वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार। राज्य सभा टीवी के पूर्व कार्यकारी निदेशक। वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज, सीएनईबी, बीएजी फिल्मस, आज तक, नई दुनिया इत्यादि मीडिया संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर रहे।Read More
जाहिर है कि इसके पीछे कोई सैद्धांतिक कारण नहीं, बल्कि निजी स्वार्थ होते हैं। इनके चलते लोकतंत्र को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। जिन मतदाताओं के कंधों पर जनतंत्र का बोझ होता है, वे ठगे से रह जाते हैं। मान सकते हैं कि भारतीय मतदाता यूरोप अथवा पश्चिमी दे ...
इस समय तक वैचारिक आधार कमजोर पड़ने लगा था और सियासत उद्योग की शक्ल लेने लगी थी। इसलिए पूंजी के दखल से खुद को न राष्ट्रीय पार्टियां मुक्त रख पाईं और न ही क्षेत्रीय दल अपने को बचा पाए। ...
रायपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन का सबसे महत्वपूर्ण सकारात्मक संदेश पार्टी अध्यक्ष का यह ऐलान रहा कि पार्टी समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन कर सकती है. ...
राजनीतिक दल और नेता जब तक सिद्धांतों की खातिर सत्ता छोड़ना नहीं सीखते और स्वार्थों के कारण सत्ता से चिपकना नहीं छोड़ते, तब तक कोई भी एकता अमिट और स्थायी नहीं रह सकती. ...
जब अफगानिस्तान से नाटो सेना की वापसी हुई और अमेरिका ने तालिबान के साथ समझौता किया तो पाकिस्तान प्रसन्न मुद्रा में था. हालांकि अब समीकरण बदले नजर आ रहे हैं. ...
मजहब की बुनियाद पर हिंदुस्तान से टूट कर बना पाकिस्तान अब मजहब के आधार पर ही बिखरने के कगार पर है. इस देश के गठन के बाद पहली बार मुल्क में यह नौबत आई है कि आम अवाम भी इस धार्मिक प्रयोग को नकारने लगी है. त्रासदी तो यह है कि जब अवाम के भूखों मरने की नौब ...
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष की यात्रा के बाद इस प्रश्न पर बहस स्वाभाविक है। विविधताओं से भरे इस देश में कुछ समय से सामाजिक ताने-बाने को झटके लगने के समर्थन में तर्क दिए जाते रहे हैं। ...
भारत में आजादी के बाद भी अंग्रेजी की बेल कुछ इस तरह फली-फूली कि अन्य भाषाएं हाशिए पर चली गईं. कोई सरकार या प्रशासन तंत्र इसे नहीं रोक सका. न्यायालयों का भी यही हाल रहा. ...