देश में ‘रेफरेन्डम’ और ‘रिकाल’ की व्यवस्था हो लागू, लोकतंत्र बनेगा अधिक प्रभावी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 10, 2023 03:58 PM2023-01-10T15:58:49+5:302023-01-10T15:58:49+5:30
सबसे पहले तो हम चुनाव-प्रणाली ही बंद कर दें। इसकी जगह हर पार्टी को उसकी सदस्य-संख्या के अनुपात में सांसद और विधायक भेजने का अधिकार मिले। इसके कई फायदे होंगे। चुनाव खर्च बंद होगा। भ्रष्टाचार मिटेगा। करोड़ों लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाएंगे।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। कई देशों में लोकतंत्र खत्म हुआ और तानाशाही आ गई लेकिन भारत का लोकतंत्र जस का तस बना हुआ है लेकिन क्या इस तथ्य से हमें संतुष्ट होकर बैठ जाना चाहिए? नहीं, बिल्कुल नहीं।
भारतीय लोकतंत्र ब्रिटिश लोकतंत्र की तर्ज पर गढ़ा गया है। लंदन का राजा तो नाममात्र का होता है लेकिन भारत में पार्टी-नेता सर्वेसर्वा बन जाते हैं। पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र लगभग शून्य हो गया है। चुनावों के द्वारा जो सरकारें बनती हैं, वे बहुमत का प्रतिनिधित्व क्या करेंगी, उन्हें कुल मतदाताओं के 20 से 30 प्रतिशत वोट भी नहीं मिलते और वे सरकारें बना लेती हैं। तब क्या करें?
सबसे पहले तो हम चुनाव-प्रणाली ही बंद कर दें। इसकी जगह हर पार्टी को उसकी सदस्य-संख्या के अनुपात में सांसद और विधायक भेजने का अधिकार मिले। इसके कई फायदे होंगे। चुनाव खर्च बंद होगा। भ्रष्टाचार मिटेगा। करोड़ों लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाएंगे।
अभी पार्टियों की सदस्य संख्या 15-16 करोड़ के आसपास है। फिर वह 60-70 करोड़ तक हो सकती है। इस नई प्रणाली का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जो भी सरकार बनेगी, उसमें सभी दलों को प्रतिनिधित्व मिल जाएगा।
वह सरकार राष्ट्रीय सरकार होगी, दलीय नहीं, जैसी कि आजादी के तुरंत बाद बनी थी। इस क्रांतिकारी प्रणाली की कई कमियों को कैसे दूर किया जा सकेगा, यह भी विचारणीय है। जब तक यह नई प्रणाली शुरू नहीं होती है, हमारी वर्तमान प्रणाली में भी कई सुधार किए जा सकते हैं।
सबसे पहला सुधार तो यही है कि जब तक किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिलें, उसे चुना नहीं जाए। इसी प्रकार चुने हुए सांसदों की सरकार सचमुच बहुमत की सरकार होगी। देश में ‘रेफरेन्डम’ और ‘रिकाल’ की व्यवस्था भी लागू की जानी चाहिए।