2013 में एक अध्यादेश में 90 दिनों की अवधि प्रदान करने की मांग की गई थी, जिसके भीतर सजायाफ्ता सांसद या विधायक संसद या विधानसभा में अपनी सदस्यता की रक्षा के लिए दोषसिद्धि पर स्थगनादेश पा सकें। अध्यादेश कानून नहीं बन पाया और इसके परिणामस्वरूप, सांसदों य
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फेसबुक, यूट्यूब, टि्वटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया मंच व्यापार से लेकर प्रचार तक और सूचना से अफवाह फैलाने में उपयोगी साबित हो रहे हैं। सहज-सरल उपयोग और उपलब्धता के चलते किसी भी स्तर तक इनकी पहुंच आसान है।
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हमारा जीवन आज के दौर में पूरी तरह से उर्जा पर निर्भर हो गया है। एक शोध के अनुसार दुनियाभर में पारंपरिक तेल भंडार 50 और प्राकृतिक गैस भंडार 70 वर्षों के आसपास ही बचे हैं। ऐसे में सवाल है कि हम भविष्य के लिए कितने तैयार है और क्या आने वाली चुनौतियों के
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आजकल अनेक बच्चे स्मार्ट फोन के आदी हो गए हैं. कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा के बहाने ये विद्यार्थियों की मुट्ठी में आ गए. फिर क्या था, जो खेल भारत की समृद्ध संस्कृति, शारीरिक स्वास्थ्य और जीवन के विकास की अभिप्रेरणा थे, वे देखते-देखते भ्रम, ठगी, लालच
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राहुल गांधी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक चुनावी सभा में की गई उनकी टिप्पणी जी का जंजाल बन जाएगी. सजा हो जाएगी और लोकसभा की सदस्यता चली जाएगी! इसलिए बहुत जरूरी है कि हम भाषा को लेकर संयमित रहें. लोकतंत्र में आलोचना जरूर है लेकिन उतना ही जरूरी है बोल
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यह इस बात का प्रमाण है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद की बदली परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर की ओर भी विदेशी निवेश जा रहा है। अगर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की बात मानी जाए तो नई औद्योगिक नीति आने के 22 महीनों में 5000 से अधिक देसी व विदेशी कंपनियों के
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सड़क दुर्घटनाओं को रोकने की खातिर वरदान बन हरेक वाहन में ऐसी सेंसर प्रणाली विकसित हो सकेगी जो खुद-ब-खुद सामने वाली गाड़ी की स्थिति, संभावित चूक या गड़बड़ी को रीड कर स्वतः नियंत्रित हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस पर भारत में भी काम चालू है।
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जूदा अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम के बीच इस बार का भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन द्विपक्षीय सहयोग को गति देने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय के साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर समझबूझ बढ़ रही है।
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रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 40 वर्षों में विश्व स्तर पर पानी का इस्तेमाल लगभग एक प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है और जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक विकास तथा बदलते खपत पैटर्न के कारण इसके 2050 तक इसी दर से बढ़ने की संभावना है.
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