जाति जनगणना क्या-क्या रंग दिखाएगी?, अभी लंबा रास्ता बाकी, सवाल उठाए जाने लगे

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 12, 2025 05:22 IST2025-05-12T05:22:22+5:302025-05-12T05:22:22+5:30

Caste Census: जानकारों का कहना है कि रोहिणी आयोग की सिफारिशों पर अगर मोदी सरकार अमल करती है तो सामाजिक न्याय की राजनीति करने वालों की सियासत हिल सकती है.

What colours caste census show still long way go questions started being raised blog vijay vidrohi | जाति जनगणना क्या-क्या रंग दिखाएगी?, अभी लंबा रास्ता बाकी, सवाल उठाए जाने लगे

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Highlightsलालू, तेजस्वी, अखिलेश, मायावती और नीतीश कुमार का नाम लिया जा सकता है.रिटायर्ड जज जी रोहिणी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया था. आयोग ने 2633 जातियों को मिली आरक्षण की सुविधा का पता लगाया.

विजय विद्रोही

तो आखिरकार मोदी सरकार जाति जनगणना करवाने के लिए तैयार हो गई है. लेकिन अभी लंबा रास्ता बाकी है. जातीय जनगणना कब होगी, कब खत्म होगी, क्या आंकड़े सरकार सार्वजनिक करेगी, करेगी तो कब करेगी, क्या आंकड़ों के बाद आरक्षण पर लगी पचास फीसदी की हदबंदी हटाई जाएगी जैसे सवाल उठाए जाने लगे हैं.  इसकी असली परख तो बिहार विधानसभा चुनाव में होगी लेकिन इस बहाने रोहिणी आयोग की रिपोर्ट लागू करने का दबाव एनडीए के धड़े ही मोदी सरकार पर बढ़ाने में लगे हैं. जानकारों का कहना है कि रोहिणी आयोग की सिफारिशों पर अगर मोदी सरकार अमल करती है तो सामाजिक न्याय की राजनीति करने वालों की सियासत हिल सकती है. यहां लालू, तेजस्वी, अखिलेश, मायावती और नीतीश कुमार का नाम लिया जा सकता है.

मोदी सरकार ने ओबीसी जातियों के वर्गीकरण को लेकर 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जी रोहिणी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया था. करीब एक दर्जन बार आयोग का कार्यकाल बढ़ाया गया. 2023 में रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी गई और इस समय तक वही अटकी हुई है. आयोग ने 2633 जातियों को मिली आरक्षण की सुविधा का पता लगाया.

पता चला कि इन 2633 जातियों में से 983 जातियों को आरक्षण का शून्य लाभ मिला यानी न तो किसी को ओबीसी आरक्षण के तहत नौकरी मिली और न ही किसी का किसी संस्थान में आरक्षण कोटे से दाखिला हुआ. रोहिणी आयोग की रिपोर्ट तो अभी सार्वजनिक नहीं हुई है लेकिन सूत्र बताते हैं कि आयोग ने ओबीसी को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण के वर्गीकरण की सिफारिश की है.

यह वर्गीकरण तीन वर्ग में ओबीसी को विभाजित करना है. सभी के हिस्से में 9 फीसदी आरक्षण ताकि अति पिछड़ों, महापिछड़ों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके जिन्हें शून्य से लेकर ढाई फीसदी तक ही लाभ मिल पाया है. अगर वर्गीकरण होता है तो बिहार में अति पिछड़ों को लाभ मिल सकता है जिनकी संख्या 33.2 फीसदी बताई जाती है.

जानकारों का कहना है कि मोदी सरकार ने दो साल पहले विश्वकर्मा योजना शुरू की थी जिसके तहत पिछड़ों में पिछड़ों के लिए शून्य ब्याज या मामूली ब्याज पर पांच लाख रुपए तक का कर्ज देने की सुविधा प्रदान की गई है. कहा जाता है कि विश्वकर्मा योजना के लाभार्थियों का चयन रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर किया गया.

अब बिहार में एनडीए के साथ उपेंद्र कुश्वाहा से लेकर संजय निषाद जैसे नेता ओबीसी के वर्गीकरण की बात करने वाले रोहिणी आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं. तय है कि अगर ऐसा होता है तो ओबीसी में शामिल प्रभावशाली जातियां बुरी तरह से नाराज हो जाएंगी लेकिन अति पिछड़े भाजपा के साथ आ खड़े होंगे.

लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. जब वाजपेयी सरकार ने प्रभावशाली जाटों को ओबीसी में आरक्षण दिया तो गुर्जर सड़कों पर उतर आए. उनका कहना था कि सारी मलाई तो जाट खा जाएंगे. खासतौर से पंचायतों, स्थानीय निकायों में मिलने वाला राजनीतिक आरक्षण. अब गुर्जरों ने खुद को एसटी में शामिल करने की मांग की.

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