Joshimath Landslide: जोशीमठ भू-धंसाव से प्रकृति की चेतावनी को समझें, साल 2013 में ही चिंता जताई गई थी, जानिए
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 9, 2023 05:18 PM2023-01-09T17:18:23+5:302023-01-09T17:19:16+5:30
Joshimath Landslide: पीएमओ ने भी जोशीमठ की स्थिति की समीक्षा की और बताया गया कि केंद्र सरकार की एजेंसियां और विशेषज्ञ जोशीमठ में स्थिति से निपटने के लिए लघु, मध्यम व दीर्घकालीन अवधि की योजनाएं तैयार करने में उत्तराखंड सरकार की मदद कर रहे हैं.
Joshimath Landslide: उत्तराखंड के जोशीमठ में जिस अनहोनी की आशंका पिछले कई सालों से जताई जा रही थी, वह अब साकार होती दिखाई दे रही है. वहां भू-धंसाव इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि आज रविवार को आखिरकार जोशीमठ को भूस्खलन और धंसाव क्षेत्र घोषित करना पड़ा.
पीएमओ ने भी जोशीमठ की स्थिति की समीक्षा की और बताया गया कि केंद्र सरकार की एजेंसियां और विशेषज्ञ जोशीमठ में स्थिति से निपटने के लिए लघु, मध्यम व दीर्घकालीन अवधि की योजनाएं तैयार करने में उत्तराखंड सरकार की मदद कर रहे हैं. हकीकत यह है कि जोशीमठ में भू-धंसाव अचानक नहीं शुरू हुआ है.
साल 2013 में ही चिंता जताई गई थी कि हाइड्रोपावर परियोजना से जुड़ी सुरंगें उत्तराखंड में तबाही ला सकती हैं लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया. विरोध प्रदर्शनों के चलते उस समय फौरी तौर पर परियोजना का काम रोक दिया गया था, लेकिन उसके बाद इसे फिर शुरू कर दिया गया था.
स्थानीय लोग इस भू-धंसाव के लिए राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) की तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. दरअसल तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना की सुरंग जोशीमठ के ठीक नीचे स्थित है. इसके निर्माण के लिए बड़ी बोरिंग मशीनें लगाई गई थीं, जो पिछले दो दशक से इलाके में खुदाई कर रही हैं.
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की अगस्त 2021 में आई एक रिपोर्ट में भी जोशीमठ के धंसने की आशंका जताई गई थी. नवंबर 2021 में ही जमीन धंसने की वजह से 14 परिवारों के घर रहने के लिए असुरक्षित हो गए थे, जिसके बाद लोगों ने 16 नवंबर 2021 को तहसील कार्यालय पर धरना देकर पुनर्वास की मांग की थी.
यहां तक कि एसडीएम ने खुद स्वीकार किया था कि तहसील कार्यालय परिसर में भी दरारें पड़ गई हैं. साफ है कि इसके बावजूद अगर काम जारी रखा गया तो यह बेहद गंभीर लापरवाही ही थी. भूविशेषज्ञ बहुत पहले से कहते रहे हैं कि जोशीमठ का पर्वत मलबे की मिट्टी पर बसा हुआ है और यहां किसी भी तरह का बड़ा निर्माण कार्य करना खतरे से खाली नहीं है.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि इसके बावजूद सुरंग के निर्माण के लिए रोजाना कई टन विस्फोटकों का इस्तेमाल हो रहा था. इसी का नतीजा है कि अब करीब 25 हजार की आबादी वाले जोशीमठ शहर के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. भू-धंसाव बढ़ने पर इन निवासियों का तो कहीं और पुनर्वास कर दिया जाएगा लेकिन इस ऐतिहासिक और पौराणिक सांस्कृतिक नगर का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है.
मानवीय लापरवाही के चलते इसके तबाह होने पर पहुंचने वाली क्षति की क्या कल्पना भी की जा सकती है? विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यावरण को इतना ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा चुका है कि अब उसकी भरपाई की ही नहीं जा सकती.
विडंबना यह है कि इसके बावजूद प्रकृति के साथ खिलवाड़ जारी है. जोशीमठ का भू-धंसाव एक बहुत बड़ी चेतावनी है कि अगर हम अभी भी नहीं संभले तो निकट भविष्य में ही हमें अकल्पनीय आपदा के लिए तैयार रहना होगा.