालीन है? उनसे यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि एक पूर्व मुख्यमंत्री को इस मामले में राज्य के मुख्यमंत्री या गृह मंत्री के पास क्यों नहीं जाना चाह
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पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद तीन मूर्ति भवन लालबहादुर शास्त्री को आवंटित हुआ। लेकिन उन्होंने वहां शिफ्ट करने से मना कर दिया था। शास्त्रीजी तीन मूर्ति भवन में मोटे तौर पर दो कारणों के चलते जाने के लिए तैयार नहीं थे।
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द्रमुक के जब दो धड़े हुए और एम.जी. रामचंद्रन के नेतृत्व में अन्ना द्रमुक अस्तित्व में आई तब द्रविड़ राजनीति का वह धड़ा हिंदू धर्म की परंपराओं तथा आस्थाओं में विश्वास को खुलेआम जताने लगा.
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सबसे पहले तो हम चुनाव-प्रणाली ही बंद कर दें। इसकी जगह हर पार्टी को उसकी सदस्य-संख्या के अनुपात में सांसद और विधायक भेजने का अधिकार मिले। इसके कई फायदे होंगे। चुनाव खर्च बंद होगा। भ्रष्टाचार मिटेगा। करोड़ों लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाएंगे।
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टीटीपी अफगानिस्तान में प्राप्त प्रश्रय एवं सहयोग के कारण पाकिस्तान में जाकर हमले करता है और वापस आ जाता है। टीटीपी पाकिस्तान के संघ शासित जनजातीय क्षेत्र पर प्रभुत्व कायम कर चुका है और स्वात घाटी कभी भी उसके नियंत्रण में आ सकती है।
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हिंदी को विश्व भर में लोकप्रिय बनाने और उसे संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किए जाने की दिशा में प्रयास जारी हैं। इस संबंध में भारत की संसद में पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का एक वक्तव्य अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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Joshimath Landslide: पीएमओ ने भी जोशीमठ की स्थिति की समीक्षा की और बताया गया कि केंद्र सरकार की एजेंसियां और विशेषज्ञ जोशीमठ में स्थिति से निपटने के लिए लघु, मध्यम व दीर्घकालीन अवधि की योजनाएं तैयार करने में उत्तराखंड सरकार की मदद कर रहे हैं.
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ऐसे में भाजपा जहां एक तरफ गांधी को अपनाती है, लेकिन जब महात्मा की हत्या के लिए गोडसे की प्रशंसा की जाती है तो वह चुप रहना ही पसंद करती है। यही नहीं पार्टी अपने राजनीतिक लाभ के लिए कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा का भी मुद्दा उठाती रहती है।
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नीतीश कुमार यदि बिहार के गरीब परिवारों की मदद के लिए यह जनगणना शुरू करवाई है तो वे सिर्फ गरीबों की जनगणना करवाते। उसमें जाति और मजहब का ख्याल बिल्कुल नहीं किया जाता लेकिन नेता लोग जाति और धर्म का डंका जब पीटने लगें तो यह निश्चित है कि वे थोक वोटों का
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