ब्लॉग: अपना बिजनेस मॉडल बनाने की कोशिश में जुटा सोशल मीडिया!
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 27, 2023 04:24 PM2023-03-27T16:24:27+5:302023-03-27T16:38:36+5:30
फेसबुक, यूट्यूब, टि्वटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया मंच व्यापार से लेकर प्रचार तक और सूचना से अफवाह फैलाने में उपयोगी साबित हो रहे हैं। सहज-सरल उपयोग और उपलब्धता के चलते किसी भी स्तर तक इनकी पहुंच आसान है।
स्वामित्व में परिवर्तन होने के बाद से माइक्रोब्लॉगिंग साइट ‘टि्वटर’ में लगातार नफा-नुकसान की चर्चाओं का दौर चल रहा है. साइट की कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एलन मस्क अधिग्रहण के बाद से ही आर्थिक पहलुओं पर विशेष ध्यान दे रहे हैं. बस जरूरत ऐसे फार्मूले की थी, जो उसके उपभोक्ताओं को स्वीकार हो और कंपनी की माली हालत भी सुधार सके.
आज के दौर में क्या है सोशल मीडिया का रोल
दरअसल दो हजार के दशक के अंत तक विश्व पर प्रभाव जमाने में सफलता हासिल करने वाले सोशल मीडिया ने सीधे तौर पर कभी आर्थिक पक्ष की ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जिस तरह कारोबार बढ़ा और कोरोना संकट ने उसे कमाई का साधन बना दिया, तब से हर कोई लाभ-हानि की नजर से देख रहा है. फेसबुक, यूट्यूब, टि्वटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया मंच व्यापार से लेकर प्रचार तक और सूचना से अफवाह फैलाने में उपयोगी साबित हो रहे हैं. सहज-सरल उपयोग और उपलब्धता के चलते किसी भी स्तर तक इनकी पहुंच आसान है.
सस्ता इंटरनेट और भाषा के बंधन से परे होना इनकी विशेषता है. इसलिए इनके उपयोगकर्ता बेहिसाब बढ़े हैं और अनेक बार निरंकुश व्यवहार करते हैं. ऐसे में समाज में वैमनस्य बढ़ना, अपराध के रास्ते मिलना सहज हो चला है. यदि वर्तमान बातों को सोशल मीडिया के आरंभ से जुड़े उद्देश्यों के सापेक्ष देखा जाए तो बड़ा विरोधाभास नजर आता है. हालांकि अनेक समस्याओं के बाद कुछ-कुछ बातों पर नियंत्रण पाया गया है, मगर एक रास्ता बंद होने के बाद अनेक रास्ते खुले भी हैं.
सोशल मीडिया के जरिए भी कमाई की के खोजे जा रहे है रास्ते
इसी के बीच कमाई के साधन के रूप में एक नई सोच सामने आ रही है. कोई छिप कर पैसा लेना चाहता है और कोई खुलेआम अपने दामों की सूची लटकाने पर जुटा हुआ है. यह सही है कि किसी भी व्यवस्था को चलाने के लिए आर्थिक आधार की आवश्यकता होती है, किंतु उसमें व्यावसायिकता लाना कुछ हद तक सोशल मीडिया की मूल अवधारणा के विपरीत है.
संभव है कि उस उन्मुक्त वातावरण को पैसे से जोड़कर एक बड़े वर्ग के लिए मंच तैयार कर दिया जाए, लेकिन जिस जगह सीमाओं से आगे काम आरंभ होता हो, वहां नई व्यवस्था कितनी दूर तक चल पाएगी. जहां विश्वास को लेकर अभी-भी संकट हो, वहां बिकी हुई व्यवस्था कितने समय तक विश्वास बनाए रख पाएगी.
उपभोक्ताओं की सीमाएं सोशल मीडिया ने बांध रखी है
वर्तमान समय में भी अनेक सोशल मीडिया के मंचों ने अपने उपभोक्ताओं की सीमाएं बांधी हुई हैं. उनके आगे उन्हें आर्थिक ताकत के अनुसार बढ़ने का मौका दिया जाता है. यानी परदे के पीछे कहीं न कहीं आमदनी का जरिया बनाए रखा जाता है. इससे आगे जब बिजनेस मॉडल बनाने की दिशा में कदम बढ़ने लगे हैं, तो यह चिंताजनक स्थिति है.
यह निजी अभिव्यक्ति का व्यवसाय करने की स्थिति है. इससे नई चुनौतियां सामने आएंगी. विज्ञापनों की तरह विचार रखने की अधिकृत सदस्यता मिल जाएगी और सोशल मीडिया के स्वरूप को आघात पहुंचेगा. संभव है कि टि्वटर की तरह बाकी सोशल मीडिया मंच खुद को बड़ी कमाई का साधन बनाएं, लेकिन उन्हें स्वतंत्र अभिव्यक्ति की अपनी पहचान से हाथ धोना पड़ेगा.
कमाई की राय में और भी सोशल मीडिया बना सकती है साधन
बीते अनेक वर्षों में विश्व की बड़ी जनता ने उन्हें अपनी अभिव्यक्ति का नि:शुल्क और स्वतंत्र माध्यम माना था, उसे अब वे व्यावसायिक जरूरत के रूप में दिखाई देंगे. यह बात छिपी नहीं है कि सोशल मीडिया मंचों को अनेक प्रकार से आर्थिक सहायता मिल रही है. यदि उन पर ही ध्यान दिया गया तो कम से कम उसके उद्देश्यों पर तो कोई संकट नहीं आएगा. विश्व अपनी बात रखने के लिए कहीं तो खुला आसमान पाएगा.