ब्लॉगः नागपुर से न्यूयाॅर्क तक हिंदी की हुंकार

By प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल | Published: January 10, 2023 10:41 AM2023-01-10T10:41:04+5:302023-01-10T10:48:28+5:30

हिंदी को विश्व भर में लोकप्रिय बनाने और उसे संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किए जाने की दिशा में प्रयास जारी हैं। इस संबंध में भारत की संसद में पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का एक वक्तव्य अत्यंत महत्वपूर्ण है।

Blog Hindi roar from Nagpur to New York | ब्लॉगः नागपुर से न्यूयाॅर्क तक हिंदी की हुंकार

ब्लॉगः नागपुर से न्यूयाॅर्क तक हिंदी की हुंकार

10 जनवरी को पूरे विश्व में विश्व हिंदी दिवस मनाए जाने की परंपरा का संतरानगरी से एक विशिष्ट संबंध है। नागपुर में वर्ष 1975 में 10 से 14 जनवरी तक पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमें 30 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था और सम्मेलन के मुख्य अतिथि के रूप में मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम उपस्थित थे। इस वर्ष का विश्व हिंदी दिवस इस मायने में खास है कि 15-17 फरवरी 2023 को फिजी में 12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।

जहां तक विश्व भाषा के रूप में हिंदी की बात है तो 10 जून, 2022 हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के लिए एक ऐतिहासिक दिन साबित हुआ। इस दिन न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित बहुभाषावाद संबंधी एक प्रस्ताव में पहली बार हिंदी भाषा का उल्लेख हुआ। प्रस्ताव में बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं के अतिरिक्त हिंदी, बांग्ला, उर्दू, पुर्तगाली, स्वाहिली और फारसी को संयुक्त राष्ट्र की सहकारी कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। यह संयुक्त राष्ट्र के कामकाज के तरीके में एक बड़े परिवर्तन का संकेत है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी जरूरी कामकाज और सूचनाओं को इसकी आधिकारिक भाषाओं के अलावा दूसरी भाषाओं जैसे- हिंदी, बांग्ला और उर्दू में भी जारी किया जाए। संयुक्त राष्ट्र महासभा की छह आधिकारिक भाषाएं हैं। इनमें अरबी, चीनी (मंदारिन), अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल हैं, किंतु संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के कामकाज की दो ही भाषाएं हैं- अंग्रेजी और फ्रेंच। 

बहुभाषावाद को संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी मूल्यों में गिना जाता है। इस संदर्भ में एक फरवरी, 1946 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले सत्र में अपनाए गए सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 13(1) का जिक्र करना आवश्यक है। इसमें कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि दुनिया के लोगों को इसके उद्देश्यों और गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी न हो। भारत इस उद्देश्य को प्राप्त करने में संयुक्त राष्ट्र के साथ खड़ा है। वर्ष 2018 से ही भारत संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग के साथ साझीदारी कर रहा है, जिसका लक्ष्य हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र की पहुंच को बढ़ाना और दुनिया भर में हिंदी बोलने वाले लोगों को जोड़ना है। संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट और इसके इंटरनेट मीडिया खातों के माध्यम से हिंदी में संयुक्त राष्ट्र के समाचार पहले से ही प्रसारित किए जा रहे हैं। जहां तक भारतीय भाषाओं का प्रश्न है तो हिंदी, बांग्ला और उर्दू बोलने वालों का कुल योग किया जाए तो हम मंदारिन बोलने वालों से अधिक हैं। इन भाषाओं को स्वीकार करने से संयुक्त राष्ट्र की पहुंच इन्हें बोलने वाली एक अरब की आबादी तक सीधे बन गई है, लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि केवल संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा होने से भारतीय भाषाओं का प्रश्न हल नहीं होता है। जहां तक हिंदी की स्वीकृति का प्रश्न है तो संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबुधाबी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अरबी और अंग्रेजी के बाद हिंदी को अपनी अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल कर लिया है। हिंदी को अदालत की तीसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा मिलना दुनिया भर में हिंदी को मिल रहे सम्मान की एक और मिसाल है। हिंदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। प्रशांत महासागर के द्वीप देश फिजी में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। नेपाल, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम जैसे देशों में भी हिंदी प्रमुखता से बोली जाती है।

हिंदी को विश्व भर में लोकप्रिय बनाने और उसे संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किए जाने की दिशा में प्रयास जारी हैं। इस संबंध में भारत की संसद में पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का एक वक्तव्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। सुषमा स्वराज ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को एक आधिकारिक भाषा बनाने में सबसे बड़ी समस्या संयुक्त राष्ट्र के नियम हैं। संयुक्त राष्ट्र के नियम के अनुसार संगठन के 193 सदस्य देशों के दो तिहाई सदस्यों यानी 129 देशों को हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के पक्ष में वोट करना होगा और इसकी प्रक्रिया के लिए वित्तीय लागत भी साझा करनी होगी। इस वजह से हिंदी को समर्थन करने वाले आर्थिक रूप से कमजोर देश इस प्रक्रिया से दूर भागते हैं। भारत सरकार इस संबंध में फिजी, माॅरीशस, सूरीनाम जैसे देशों से समर्थन लेने की कोशिश कर रही है जहां बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। जब भारत को इस तरह का समर्थन मिलेगा और समर्थन करने वाले देश वित्तीय बोझ को भी सहने के लिए तैयार हो जाएंगे, तब हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बन जाएगी। इन सभी विसंगतियों के बीच 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने वैश्विक स्तर पर हिंदी को पहचान दिलाई है। कई अवसरों पर भारतीय नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपने वक्तव्य दिए हैं। विश्व मंच पर भारत जितना मजबूत होगा भारत की भाषाएं भी उतनी ही मुखरता से वैश्विक कार्यव्यवहार, व्यापार और राजनय की भाषा के रूप में उभरकर आएंगी।  

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