ब्लॉग: इतिहास के भयानक मोड़ पर खड़ा पाकिस्तान! भूखों मरने की नौबत आने पर अब खुल रही है आंख
By राजेश बादल | Published: February 7, 2023 01:42 PM2023-02-07T13:42:14+5:302023-02-07T13:42:52+5:30
मजहब की बुनियाद पर हिंदुस्तान से टूट कर बना पाकिस्तान अब मजहब के आधार पर ही बिखरने के कगार पर है. इस देश के गठन के बाद पहली बार मुल्क में यह नौबत आई है कि आम अवाम भी इस धार्मिक प्रयोग को नकारने लगी है. त्रासदी तो यह है कि जब अवाम के भूखों मरने की नौबत आ गई, तब उसकी आंखें खुली हैं. अब वहां के नागरिक साफ-साफ अनुभव कर रहे हैं कि हुक्मरानों और फौज ने उन्हें बर्बाद कर दिया है.
उसे अहसास हो चला है कि पाकिस्तान का साथ अब वे देश भी नहीं दे रहे हैं, जो इस्लाम के कट्टर समर्थक माने जाते हैं. एक के बाद एक हुकूमतें भरोसा खो चुकी हैं. पहले इमरान खान नियाजी ने अपने को जनता के बीच उपहास का केंद्र बनाया और उसके बाद शाहबाज शरीफ भी पाकिस्तान को समस्याओं के दलदल से बाहर निकालने में नाकाम रहे हैं. और तो और, अब तक इज्जत बचाकर रखने वाली फौज की प्रतिष्ठा भी तार-तार हो रही है.
पेशावर की एक मस्जिद में आत्मघाती आतंकवादी हमले के बाद पहली बार ऐसी स्थिति बनी है कि समूचे राष्ट्र में पुलिस और सेना आमने-सामने हैं. पुलिस खुल्लम-खुल्ला कह रही है कि हमले के पीछे फौज और आईएसआई का हाथ है. पाकिस्तान के टीवी चैनलों, इंटरनेट चैनलों और अखबारों की मानें तो हालात बेहद भयावह होते जा रहे हैं तथा देश की प्रतिष्ठा बचाने का कोई फॉर्मूला किसी भी सियासी पार्टी या सेना के पास नहीं दिखाई देता.
सोशल मीडिया के इन तमाम अवतारों पर यह बहस आम हो गई है कि मुल्क के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अंग्रेजों के जाल में स्वयं फंसने के लिए गए थे. करीब एक सप्ताह तक इन बहसों को गंभीरता से सुनने-देखने के बाद मुझे लगता है कि पाकिस्तान का समझदार और बौद्धिक वर्ग अब विभाजन को एक त्रासदी मानने लगा है. इस तबके के नुमाइंदे कहते हैं कि जिन्ना की जल्दबाजी में करोड़ों नागरिकों का कबाड़ा हो गया.
दरअसल पाकिस्तान के इस्लाम ने संसार में अपने ढंग का अनूठा चेहरा प्रस्तुत किया है. अतीत के एक प्रसंग का यहां जिक्र प्रासंगिक होगा. जब भारत का बंटवारा हुआ तो उससे पहले 1946 में प्रांतीय असेंबलियों के चुनाव हुए थे और जो इलाके बाद में पाकिस्तान के सूबे बने ( पंजाब, सिंध, पख्तूनिस्तान और बलूचिस्तान ) उनमें कहीं भी मुस्लिम लीग को बहुमत नहीं मिला था, जबकि इस चुनाव में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को अपना बड़ा मुद्दा बनाया था.
कांग्रेस ने इसका विरोध किया था. यानी इन सूबों में पाकिस्तान की अवधारणा को बहुमत का समर्थन हासिल नहीं था. कांग्रेस की स्थिति काफी बेहतर थी. कई सूबों में तो उसकी सरकारें भी बन गई थीं. पाकिस्तान बनाने के लिए असली दबाव तो उत्तर प्रदेश, बिहार तथा कुछ अन्य प्रदेशों के मुसलमानों की ओर से बनाया गया था.
आप इन इलाकों के लोगों को ही पाकिस्तान का असली निवासी मान सकते हैं. जब ये लोग यानी असली पाकिस्तान भारत से पलायन करके पाकिस्तान पहुंचा तो वहां पहले से मौजूद मुस्लिमों ने उन्हें नहीं अपनाया. उन्हें मुहाजिर कहा गया. आज भी ये मुहाजिर पाकिस्तान की मुख्यधारा में शामिल नहीं हैं. उनके साथ दोयम दर्जे का सुलूक होता है.
इसका मतलब यह हुआ कि वास्तविक पाकिस्तान को पाकिस्तान ने ही नहीं अपनाया. जब असली पाकिस्तान आज के पाकिस्तान में शरणार्थी है तो उसका गठन हुआ ही कहां?
कहा जाता है कि दुनिया के तमाम देशों में उनकी सीमाओं की हिफाजत के लिए सेना होती है, पर पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो सेना के लिए है. आज समूचा संसार देख रहा है कि भारत में पाकिस्तान की आबादी से अधिक मुसलमान रहते हैं. उन्हें कभी भी रोजी-रोटी की स्वतंत्रता या मस्जिदों में जाकर आराधना की आजादी से वंचित नहीं किया गया है. सामाजिक रिश्तों में थोड़े-बहुत उतार-चढ़ाव तो हर देश में आते हैं.
इस नजरिये से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ जो हो रहा है, वह तो घोर अमानवीय और क्रूर है. क्या हिंदुस्तान के इस पड़ोसी देश के नियंता कभी इस हकीकत को समझेंगे? शायद नहीं क्योंकि जो मुल्क अपनी मूर्खताओं से बांग्लादेश का निर्माण करा दे और उसके बाद भी सुधरने को तैयार नहीं हो, तो उसे कौन बचा सकता है.