कपिल सिब्बल का ब्लॉगः सांसदों, विधायकों के लिए कानून में बचाव जरूरी
By कपील सिब्बल | Updated: March 28, 2023 10:15 IST2023-03-28T10:12:17+5:302023-03-28T10:15:31+5:30
2013 में एक अध्यादेश में 90 दिनों की अवधि प्रदान करने की मांग की गई थी, जिसके भीतर सजायाफ्ता सांसद या विधायक संसद या विधानसभा में अपनी सदस्यता की रक्षा के लिए दोषसिद्धि पर स्थगनादेश पा सकें। अध्यादेश कानून नहीं बन पाया और इसके परिणामस्वरूप, सांसदों या विधायकों को तुच्छ मामलों के आधार पर दोषी ठहराए जाने के लिए कोई सुरक्षा उपाय नहीं हैं।

कपिल सिब्बल का ब्लॉगः सांसदों, विधायकों के लिए कानून में बचाव जरूरी
कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी के भाषण के कारण गुजरात के सूरत में एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने उन्हें दोषी ठहराया। आपराधिक मानहानि के मामले में उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई है। वह प्रक्रिया जिसने उन्हें दोषसिद्धि तक पहुंचाया और स्वयं दोषसिद्धि ने उन मुद्दों को उठाया है जिन्हें कानून और राजनीति दोनों के दृष्टिकोण से संबोधित करने की आवश्यकता है।
इनमें से किसी भी मुद्दे पर विचार करने से पहले, आइए यह समझें कि राहुल गांधी ने 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक में एक रैली को संबोधित करते हुए क्या कहा था : ‘‘मेरा एक सवाल है। इन सभी चोरों के नाम में मोदी मोदी मोदी क्यों हैं? नीरव मोदी, ललित मोदी।।। और हम थोड़ा और सर्च करें तो ऐसे कई और मोदी सामने आएंगे।’’
उन्होंने जो कहा, उसके लिए गुजरात के एक पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने 16 अप्रैल, 2019 को उन पर आपराधिक मानहानि का मुकदमा चलाने का फैसला किया। लेकिन इस बयान को पूरे ‘मोदी समुदाय’ के अपमान के रूप में नहीं माना जा सकता है। राहुल गांधी ने केवल इतना पूछा कि उन सभी कथित ‘चोरों’ के नाम के साथ ‘मोदी’ क्यों जुड़ा हुआ है। नीरव मोदी और ललित मोदी सरकार के रडार पर हैं। दोनों ने भारत वापस नहीं आने का फैसला किया है। राहुल गांधी ने यह नहीं कहा कि हर मोदी चोर होता है। उन्होंने केवल इतना पूछा कि ‘इन चोरों’ के नाम के साथ ‘मोदी’ क्यों जुड़ा हुआ है। इस आधार पर कोई भी सजा कि राहुल गांधी ने पूरे ‘मोदी समुदाय’ को बदनाम किया है, संदेहास्पद है। इसके अलावा, ऐसा कोई पहचान योग्य ‘मोदी समुदाय’ नहीं है जो राहुल गांधी की बातों से नाराज हो।
राहुल गांधी 24 जून 2021 को सूरत में सीजेएम की अदालत में पहली बार व्यक्तिगत रूप से अपना बयान दर्ज कराने के लिए पेश हुए थे। मार्च 2022 में शिकायतकर्ता ने अनुरोध किया कि राहुल गांधी को फिर से तलब किया जाए। अदालत ने अनुरोध को खारिज करते हुए जोर देकर कहा कि शिकायतकर्ता मामले के गुण-दोष के आधार पर अदालत में अपना पक्ष रखे। दिलचस्प बात यह है कि शिकायतकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया और मुकदमे पर सुनवाई रुक गई।
