वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बिहार में जाति जनगणना उचित नहीं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 9, 2023 02:00 PM2023-01-09T14:00:32+5:302023-01-09T14:01:18+5:30
नीतीश कुमार यदि बिहार के गरीब परिवारों की मदद के लिए यह जनगणना शुरू करवाई है तो वे सिर्फ गरीबों की जनगणना करवाते। उसमें जाति और मजहब का ख्याल बिल्कुल नहीं किया जाता लेकिन नेता लोग जाति और धर्म का डंका जब पीटने लगें तो यह निश्चित है कि वे थोक वोटों का ढोल बजाने लगते हैं।
सन 1857 के स्वातंत्र्य-संग्राम से घबराए अंग्रेजों ने भारत की एकता को भंग करने के लिए दो बड़े षड्यंत्र किए थे। एक तो उन्होंने जातीय जनगणना का जाल फैलाया और दूसरा, हिंदू-मुसलमान का भेद फैलाया। कांग्रेस और गांधीजी के भयंकर विरोध के कारण 1931 में यह जातीय-जनगणना तो बंद हो गई लेकिन हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता ने 1947 में देश के दो टुकड़े कर दिए।
पिछली मनमोहन सिंह सरकार ने जातीय-जनगणना फिर शुरू की थी लेकिन उसके विरुद्ध मैंने ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ आंदोलन शुरू किया तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उस जनगणना को बीच में ही रुकवा दिया। 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने उन अधूरे आंकड़ों को प्रकाशित करवाने पर रोक लगा दी थी लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में उस जनगणना को फिर से शुरू करवा दिया है।
वैसे नीतीश कुमार के बारे में मेरी व्यक्तिगत राय काफी अच्छी है लेकिन यह भी सत्य है कि वे जरूरत से ज्यादा व्यावहारिक हैं। उन्होंने यदि बिहार के गरीब परिवारों की मदद के लिए यह जनगणना शुरू करवाई है तो वे सिर्फ गरीबों की जनगणना करवाते। उसमें जाति और मजहब का ख्याल बिल्कुल नहीं किया जाता लेकिन नेता लोग जाति और धर्म का डंका जब पीटने लगें तो यह निश्चित है कि वे थोक वोटों का ढोल बजाने लगते हैं।
इन साधनों का सहारा लेने की बजाय नीतीश जैसे साहसी नेता को चाहिए था, जैसे कि उन्होंने बिहार में शराबबंदी का साहसिक कदम उठाया है, वैसा वे कोई जाति-तोड़ो आंदोलन खड़ा कर देते। इस जनगणना में 500 करोड़ रुपए खर्च होंगे और साढ़े पांच लाख लोग मिलकर इसे पूरा करवाएंगे। गरीब तो गरीब होता है। उसकी गरीबी ही उसकी जाति है। आप उसकी गरीबी दूर करेंगे तो उसकी जाति अपने आप मिट जाएगी।