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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: जातिवाद का खात्मा कैसे हो?

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 5, 2020 16:13 IST

देश की जातीय-व्यवस्था में परिवर्तन तभी होगा जबकि प्रति वर्ष लाखों शादियां अंतरजातीय हों. लेकिन इस मामले में हमारे नेता बिल्कुल अकर्मण्य हैं. जो उन्हें करना चाहिए, वह वे बिल्कुल नहीं करते. सबसे पहले नौकरियों से जातीय आरक्षण खत्म करना चाहिए. दूसरा, जातीय आधार पर चुनावी उम्मीदवार तय नहीं करना चाहिए.

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अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ढाई लाख रुपए का अनुदान देती है यानी यह पैसा उनको मिलता है, जो अनुसूचित जाति या वर्ग के वर या वधू से शादी करते हैं लेकिन खुद होते हैं, सामान्य वर्ग के! सामान्य का अर्थ यहां सवर्ण जाति ही है. इनमें पिछड़े भी शामिल हैं. इस अनुदान-राशि के बावजूद देश में इस तरह की हर साल 500 शादियां भी नहीं होतीं.

सवा अरब लोगों के देश की इस हालत को ऊंट के मुंह में जीरा नहीं तो क्या कहेंगे? इसका एक कारण सरकार ने अभी-अभी खोज निकाला है. वह यह है कि यह अनुदान राशि उन्हीं जोड़ों को मिलती है, जो अपना रजिस्ट्रेशन ‘हिंदू मैरिज एक्ट’ के तहत करवाते हैं. आर्यसमाज आदि में हुई शादियों को यह मान्यता नहीं है. अब उन्हें मान्य कर लिया जाएगा. यह अच्छा है, सराहनीय कदम है.देश की जातीय-व्यवस्था में परिवर्तन तभी होगा जबकि प्रति वर्ष लाखों शादियां अंतरजातीय हों. लेकिन इस मामले में हमारे नेता बिल्कुल अकर्मण्य हैं. जो उन्हें करना चाहिए, वह वे बिल्कुल नहीं करते. सबसे पहले नौकरियों से जातीय आरक्षण खत्म करना चाहिए. दूसरा, जातीय आधार पर चुनावी उम्मीदवार तय नहीं करना चाहिए.तीसरा, जातीय नाम या उपनाम रखनेवाले को चुनावी टिकट नहीं देना चाहिए. चौथा, लोगों से आग्रह करना चाहिए कि वे जातीय उपनाम रखना बंद करें. पांचवां, किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा जाति या उप-जातिसूचक नाम रखने पर प्रतिबंध होना चाहिए. छठा, संगठनों, धर्मशालाओं, अस्पतालों और मोहल्लों के जातिसूचक नाम बंद होने चाहिए. सातवां, सबसे बड़ा काम यह है कि मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम का भेद मिटना चाहिए.

सदियों से चली आ रही इस रूढ़ि ने ही देश में ऊंची और नीची जातियों का भेदभाव खड़ा किया है. क्या सिर्फ ढाई लाख रुपए के लालच में ही अंतरजातीय विवाह होने लगेंगे? हां, इनसे उनकी मदद जरूर हो जाएगी.

टॅग्स :जाति
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