करीब एक साल तक मुकदमा रुका रहा। बाद में शिकायतकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका वापस ले ली। इसके तुरंत बाद, 27 फरवरी, 2023 को ट्रायल फिर से शुरू हुआ; इस बार एक और सीजेएम एच।एच। वर्मा के सामने। बीच में, राहुल गांधी एक विशेष व्यवसायी को निशाना बना रहे थे, जो एक व्यवसायी के रूप में अपने अभूतपूर्व उत्थान के लिए विवाद का विषय बन गया है, और उनकी कंपनियों ने जो धन अर्जित किया है, वह कथित तौर पर प्रधानमंत्री से उनकी निकटता के कारण है। 8 मार्च 2023 को, राहुल गांधी के वकील ने पूर्णेश मोदी के अभियोग को चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि राहुल गांधी के आपत्तिजनक भाषण ने व्यक्तियों को लक्षित किया न कि तथाकथित ‘मोदी समुदाय’ को। उच्च न्यायालय में कार्यवाही की त्वरित वापसी, मुकदमे की बहाली, कार्यवाही का समय और मामले की अचानक सुनवाई सवाल उठाती है, जिसका समय आने पर शायद जवाब मिल सके।
राहुल गांधी गुजरात में नहीं रहते हैं। इसलिए आपराधिक मानहानि, अगर होती भी है तो कर्नाटक में दायर की जानी चाहिए। पूर्णेश मोदी ने सूरत को शायद इस उम्मीद से चुना था कि वे सीजेएम को राहुल गांधी को दोषी ठहराने के लिए राजी कर सकेंगे। उन मामलों में जहां व्यक्ति अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहते हैं, एक प्रक्रिया का पालन किया जाता है जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा समन जारी करने से पहले या सीजेएम द्वारा जांच का निर्देश देने के पहले जांच करने की आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं किया गया। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने खुद उत्पीड़न के तरीके के रूप में आपराधिक मानहानि का सहारा लेने पर अपनी नाराजगी जताई है।
मूल मुद्दा यह है कि क्या ऐसा कानून, जिसके फलस्वरूप संसद सदस्य की अयोग्यता साबित होती है, को वर्तमान सदस्य को सुरक्षा उपाय प्रदान करने के लिए संशोधित करने की आवश्यकता है। चुनावी प्रक्रियाओं के दौरान उम्मीदवारों द्वारा किए गए भ्रष्ट आचरण के संदर्भ में भी, कानून उम्मीदवार को अपील दायर करने की अनुमति देता है लेकिन अपील का निर्णय आने से पहले अयोग्य नहीं ठहराता है। किसी सांसद या विधायक को यदि वह हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है, जिसमें उसे आजीवन कारावास की सजा हो सकती है, या ऐसे अन्य अपराध जो गंभीर प्रकृति के हैं, जिनके लिए सात साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है, उसको सदस्यता से वंचित करने के बारे में समझा जा सकता है। वहां भी, कानून को दोषी उम्मीदवार को एक निश्चित अवधि के लिए दोषसिद्धि पर रोक लगाने का अवसर देना चाहिए, जिसके दौरान सदन की उसकी सदस्यता अयोग्य न साबित हो।
2013 में एक अध्यादेश में 90 दिनों की अवधि प्रदान करने की मांग की गई थी, जिसके भीतर सजायाफ्ता सांसद या विधायक संसद या विधानसभा में अपनी सदस्यता की रक्षा के लिए दोषसिद्धि पर स्थगनादेश पा सकें। अध्यादेश कानून नहीं बन पाया और इसके परिणामस्वरूप, सांसदों या विधायकों को तुच्छ मामलों के आधार पर दोषी ठहराए जाने के लिए कोई सुरक्षा उपाय नहीं हैं।
राहुल गांधी के मामले में मजिस्ट्रेट को पता था कि दो साल से कम की कोई भी सजा उनकी लोकसभा की सदस्यता को बचा सकती है। कानून में संशोधन की जरूरत है। राहुल गांधी के मामले जैसे मामलों में एक तुच्छ दोषसिद्धि के लिए एक सांसद या विधायक की रक्षा नहीं करना घोर अन्याय है। 2014 के बाद से आज तक कानूनों का इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए और राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए किया जा रहा है। यह केवल राहुल गांधी के संदर्भ में ही चिंता का विषय नहीं है। लोकतंत्र को कई तरह से विकृत किया जा सकता है। चुनी हुई सरकारों को उखाड़ फेंकना एक ऐसा ही तरीका है। न्यायिक प्रक्रियाओं का उपयोग करना दूसरा तरीका है।