ब्लॉग: स्वच्छ पेयजल को लेकर खतरे की आहट को समझें
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 24, 2023 03:50 PM2023-03-24T15:50:40+5:302023-03-24T15:54:16+5:30
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 40 वर्षों में विश्व स्तर पर पानी का इस्तेमाल लगभग एक प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है और जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक विकास तथा बदलते खपत पैटर्न के कारण इसके 2050 तक इसी दर से बढ़ने की संभावना है.
संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट निश्चित रूप से चिंतित करने वाली है कि दुनिया की लगभग 26 फीसदी आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 40 वर्षों में विश्व स्तर पर पानी का इस्तेमाल लगभग एक प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है और जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक विकास तथा बदलते खपत पैटर्न के कारण इसके 2050 तक इसी दर से बढ़ने की संभावना है.
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्य के अंतर्गत वर्ष 2030 तक स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है. संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड वॉटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023 में 2030 तक स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता तक सभी लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक कदमों को रेखांकित किया गया है.
इसके अनुसार लक्ष्य को पूरा करने के लिए अनुमानित वार्षिक लागत 600 अरब डॉलर से एक हजार करोड़ डॉलर के बीच आंकी गई है. इस रिपोर्ट के प्रधान संपादक रिचर्ड कोनोर का कहना है कि वैश्विक स्तर पर 70 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में फसलों की सिंचाई को अधिक कुशल बनाने के लिए होता है. कुछ देशों में अब ‘ड्रिप’ सिंचाई का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पानी की बचत होती है.
जाहिर है कि पानी बचाने के लिए अब जितने भी उपाय संभव हों उन सबका इस्तेमाल करना जरूरी हो गया है. भारत के लिए तो पानी बचाने के उपायों पर ध्यान देना और भी जरूरी है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत की शहरी आबादी को 2050 तक जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है और देश के कई हिस्सों में पानी की कमी हो सकती है.
ऐसा नहीं है कि देश में पानी की कमी है लेकिन जिस गति से हम साफ पानी को दूषित करते जा रहे हैं और वर्षा जल को सहेजने की कोशिश नहीं हो रही है, उसके कारण जलसंकट गहराता जा रहा है. कृषि कार्यों के लिए तो धरती में सूराख कर भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन करना फैशन सा बन गया है. कांक्रीट से पटे शहरों में वर्षाजल को जमीन में समाने की जगह नहीं मिलती है और सामान्य बारिश भी बाढ़ का कारण बन जाती है.
तालाबों के जरिये बारिश के पानी को सहेजने की कला हम लगभग भूल ही चुके हैं. यही कारण है कि प्रकृति के रौद्र रूप दिखाने का खतरा अब मंडराने लगा है. पानी के बिना तो जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती. इसलिए अगर हमें टिकाऊ विकास की दिशा में बढ़ना है तो जलसंरक्षण के उपायों पर ध्यान देना ही होगा.